Gyanendra Mani Tripathi

Abstract

4  

Gyanendra Mani Tripathi

Abstract

दर्द एक वास्तविकता

दर्द एक वास्तविकता

3 mins
233


जब हम दर्द की कल्पना करते है तो एक भय उत्पन्न होता है हमारे भीतर जिसका कारण वह दर्द होता है जिसकी कल्पना हमने की, हम चाहकर भी उस दर्द से उबर नहीं पाते जिसका भय हमारे मन मे व्याप्त हो जाता है। एक बार उस दर्द की कल्पना करिए जिसको एक औरत झेलती है जब वह एक शिषु को जन्म देती है, उस पीड़ा की कल्पना हम नहीं कर सकते बिल्कुल भी नहीं कर सकते क्योंकि हमने नहीं देखा है नहीं झेला है तो हम नहीं जान सकते उसको, पर क्या हम उस औरत को वो सम्मान देने में सफल होते है जिसकी वो हकदार होती है, नहीं ऐसा नहीं होता हम नहीं हो पाते सफल हम नहीं दे पाते वो सम्मान, रोज मर्रा की जिंदगी में खटती वो औरत जो सर्वश्रेष्ठ सम्मान की हकदार होती है समाज से उसे क्या प्राप्त होता है घृणा, शोषण मानहानि ये देते है हम उसे, आज एक किस्सा मेरे संज्ञान में आया जिसमे एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया जाता है उसके परिवार के सामने, उसके पति को बांधकर उसके बच्चों को बंधक बनाकर उनके सामने उसका बलात्कार किया जाता है सिर्फ इस लिए की वो दलित है, इस उन अपराधियों को हासिल क्या हुआ या क्या साबित करना चाह रहे थे वो, क्या दलित होना अभिशाप है या एक औरत होना जिसे जो भी चाहे शोषित करे।

क्या हम जागीर समझते हैं औरत को अपनी या अपना हक समझते है उन पर ये सभी चीज़े उतनी गलत है जिसकी अवहेलना करना मात्र उचित नहीं होगा इस पर कार्यवाही होना आवश्यक है, लेकिन हम किससे उम्मीद लगाए उस सरकार से जो स्वयं में ही लीन है या उस समाज से जो इन कृत्यों के हो जाने पर मौन साध लेता है, लेकिन कब तक ये सारी चीज़ें चलेंगी कब तक एक महिला के साथ ऐसे कृत्य होते रहेंगे, कभी-कभी मन मे विचार उत्पन्न होता है कि कहीं हम तो इसके ज़िम्मेदार नहीं, कहीं हम वो तो नहीं जो ऐसे कृत्यों को बढ़ावा देते है, और अगर आप और हम ये सोचते है कि हम नहीं है कहीं से भी ज़िम्मेदार तो ये गलत है, हम ज़िम्मेदार है क्योंकि हम शांत है, हम ज़िम्मेदार है क्योंकि हम खुद सम्मान नहीं देते एक महिला को जिसकी हकदार वो होती है।

हमारे समाज को सुधार की जरूरत है हमारे समाज को ये एहसास होने की जरूरत है कि सिर्फ किताबों व पन्नो में समान अधिकार मिला है महिला को लिख देने मात्र से उसे उस अधिकार की प्राप्ति नहीं हो जाती, हमे उस अधिकार को उन तक पहुँचाना भी होगा, हमे उन्हें वो सम्मान देना होगा जिसकी हक़दार है वो।

ऊपर के कथन में लिखी सामूहिक दुष्कर्म की बात सोचने योग्य सिर्फ इस लिए नहीं है कि वो एक दलित महिला के साथ हुआ बल्कि इस लिए सोचने योग्य है कि ऐसे क्यों हुआ दुष्कर्म किसी भी वर्ग की महिला के साथ हो वो सर्वदा निर्मम ही कहा जायेगा।

"जो बीज धरा से बागी हो, जो नर केवल अपराधी हो"

"हो एक सजा बस मृत्यदंड, है यही दुराचारी का अंत।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract