दुनिया तेरी रीत निराली...
दुनिया तेरी रीत निराली...
"अरे, चूड़ी ले लो.. चूड़ी ले लो... चूड़ी., सुहागिनों का सुहाग बना रहें, चूड़ी पहन लो..." रमिया मनिहारिन(चूड़ियां बेचने और पहनाने वाली)
हर रोज ऐसे ही अपने सर पर बड़ी सी चूड़ियों वाली डलिया रखकर गांव की गलियों में निकलती हैं,उस डलिया में चूड़ियों के अलावा स्नू-पाउडर,कंघी शीशा, चोटी बिंदीं और भी सिंगार का बहुत सा सामान होता है,अभी दो तीन महीने ही हुए उसे इस गांव में सामान बेचते हुए।एक छोटा दुधमुंहा बच्चा भी है उसका,घर में उसे कोई सम्भालने वाला नहीं है इसलिए साथ में ही लेकर चली आती है उसी बड़ी सी चूड़ियों वाली डलिया में उसे भी किनारे में लिटा कर अंगोछे से ढंक देती है।।भरे पूरे शरीर और गेहुएं रंग की रमिया की मांग हमेशा सिंदूर से भरी रहती है,माथे पर बड़ी सी बिंदी और कलाईयां भर भर के लाल चूड़ियां,वो कहती है कि सिंगार का सामान बेचती हूं और खुद ना सिंगार करूं तो लोग ना कहेंगे कि कैसी मनिहारिन है।।
छोटा सा गांव है हरिपुर, रमिया की आवाज सुनते ही सभी औरतें सिंगार का सामान खरीदने अपने दरवाजे पर खड़ी हो जातीं हैं, कोई लाली खरीदता है तो कोई काजल,सबको अपने अपने पति को रिझाने के लिए सिंगार की जरूरत पड़ती है।।
और रमिया खुशी खुशी सबको सिंगार का सामान बेचती हैं,उसका मानना है कि,जित्ता हंस के बतिया के सामान बेचेगी तो ग्राहक बढ़ेंगे।शाम होने को आई अब रमिया के घर जाने का समय हो गया है,रमिया ने बनिए के यहां से कुछ राशन और ग्वाले के यहां से बच्चे के लिए दूध खरीदा और निकल पड़ी घर की ओर।।
गांव से थोड़ा दूर निकल कर है उसकी झोपड़ी, टेड़ी मेढ़ी पगडंडियों को पार कर झोपड़ी तक पहुंची, जहां सिर्फ इक्का दुक्का झोपड़ी ही हैं,बाकी जगह मैदान पड़ा है,उसने दरवाजे पर लकड़ियों से बने फाटक को हटाया और अंदर जाकर झोपड़ी के दरवाज़े के पास सर से अपनी डलिया उतारकर रखी फिर ताला खोलकर,डलिया भीतर रखकर बाहर आकर वहीं बगल में रखी बाल्टी से पानी लेकर हाथ मुंह धोकर फिर भीतर चली गई।।अब उसने अपना पहना हुआ एक एक सिंगार का सामान उतार दिया और सामान उतारते हुए उसकी आंखों से आंसू टपक पड़े।।
इसलिए, क्योंकि चार महीने पहले वो विधवा हो गई थी ,पति शहर में काम करता था एक दिन किसी मोटर के नीचे आ गया था,गोद में बच्चा भी था और ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया,मायके वाले भी रखने को तैयार ना थे, कुछ पैसे थे मुट्ठी में, उन्हीं को लेकर इस गांव में चली आई,तरस खाकर एक बुढ़िया ने किराए पर अपनी झोपड़ी देदी क्योंकि वो खेतों में बनी अपनी झोपड़ी में रहती है, यहां आकर चूड़ियां बेचने लगी।सिंगार बेचती है इसलिए विधवा होकर भी उसे सिंगार करना पड़ता है,अगर ऐसा नहीं करेंगी,रोनी सूरत बनाकर सामान बेचेगी तो उसका सामान कोई नहीं खरीदेगा क्योंकि दुनिया की यही रीत हैं, दिखावा पसंद करते हैं यहां के लोग।
