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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Romance Classics

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Romance Classics

दोस्ती वाला प्यार

दोस्ती वाला प्यार

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प्रतिलिपि सखि, 

कभी कभी तुम भी बड़ी स्पेशल बात करती हो। अब, यह कह रही हो कि प्यार करो मगर दोस्ती वाला प्यार करो। क्या ये संभव है ? एक म्यान में दो तलवारें रह सकती हैं क्या ? दोस्ती और प्यार, ये तो दोनों अलग अलग तलवारें हैं। इन्हें एक ही म्यान में रखना चाहती हो। क्यों म्यान की हालत खराब कराना चाहती हो ? दोस्ती और प्यार, दोनों एक साथ ? असंभव। 

मगर ये संभव हो गया। हुआ यूं कि जब हमारी शादी हुई थी तब हम प्रोफेसर थे। श्रीमती जी को तब खाना वाना बनाना ज्यादा आता नहीं था। बस, जैसे तैसे चपाती दाल बना लेती थीं। हमें तो बहुत कुछ चाहिए था मगर वे बड़े भोलेपन से कह देती थी कि "अभी तो इतना ही सीखा है। अब जब मायके जायेंगे तब और सीखकर आयेंगे"। 

हम क्या करते। मेरी मां भी मेरे साथ नहीं रहती थी कि वो सिखा देतीं। तो सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर ही आ गई थी। 

हमने तो कॉलेज में पढ़ते पढ़ते खूब खाना बनाया था। पूरे पांच साल। इसलिए बहुत अच्छा खाना बना लेते थे। तो हमने भी ठान लिया कि हम उन्हें खाना बनाना सिखायेंगे। बस, ट्रैनिंग शुरू हो गई। मगर समस्या यह थी कि वे बिना नमक मिर्च मसाला वाली सब्जियां पसंद करती थी। बिल्कुल मरीजों वाली और हमें तो अच्छा तड़के वाला खाना चाहिए था। मैं जब भी खाना बनाता, तब उसका मुंह खुला का खुला रह जाता "हाय, इतना घी ? इतना मसाला ? बहुत तीखा हो जाएगा ना" ? 

"क्या तीखा हो जाएगा ? इतना तो चाहिए ही"। 

"आपको तीखा बहुत पसंद है ना" ? 

"हां, वो तो है। अगर तीखा पसंद नहीं होता तो आप पसंद आती क्या" ? हमारी आंखों में शरारत उतर आई।

बस, इतना कहना था कि वो शरमा कर गुड़िया की तरह सिमट गई। उसकी शरमाने की सिमटने की अदा बहुत प्यारी थी। मैं आज भी उसे नहीं भूला हूं। अच्छा हुआ जो तुमने आज के विषय पर मुझे वह सब याद दिला दिया। 

हमने उन्हें सब कुछ बनाना सिखाया। मगर बुद्धू बनाना नहीं सिखाया। इस पर वह कहने लगी "आप तो खुद ही बुद्धू हैं तो किसी और को बुद्धू बनाना क्या सिखायेंगे" ? 

हद है ना यार। एक तो सब कुछ सिखाओ और ऊपर से बुद्धू होने का तमगा भी हासिल करो। वाह जी वाह। हवन करते हुए हाथ जलाना शायद इसे ही कहते हैं। 

सखि, कल तो हमारे साथ बहुत बड़ी चोट हो गई। तुम्हें तो पता है ही कि मैं सोमवार को यहां अजमेर आ गया था। यहां पर तो मैं अकेला प्राणी हूं। वैसे तुम और स्टार मेकर जरूर मेरे साथ रहते हो। हां, एक कामवाली बाई भी है जो मेरी सेवा करती है। 

पता है कल क्या हुआ ? कामवाली बाई का फोन आया "साहब मेरी लड़की कहीं निकल गई है इसलिए मैं उसे ढूंढने जा रही हूं बंगाल। इसलिए इस हफ्ते नहीं आ पाऊंगी"। 

मैं एकदम से शॉक्ड हो गया। अरे, इसलिए नहीं कि अब मेरा क्या होगा ? बल्कि इसलिए कि कामवाली बाई की लड़की करीब 25-26 साल की है और उसकी 5 साल की एक लड़की भी है और वह उस बच्ची को भी अपने साथ ले गई है। कहीं कुछ अनहोनी ना हो जाए उसके साथ ? वैसे वो अपने पति से झगड़ा करके गई है। कामवाली बाई बता रही थी कि उसका पति बहुत सीधा है और उसकी लड़की बड़ी बिगड़ैल है। पता नहीं आजकल की लड़कियां इतनी बिगड़ैल क्यों हैं ? इससे तो उनका बुरा ही तो हो रहा है, कुछ भला तो होगा नहीं ना। 

मुझे फिर वो जमाना याद आ गया जब हमने पति पत्नी के बजाय दोस्तों की तरह अपनी जीवन यात्रा शुरू की थी जो आज तक अनवरत चल रही है। एक म्यान में दो तलवारें बखूबी साथ साथ रह रही हैं। शायद यही है दोस्ती वाला प्यार। 

अरे, मैं एक बात तो बताना ही भूल गया। वो कामवाली बाई नहीं आई तो खाना मुझे ही बनाना पड़ा। वैसे ऑप्शन बहुत सारे थे मगर मैंने खुद बनाने का विकल्प ही चुना। इतने सालों बाद खाना बनाने का मौका मिल रहा था तो इसे मैं अपने हाथ से कैसे जाने देता ? 

तो अपनी पसंद के अनुसार इस भयंकर गर्मी में भी आलू के परांठे बना लिये। वो भी शानदार वाले। पता नहीं कितने साल बाद बनाये थे। पहले कभी कभी परांठे बनाकर श्रीमती जी को खिलाया करता था। अब तो बेटी, बहू और सेवकराम के कारण नहीं बना पाते हैं। सच में, मजा आ गया। तुम भी चखती तो तुम भी कहती कि परांठे बहुत स्वादिष्ट हैं।

चलो, अब चलते हैं। अभी तो खाना भी बनाना है ना। फिर ऑफिस भी तो जाना है ना। तुम्हारी तरह फ्री नहीं हूं मैं।


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