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सुरभि शर्मा

Drama Romance

4  

सुरभि शर्मा

Drama Romance

दर्द तन्हाई का हमसे जीता

दर्द तन्हाई का हमसे जीता

6 mins
201

"जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे 

तुम दिन को अगर रात कहो तो रात कहेंगे" 

   

व्हाट्‍सअप पर मैसेज देख न चाहते हुए भी मुस्कुरा पड़ी चाँदनी, ये बिल्कुल नहीं बदला पता नहीं कैसे झेलते होंगे सब इसे इसके घर ये सोचते हुए एक बड़ी सी मुस्कुराहट वाली स्माइली के साथ तुम कभी नहीं सुधरोगे का जवाब दे दिया।


जाग रही हो अभी तक? तीर की तरह वहां से मैसेज आया, जाग तो तुम भी रहे हो, मैंने भी सवाल पर सवाल किया, जी हमारी तो ये ड्यूटी है वो तो ईश्वर की कृपा है कि बीच समंदर में भी आज नेटवर्क मेहरबान है, वर्ना ये नेवी की ड्यूटी तो समझ ही सकती हैं आप, अब आप बताइये कि आप रजनीगंधा का फूल क्यों बनी हुई हैं, बस ऐसे ही नींद नहीं आ रही थी, चलो अब गुड नाइट के मैसेज के साथ मोबाइल सिरहाने रखने जा ही रही थी कि फिर मैसेज चमका "आज जाने की जिद न करो" पागल कहीं का इस बार बिना जवाब दिए मुस्कुरा कर रह गयी चाँदनी।


आँखों पर हाथ रखकर लेटे हुए यही सोच रही थी कि क्या सच में नाम का असर इंसान की जिन्दगी पर होता है, चाँदनी 14 सालों से सच में चाँदनी की तरह ही तो रात भर जाग कर बिताना ही मेरी नियति बन गयी है। चाँद की चाँदनी को कम से कम दिन में तो सुकून मिलता होगा पर मेरा भाग्य तो दिन में भी मुझसे रूठा रहता है। भीगी आँखों से धीरे से करवट बदल कर देखा तो आदित्य गहरी नींद सो रहे थे, उनके थके हुए निश्छल चेहरे को प्यार से चूमने का मन हो आया, पर कहीं इनकी नींद में खलल न पड़ जाए ये सोच के आज फिर से अपने मन को प्यासा ही सुला दिया और अपनी आँखों को बहने के लिए जगा दिया।

नींदिया रानी की आँख मिचौली के बीच रात दबे पाँव चुपचाप गुजर गयी, आज की सहर भी कुछ अलसायी सी खुशगवार मूड में थी शायद इसलिए बिना मौसम ही बरसना चाहती थी, हवाओं में आज रूमानी अहसास की ठंडक थी, चाय का घूँट भरते हुए अनायास ही हाथ मोबाइल पर चला गया।

लाल गुलाब, गुड़मॉर्निंग और "दुआएँ जो आसमान में कबूल होती हैं, मेरी उन हर दुआ में बस तेरी ही खुशी की आरजू है।"

उफ्फ ये शायराना अंदाज नम आँखें हँस पड़ी फिर से मेरी।

 

ब्रेकफास्ट रेडी है और ये रहा आपका लंचबॉक्स और सब कैसा चल रहा है? एवेरीथिंग इज फाइन डियर, तुम बताओ तुम्हारी क्लासेज कैसी चल रही हैं? घर से फोन आया था मम्मी से बात कर लेना, वीकेंड शॉपिंग का प्रोग्राम और हाँ आज भी लेट होगा जानती हो न नौकरी ऐसी ही है सो तुम मेरे लिए वेट मत करना, डिनर कर लेना ओके बाय! कुछ जरूरत हो तो कॉल कर लेना।

           

एक मिनट रुकिए जरा, ओह यार रुको शर्ट की क्रिज खराब हो जाएगी मैं खुद कॉलर का बटन बंद कर लेता हूँ ओके बाय टेक केयर! 

प्यार से बढ़े हुए हाथ कतरे हुए पंखों की तरह छटपटा कर रह गए, ख्वाबों की दुनिया से हकीकत कितनी अलग होती है न!

       " सारे सपने कहीं खो गए

       हय हम क्या से क्या हो गए"


वाह!! इसी टाइम मोबाइल का रिंगटोन भी मुझसे सहानुभूति जताने लगा। मयंक कितनी बार तुमसे कहा है मुझे बेवजह कॉल मत किया करो, दोस्त हो दोस्त की तरह रहो।

हाँ तो दोस्ती ही तो निभा रहा हूँ तुमसे, अब बोलो जल्दी खूबसूरत रजनीगंधा केकट्‍स क्यों बना हुआ है अभी? 


तुम नहीं सुधरोगे, बोलो क्या है? मुझे बहुत काम है। सुनो मैं दो दिन के लिए कुछ काम से विशाखापट्टनम आ रहा हूँ, मिलना चाहता हूँ तुमसे।

स्वधा और बच्चे भी हैं तुम्हारे साथ? नहीं मैं ऑफिस के काम से आ रहा हूँ। ओके, वीकेंड होगा तभी मिल पाऊँगी मैं तुमसे ऐसे नहीं।


लाखों बार मना करने के बावजूद आज मयंक मेरे दरवाजे पर खड़ा था, जाने क्यों मुझे अच्छा नहीं लग रहा था शिष्टाचारवश न उसे अंदर बुलाने से मना कर पा रही थी न ही मेहमाननवाजी की औपचारिकता निभा पा रही थी, लबों से शब्द आज कहीं गुम से थे और आँखें बेतहाशा सवालों के बादलों से घिर बरसने को बेताब, "उफ्फ ये अनचाहे पल कभी कभी जिन्दगी में क्यों आ जाते हैं, जो पूरी जिन्दगी को किसी अनकहे तड़प में बांध देते हैं।


अंदर बुलाने का इरादा नहीं है क्या मैडम? इतनी दूर से मिलने आया हूँ तुमसे, हाँ आओ न, आदित्य को कॉल कर देती हूँ पहले, चाय के कप टेबल पर रखते हुए शुरू हुआ बचपन की यादों का सिलसिला हँसते - हँसाते, कभी आँखें नम होते शाम कब बीत चली पता ही नहीं चला, आदित्य भी घर आ चुके थे, और उसे अपने ही घर रुकने का निमंत्रण दे डाला, मैं बहुत असमंजस में थी नहीं रहना चाहती थी यूँ अकेले घर में किसी के साथ, माना दोस्त है पर है तो पुरुष

पर मना नहीं कर पायी, अगले दिन फिर लंच के बाद हम बचपन की तरह लूडो खेल रहे थे कि अचानक वो मुझसे पूछ बैठा सुनो चाँद कभी जमीन पर किसी के हाथ में आ सकता है, मैं हैरानी से उसे देखने लगी मतलब, जानता हूँ तुम डरी हुई हो पर मेरे लिए तुम वो चाँद हो जिसकी दिल इबादत करता है, मिलना चाहता था बस एक बार की बचपन से आँखों में बसी तस्वीर को बस एक बार रूबरू देख लूँ, मैंने बात घुमाने की कोशिश की कुछ भी बोले जा रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है, समझाता हूँ मैं हर रिश्ते का एक नाम होता है पर कुछ अनकहे रिश्ते भी होते हैं जो दुनिया को समझ नहीं आते पर ईश्वर की नजर में पूरी तरह पवित्र होते हैं, और इस रिश्ते का तन से या एक दूसरे की जरूरतों से कुछ लेना देना नहीं होता, बस आत्मा से कब जुड़ जाते हैं पता ही नहीं चलता और सारे रिश्ते तो सिर्फ जिन्दगी भर चलते हैं पर ये रिश्ते जिन्दगी के बाद भी निभते हैं, मैं बेसुध सी होती जा रही थी क्योंकि नहीं सुनना चाहती थी ये सब, नहीं जानना चाहती थी कुछ अनकहे रिश्तों की अहमियत, आँखें अब सुर्ख होने लगी थी मेरी और उसने धीरे से मेरे हाथ पर हाथ रख कर कहा अच्छा अब चलता हूँ, आदित्य आए तो उन्हें बाय बोल देना और इतना सम्मान देने के लिए शुक्रिया भी।


थोड़ी देर बाद घर में सब कुछ नॉर्मल था, मयंक जा चुका था, आदित्य आ चुके थे, पर दिल के अंदर कुछ हलचल मची हुई थी कि जिस पवित्र रिश्ते की अग्नि तुम दहका के गए, उस अग्नि में मोम की तरह जलते तो तुम रहोगे, पर ताउम्र शायद पिघलती मैं रहूँगी।

और मोबाइल पे मैसेज फ्लैश हो रहा था, रजनीगंधा के फूल के लिए " विथ यू, फॉर यू ऑलवेज, जिन्दगी के साथ भी, जिन्दगी के बाद भी"


                 


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