कल जो होगा उसका ज़िम्मेदार मैं
कल जो होगा उसका ज़िम्मेदार मैं
सुबह हुई ,दिन अच्छा था रोज़ की तरह आम सा बिल्कुल,आम सी सुबह अब तक अच्छी थी जन्मदिन था घर मे बेटी का ,20 की हुई थी आज,उत्सव नही था और खुशी भी थी नही क्योंकि किसी कारण वश माँ बाप थे नही घर पे,भाई बहन थे पर शायद पर्याप्त थे और खुश भी लग ही रहे थे शाम से पहले तक या यूं कहें उस घटना के पहले तक,भाई बड़ा था तो तोहफे कई सारे लाया था,तोहफों की सेज सजी हुई थी कि रात हुई और बारी खाने की आयी वो 2 थे तो ज़्यादा काम था नही,खाना हुआ फिर सोने चले गए,रात काली हो रही थी इस लिए नही की रात थी,इस लिए की कृत्य काला होने वाला था उस रात।
रात के करीब एक बजे दरवाजे की आहट सुन भाई देखने को उठता है और किसी भारी चीज़ की चोट से बेहोश हो जाता है,और जब उसकी आंख खुलती है तो वो खुद को रस्सी में जकड़ा हुआ पाता है एक खम्भे से बंधा हुआ हिल पाने या लड़ पाने में एकदम अक्षम,और जब उसकी नजर आंगन तक जाती है तो वो जीवित रहते हुए भी मृत हो जाता है जब 4 सामान्य दिखने वाले आदमी उसकी बहन को नोच रहे थे और वो बहन चीख रही थी,शायद जिस आवाज से उसको होश आया वो उसकी चीख ही थी जिसको उसने सुना था,
सामान्य से मनुष्य थे वो कोई भी बदलाव नही था उनमें की जिससे कह सके वो भाई कि शैतान हैं वो चार,कुछ देर यूँ ही दुर्दशा करने के बाद कब उनमें से एक कि नजर भाई पर गयी तो वो हँसा की अरे जाग गया ये तो चीख सुनकर,देखो सचेत हो गया ये चीख सुनकर हम तो सोच रहे थे कि मर गया होगा लेकिन देखो मरा नही चलो इसे भी आज तमाशा दिखाते है,इतना कहकर वो आदमी जमीन पर पड़ी लोहे की सींक को उठाता है और उससे मारता है उसकी बहन को जो कि पहले से ही मरणासन स्थिति में है फिर भी वह कराह उठती है और उसकी चीख को सुनकर वो भाई भीख मांगता है कि रहने दो छोड़ दो उसको लेकिन नही ,फिर उनमें से एक कहता है कि अगर छोड़ दिया तो शायद हमको जेल जाना पड़े तो दूसरा जवाब देता है कि खाली जेल ही तो होगी छूट जाएंगे वहाँ से परेशान ना हो,वो भाई भीख मांगता है कि जाने दो छोड़ दो,वो बहन जिसमे शायद जान बाकी ना हो वो जमीन पर एक मृत लाश की तरह पड़ी हुई है,वो भाई फिर चीखता है कि उसको मत मारो तुमको अगर जान लेनी है तो मेरी जान ले लो पर उसे छोड़ दो,इतना सुनते ही उन चारों में से एक आदमी पेट्रोल छिड़कता है और आग लगा देता है,और जला देता है एक बेटी को,जला देता है एक नारी को,जला देता है एक होने वाली माँ को,मार देता है एक बेटी को,उसके सपनो को,रोक देता है उसकी उड़ान को!और इतना सब करने के बाद वो चारो चले जाते हैंकुछ दिन बाद जब बात अखबार में आती है तो मैं पढ़ता हूं और छोड़ देता हूं हर खबर की तरह इसको भी सभी आम लोगो की तरह जिन्होंने मुझसे पहले जाना और कुछ भी नही किया,लेकिन अगर मैं कुछ करूँ तो शायद कल किसी के साथ ये ना हो,शायद मेरा जागरूक करना किसी की अस्मिता को बचा सकता है,लेकिन मैंने ऐसा नही किया,और अगर मैंने ऐसा नही किया तो मैं कहता हूं कि कल जो होगा उसका ज़िम्मेदार मैं हूँ,और मेरे साथ वो सब लोग हैंजो शांत हैं,जिनको फर्क नही पड़ रहा क्योंकि ये आग अबतक उनके घर नही पहुँची है,लेकिन मेरा प्रशन है कि क्या तब ही कुछ करना चाहिए जब अपना घर जल रहा हो।
हाँ कल जो होगा उसका जिम्मेदार मैं हूँ।।
