आशिक लॉकडाउन
आशिक लॉकडाउन
लक्की अरोड़ा इंदौर में रहने वाला एक लड़का जिसकी उम्र करीबन 21 से 22 के बीच होनी चाहिए जो इंदौर के इलाके में रहता था। मुझे पता नहीं मतलब, वैसे क्या फर्क पड़ता है, मौज करो और उपाय ही क्या है! लेकिन लक्की अरोड़ा दिखने में साधारण से भी साधारण दिखता था, एक दिन उसके पड़ोस में, उसके बिल्डिंग के दो घर छोड़कर दाए साइड में एक लड़की रहने आई।
फिर आगे की कहानी मेरे द्वारा और लक्की अरोड़ा की के मुुंह से...आगे
मै इधर उधर से खबर लगाया तो उसका नाम निशा अरोड़ा पता चला क्या बात है, लक्की अरोड़ा विद अरे क्या नाम था उसका अभी तो याद किया था, हां निशा अरोड़ा क्या भाग्य है हमारे, मंगलवार को हनुमान मंदिर में जाकर ₹11 का दक्षिणा और 50 का बेसन के लड्डू जरूर चढ़ा लूंगा।
अगले ही दिन मैं उसी मोहल्ले से अपने घर की तरफ आ रहा था, तभी मुझे याद आया कि मैं राशन की थैली तो दुकान पर ही भूल गया। फिर वापस दुकान जाता है थैली लेने और अपने साथ पड़ोस में आई लड़की निशा की तीन थैली भी साथ उठाकर जरूर लता है, क्योंकि साधारण लड़का है, फिर उस लड़की ने मुझे अपना नंबर दिया, फिर हमाारी बातें फोन पे होने लगी, कुछ दिन हम दोनों साथ रहे तो हम बहुत गरीब हो गए, अरे गरीब नहीं करीब रहे, तो क्या सुनते हो।
अगले दिन सुबह 8:00 बजे निशा का फोन आया। लक्की अरोड़ा सो रहा था और फोन बज रहा था, उसने फोन उठाकर साइड में रख दिया और उधर निशा पता नहीं क्या-क्या बोले बोले जा रही थी। इतने में लक्की अरोड़ा की मम्मी आ गई वह झटक से उठ गया और फोन का लाउडस्पीकर मोड ऑफ कर दीया, मम्मी चली गई।
मैंने फिर कान पर फोन लगाया और थोड़ा घबरा कर बोला।
अब हम दोनों अपने घर के पीछे वाले गार्डन में मिले दोनों वहां कुछ धीमी धीमी आवाज़ में बात कर रहे थे,मोबाइल को दिखा कर, हम दोनों निशा के ही फोन में कुछ देख रहे थे, कुछ धीमी धीमी साउंड आने लगी कुछ गीत गूंज रहे थे कानों में ए क्या "तेरी काली काली चौरसिया" अबे साले फिर से चौरसिया नहीं बे हरामियों " दो अंखियां" मतलब यह दोनों लॉक डाउन और कोविड19 जिसके लिए पूरा देश लड़ रहा है, उसके बीच ये घर के पीछे गार्डन में अपने मोबाइल फोन में वह लड़की निशा ना जाने मुझे क्या क्या दिखा रही थी, ए कैसा जुल्म है, भगवान लड़की को आपने कुछ अनोखा ही बनाया है।
अब मै उस लड़की के बारे में कुछ ज्यादा ही सोचने लग चुका था। लड़की ने मजबूर जो कर दिया था, फिर दोनों फैसला करते हैं कि अब वह दोनों शादी करेंगे, दोनों के फैमिली से मिलने की बात हुई डिनर पे आने वाले थे, मैं बहुत एक्साइटेड था, या शायद पता नहीं, लेकिन एडवेंचर तो हो ही रहे थे मेरी ज़िन्दगी में, शाम 7:30 बजे डोर बेल बजी मम्मी डोर खोलने गई,और चिल्लाई फिर चीख सुनके पापा वहां गए और उनकी भी चीख निकल गई, अब तो मुझे जाना ही था क्योंकि लाइफ में बहुत सारे एडवेंचर हो रहे थे, लग गई थी पूरी लाइफ की।
जैसे ही मैंने जब देखा डोर के सामने का दृश्य कुछ ओझल सा था मेरी आंखों में यह क्या की पूरी फैमिली प्रोटेक्टिव किट पहन के मेरे घर के सामने खड़ी थी आई मीन खड़े थे! वह तो बरसाती मेंढक की तरह लग रहे थे, ना जाने मेरे मन में इतना गंदा थॉट कैसे आया। मैं कुछ और बोलने वाला था, इससे भी गंदा सॉरी।
और निशा की फैमिली कुछ ज्यादा ही कमाल की थी उन्होंने हमें देखा मुस्कुराया और जोर से साथ में उन्होंने नमस्ते जो किया उसको मैं बता नहीं सकता, निशा के दादाजी शंख लेकर आ गए थे, शंख बजाने लगे, आप ही समझ लो फिर क्या सीन चल रहा होगा उस वक्त। क्या है ना लाइफ में जब सही निर्णय लो, तो जब आप उस माहौल में हो तो आपको पता नहीं क्या सही है क्या गलत, जो हो रहा है चलने दो अपने को क्या है, एंजॉय लाइफ और ऑप्शन क्या है !
बस इतनी सी थी यह कहानी !