खुद को पहचानो (आत्म ज्ञान)
खुद को पहचानो (आत्म ज्ञान)
एक शाम का मंजर था सूरज की लाली अब धीरे धीरे छुप रही थी पहाड़ों के पीछे,अंधेरा होने लगा था और मैं "विकास" और मेरे दादाजी "काली पद मुखर्जी", मैं अक्सर दादा जी के साथ शाम को मंदिर जाया करता था। दादा जी मुझे उंगलिया पकड़कर मंदिर ले जाया करते, और वहां के इतिहास के बारे में मुझे बताते हैं किस तरह यहां गांव बना। कैसे यह लोग बसे और हमारे पूर्वज किस तरह से अपना जीवन यापन करते थे।
रोज मेरे दादाजी कुछ खाने के दाने उस मंदिर के पास एक चबूतरा था जहां कुछ कबूतर आते थे। दादाजी उन कबूतरों को वह दाना रोज खिलाते थे। मैं देखता और उनसे पूछता, ऐसा करने से क्या होता है आप क्यों रोज यहां आते हैं,और इन कबूतरों को दाना देते हैं।
दादा जी ने बहुत सरलता से एक बहुत प्यारी बात कही कि, मैं यहां लाइफ टाइम इन्वेस्टमेंट करने आया हूं, ताकि आने वाली जिंदगी में मुझे सुख समृद्धि और ऐश की प्राप्ति हो इसलिए मैं रोजाना मंदिर से यहां आता हूं यही प्रकृति का नियम है और हमें इन्हीं नियमों का अनुसरण करना चाहिए। वैसे दादाजी अपने पोते को समझने के लिए बड़े ही मजाकिया मुड़ में, लोगो की भी मदद करने को कहते।
8 साल का विकास अपने बचपन की कम उम्र मैं बहुत सीख रहा था और भी बहुत कुछ सीखना चाहता था । उसके दादाजी उसके लिए फेवरेट थे फिर विकास उनके दादाजी के साथ वह भी कबूतरों को दाना खिलाने लगा, वह सुंदर दृश्य था। "वैसे दादा जी 55 साल के थे" ऊनपर जिम्मेदारियां कुछ ज्यादा ही थी। धीरे धीरे जिंदगी बदलने लगी और लोग बदलने लगे।
एक उम्र ऐसा आया जिस वक्त आपका आत्मविश्वास ही आपका सबसे बड़ा हथियार बनेगा और उस दिन आप के जीवन का सारा योगदान फल स्वरूप आपको किसी ना किसी रूप में मिलते जाएगा। चाहे परिणाम बुरा हो या अच्छा लेकिन मिलेगा जरूर।
कई सालों के बाद दादाजी फिर भी विकास से मिले, विकास अब बड़ा हो चुका था। कॉलेज में पढ़ रहा था बहुत होशियार था मेरा पोता, विकास को देख दादाजी ने ना कहा।
कुछ बॉन्डिंग ऊपरवाले बनाते हैं, वैसा ही बॉन्डिंग यूं दोनों दादा पोते में था। दादाजी ने एक किताब दिया विकास को और कहा कि इस किताब में जिंदगी के संपूर्ण सच और इसमें हमारे पापों का लेखा-जोखा है। इसमें जीवन के मूलभूत स्रोत और कई जीवन जीने के मायने सिखाते हैं। वैसे बहुत खास था इस किताबों में, कहा जाता है जब अंग्रेजों ने हमारा देश में राज किया था तो हम हिन्दुस्तानी पर अपना हुकुम जाता पाया उन्होंने, बहुत ही धन संपत्ति और बहुत से खनिज पदार्थों का व्यापार किया।
लेकिन वह कभी मानवता और प्रेम भाव को कभी व्यक्ति नहीं कर पाए। हमसे हमारी संपत्ति लूट सकते हैं बाकी सब हमारे विचार ही है जो किसी के गुलामी से नहीं डरते और ना विचार बदलते।
एक सच अंग्रेजों का याद था कि, अंग्रेजों ने सोने की चिड़िया कहने वाले इस भारत को बाहर से तो खोखला बना दिया था। लेकिन अंदर से वह आज भी मजबूत है। अंग्रेज समझ नहीं पाएंगे और ना पाए थे, क्योंकि जानना चाहिए था कि उस वक्त जब देश आजाद होने वाला था। बस एक चीज था जो अंग्रेज़ो ने कभी भी अनुसरण नहीं कर पाया अपनी जिंदगी में वह असल सच था कि "श्री कृष्ण" के दिए गए वो गीता ज्ञान का कभी अनुसरण नहीं कर पाए।
मगर अंग्रेजों ने कुछ तो छाप छोड़ी दिया था, भारत के उन फिरंगी पन वाले लोगों पर, जो कि असल में भारतीय थे। एक तरफ देश तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था। जहां नई नई तकनीकी चीजे आ रही थी और इधर हमारे देश के कुछ आवाम आज भी पश्चिमी देशों के संगत अपनाने की कोशिश करें और वही पश्चिमी देशों के कई लोग आज के इस युग में हमारी संस्कृति को अपने जीवन में जीवन सार मान के जिंदगी बिता रहे हैं।
बस इस मोरल स्टोरी का यही तात्पर्य है, कि हमें उस चीजों का संग करना चाहिए जो हमें सही या ग़लत के बारे में सिखएं और खुशी प्रदान करें और हमको हमारे इस अमूल्य संस्कृति को कभी भूलना नहीं चाइए।