दुनिया गोल है दोस्तों!
दुनिया गोल है दोस्तों!
एक दिन मैं सुबह मुंबई के लोकल ट्रेन से सफर कर रहा था ,मुझे ठाणे से चर्चगेट तक जाना था उसकी दूरी परिवहन आधे घंटे की थी, ट्रेन के उस कंपार्टमेंट में वहां कुछ लोग टिफिन बैग लिए जो कि दफ्तरों में टिफिन पहुंचाने का काम करते थे, वे लोग वहां बैठे एक दूसरे के साथ मिलकर, तालीया बजा कर गाना गा रहे जो अपने में मस्त थे, जैसे ही अगला स्टॉप आया और वहां बैठे वे लोग टिफिन बैग लिए एक एक कर उतरने लगे, सब वहां से जा चुके थे, फिर मैंने अपने सामने पड़ा एक टिफिन वाला बैग देखा, मैंने सोचा कि भीड़ में शायद उनसे बैग छूट गया होगा, मेरा अगला स्टॉपेज आने में अभी टाइम था, ट्रेन अभी भी स्टेशन में ही थी।
जैसे ही ट्रेन अपने अगले स्टेशन के लिए रवाना होने लगी तो फिर मैंने उस टिफिन के डब्बे को लेकर चलती ट्रेन से उस स्टेशन पर उतार गया,
फिर वह खड़े कुछ सेकेंड मैंने सोचा और उस टिफिन के बैग को लेकर स्टेशन के बाहर की ओर निकल गया, फिर वहां उन टिफिन वाले लोगों को ढूंढने लगा, लेकिन वह लोग मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे, मैंने देखा कि टिफिन में कुछ एड्रेस लिखा था, एक कोई मुंसिपल कॉर्पोरेशन ऑफिस का पता था।
फिर मैंने ऑटो लेकर और मुंसिपल ऑफिस पहुंचा। मैं अंदर गया उस प
ते में एक नाम लिखा था, किसी "नेहा" नाम का और उसमे सिर्फ "नेहा" ही लिखा था, उसने वहां ऑफिस में पूछा किसी से नेहा के बारे में, फिर मै नेहा के कैबिन की तरफ जाता हूं और अंदर से मुझे किसी को डांट पढ़ने की आवाज आती है, अंदर खाने-पीने यानी टिफिन से संबंधित मसले हो रहे थे।
मैंने दरवाजा नाॅक किया, मेरे हाथ में टिफिन और मेरे सामने टिफिन वाला और उसको जो डांट रही थी, मुझे उस मोहतरमा का चेहरा नजर नहीं आ रहा था, जैसे ही वह टिफिन वाला डांट खाकर मुझको उसी टिफिन को हाथ में लिए देखता है और मै उस मोहतरमा की ओर नजर घूमता हूं, मै शॉक हो जाता हूं.....,
मेरे जुबां से एक नाम निकलता है क्या वह "नेहा महर" थी? "आई मीन" है..., यह कैसी लीला है प्रभु जिस से पीछा छुड़ा के मैं दो महीने से भाग रहा था, अपने उसी के पीछे मुझे फिर से लगा दिया, अब तू ही बचा ले भगवान मुझे। नेहा मुझे वहां देख वो हैरानी से खड़ी होकर मेरी तरफ देखने लगी, और मै जिससे ना मिलने की कसम खाई थी, अब मै उसी के सामने खड़ा मेरा मुंह खुला का खुला रह गया, सच में ये दुनिया गोल है। बस इतनी सी थी इस कहानी का भाग 1...