दोस्ती से आगे
दोस्ती से आगे
“अरे ! तुम यहाँ कैसे आए?” नेहा हैरानी से बोली।
“जहाँ तुम–वहाँ मैं” मैं कुछ शरारती अंदाज़ में बोला।
“अच्छा? बड़े आए” वो मुस्क़ुरते हुए बोली।
“ना ना, मैं कहाँ बड़ा, मैं तो एक छोटा सा नन्हा सा बच्चा हूँ” मैं ताली बजाते हुए बोला और वो हँस पड़ी।
“कमाल है, मैने कोई चुटकुला बोला क्या” मैं भोली सूरत बना कर बोला
“तुमको और कुछ आता भी नही है” नेहा ज़ोर से हँसती हुए बोली और हम दोनो अगले 10 मिंटो तक हँसते रहते।
कुछ तो बात थी उसकी मुस्कान में , जब भी उसको मुस्कुराते हुए देखता था तो बहुत सुकून मिलता था, मन कहता था की वो हमेशा हँसती रहे, उसकी आँखो की चमक और चेहरे की रोनक देखते ही बनती थी. जब भी मैं उसके साथ होता था समय का पता ही नही चलता था. सुबह से शाम हो जाती थी लेकिन मन नही भरता था. बस हम दोनो ऐसे ही एक दूसरे के साथ मज़ाक करते रहते थे. नेहा और मैं दोनो ही नौकरी करते थे और इसलिए सिर्फ़ रविवार का समय ही मिलता था हम दोनो को. महीने में 1-2 बार मुलाक़ात हो जाती थी और कभी कभार फोन पर बात. हम बहुत सालो से दोस्त थे और
शायद इसलिए एक दूसरे के साथ कोई औपचारिकता नही रखते थे. मस्ती मज़ाक हमेशा चलता रहता था।
नेहा का स्वाभाव बहुत ही शांत था, पर कुछ दिनो से वो थोड़ी चिड़चिड़ी सी लगती थी. मैने सोचा की एक बार पूछ कर देखूं, पर मन बोलता था की अगर कोई परेशानी हुई तो उसको फिर से याद करके अच्छा नही होगा. लेकिन जब इन बातों को 2-3 महीने का समय हो गया तो एक दिन हिम्मत करके बोल ही दिया।
“कोई परेशानी है क्या” मैं बोला।
“नही तो ? तुमको ऐसा क्यूँ लगा” वो थोड़ी झेपते हुए बोली।
“कुछ तो है, अगर ज़्यादा पर्सनल है तो मत बताओ” मैं बोला।
“अरे कुछ नही है” वो मुस्कुराते हुए बोली.
“नही , तुम झूठ बोल रही हो. कम से कम दोस्तों से तो झूठ मत बोला करो. वो भी ऐसे दोस्त जो तुमको बहुत सालो से जानते हो” मैं थोड़ा सा नाटकीय अंदाज़ में बोला।
यह सुनते ही वो थोड़ी गंभीर हो गयी. मैने तो सही में थोड़ा मज़ाक में बोला था, पर वो शायद मेरी बात समझ गयी।
“मुझे शादी नही करनी अभी” वो बोली।
“शादी?” मैं थोड़ा आश्चर्या से बोला।
“हाँ , मैने तुम्हे कभी बताया नहीं , पर 1 साल से मेरे घर वाले शादी के पीछे पड़े है” वो बोली।
“ओह, यह तो हर घर की कहानी है. तुम तो नौकरी के साथ पी.एच.डी कर रही हो ना?” मैं खुद को संभालते हुए बोला।
“हाँ , लेकिन घर वालो की इससे कोई फ़र्क नही पड़ता, उनको तो शादी करवाने से मतलब है। लड़की विदा हो बस किसी तरह” नेहा बोली और उसकी आँखे भर आई।
अपनी दोस्त को इस प्रकार देखकर मैं थोड़ा मायूस हुआ, पर यह समय मायूस होने का नही था. मैंने उसको हमेशा मुस्कुराते हुए देखा था, हमेशा लड़ते हुए और खिलखिलते हुए. अपने दोस्तों से तो वो लड़ लड़ कर काम करवाती थी. खुद भी हँसती थी और दूसरो को भी हसाती थी. पर कोई नही जानता था की इस हसी के पीछे भी कुछ है. उसको देखकर मुझे लगा की शायद कुछ लोगो के सामने हम नही लड़ पाते. नेहा के साथ भी कुछ ऐसा ही था. वो दोस्तों से चाहे कितना भी लड़ ले पर अपने माता-पिता के सामने कुछ नही बोलती थी. यह उसने मज़ाक मज़ाक में ज़ाहिर किया था, पर हम बेवकूफ़ दोस्त कभी समझ नही पायें. लेकिन आज मैं उस बात को समझ रहा था.
“अरे! तो मैं कर लेता हूँ तुमसे शादी” मैं अचानक से बोला।
“हैं? सूरत देखी है अपनी आईने में?” वो मुझे देखकर बोली. अब जो आँसू उसकी पलको में थे वो सूख चुके थे, पर दिल का दर्द अभी भी दिल में ही था. “कमाल है. बिल्कुल हीरो लगता हूँ ना” मैं बोला.
“हीरो? हा हा हा” और वो ज़ोर से हँस पड़ी।
खिलखिलते हुए उसको बहुत दिनो के बाद देखा था. मैं भी उसकी हँसी में शामिल हो गया.
“अच्छा बाबा मैं चली वरना तुम तो मुझे हसा हसा कर मार डालोगे” वो बोली और हम दोनो अपने अपने रास्ते निकल पड़े।
आज की मुलाक़ात ने कुछ चीज़े मुझे सोचने में मज़बूर कर दिया था और उसी के बारें में सोचते सोचते मैं आगे बाद रहा था की मुझे एक आवाज़ सुनाई दी।
“डी-वी ”
“अरे! रीना?” मैने देखा और मैं मुस्कुराया।
“तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” वो शरारती अंदाज़ में बोली।
“तुम्हारी भाभी ढूँढ रहा हूँ” मैं चुटकी लेते हुए बोला।
“हा हा हा” तुम अभी भी वैसे ही हो, वो हंसते हुए बोली।
“और बताओ ज़िंदगी कैसी चल रही है” मैने पूछा।
“बस सब बढ़िया. नौकरी कर रही हूँ, और हा अगले महीने मेरी शादी है. शादी में आना मत भूलना” वो हँसते हुए बोली।
“अरे वाह, बधाई हो. कौन कौन आ रहा है?” मैने पूछा।
“सब दोस्त आ रहे है, स्कूल के, कॉलेज के और पी.जी. के......उम्म्म एक मिनट, तुम्हारी नेहा से बात होती है क्या?” रीना बोली
“हाँ कभी कभी, तुम्हारी नहीं होती क्या?” मैने आश्चर्या से पूछा।
“नही, दो सालो से नही हुई, पी.जी. के बाद तो वो गायब ही हो गयी” रीना बोली।
“वो नौकरी के साथ साथ पी.एच.डी. कर रही है” मैं बोला
“क्या? सच में? लेकिन उसके घर वाले तो मना कर रहे थे?” रीना थोड़ा सोचते हुए बोली।
“क्या?” मैं ज़रा असमंजस में पड़ गया.
“मैं हमेशा से यही सोचता था की नेहा अपने मम्मी पापा की हर बात मानती है और वो ही उसको पी.एच.डी. करवाना चाहते थे ताकि वो टीचर बने” मैं बोला
“नही, अंकल तो हमेशा से यही चाहते थे की उसकी शादी हो जाए और वो खुश रहे. कम से कम सौतेली मा से तो छुटकारा मिले” रीना थोड़े गंभीर अंदाज़ में बोली।
“सौतेली माँ ?” मेरे चेहरे का रंग थोड़ा उड़ा उड़ा सा हो गया. नेहा ने कभी किसी को इस बारें में कुछ नही बताया था. पर शायद एक ही पी.जी. शेयर करने की वजह से कुछ बातें छुपाई नही जाती।
“ओह मैं चली, बहुत काम बाकी है” रीना बोली और जाने लगी ”और हा अगर नेहा मिले तो उसको प्लीज़ मेरी तरफ से इन्वाइट कर देना या मेरा यह नंबर उसको दे देना”
“ठीक है” मैं उसका नंबर सेव करते हुए बोला।
थोड़ी दूर जाने के बाद एक बगीचा दिखा तो मैं वहाँ चला गया. वहाँ बैठने के लिए जगह थी और ठंडी हवा भी थोड़ी थोड़ी बह रही थी. पर आज कुछ अजीब सा प्रतीत हो रहा था. अपनी अच्छी दोस्त के बारें में ऐसा सुन कर. “क्या रीना झूठ बोल रही थी?” मैं सोचने लगा।
“पर नेहा ने तो कभी मुझे इस बारें में बताया ही नही?” मेरे विचार खुद से ही उमड़ रहे थे. फिर थोड़ा ज़ोर डालने में एहसास हुआ की हमने कभी भी घर वालों के बारें में बातें की ही नहीं . बहुत ही हैरानी की बात है पर यह सच था. आजकल के मित्र घर वालों को दोस्तों से दूर ही रखते है. बस नाम बता देना ही काफ़ी है. मिलना तो शायद ही कभी होता है, और हमारे साथ भी यही था. यही सोचते सोचते मैं अपने घर पहुच गया।
अगले हफ्ते मैने नेहा को मेसेज किया।
“और कल क्या कर रही हो”
“कुछ नही?” उसका जवाब आया.
“चलो फिर कल 11 बजे” मैने पूछा.
“ठीक है पक्का” उसनें जवाब दिया और अगले दिन की मुलाक़ात पक्की हो गयी।
“हेल्लो मेडम, क्या हाल चाल” मैं नेहा को देखते हुए बोला।
“मेडम? आज पी की आए हो क्या तुम?” नेहा हँसते हुए बोली।
“नही , लेकिन बोतल लाया हूँ तुमको पिलाने के लिए” मैं बोला।
“क्यूँ?” वो हैरानी से बोली।
“ताकि सारा सच तुम बता सको” मैं बोला और मैने उसको रीना का नंबर डाइयल करके दिया.
कुछ देर रीना से बात करने के बाद उसनें मेरी तरफ देखा. मैं थोड़ा सीरीयस मूड में था और शायद वो जान गयी थी की क्यूँ।
“क्या बताती तुमको?” वो बोली।
“कुछ तो बताती?” मैं बोला।
“उससे क्या होता? सब कुछ घर में वैसा ही रहता?” वो बोली और उसका चेहरा उतर गया.
“क्या हो रहा है घर में, और यह क्या मामला है सौतेली मा का. तुमने कभी बताया ही नही” मैं थोड़ा गुस्से में बोला
“क्या बताती मैं तुम्हे, की मेरी मम्मी अब इस दुनिया में नही है और मैं सौतेली मा के साथ रह रही हूँ. या यह बताती की सौतेली मा मेरे साथ कैसा व्यवहार करती है. या यह बताती की मेरा घर जाने का मॅन नही करता. क्या मेरे यह बताने से सब कुछ ठीक हो जाता” नेहा बोली।
उसके चेहरे में गुस्सा और मायूसी दोनो ही थी. वो उठी और वहाँ से चली गयी।
मैं थोड़ी और देर वही बैठा रहा. मैं इस सोच में पड़ा था की मैने कुछ ग़लत किया क्या. क्या दोस्ती में अपनी बात भी नही बोल सकते. क्या मेरा गुस्सा जायज़ नही था?” यही सोचते सोचते मैं फिर घर की तरफ चल पड़ा।
“अरे आज फिर?” रीना बोली।
“क्या?” मैं थोड़ा उदास चेहरे से बोला।
“ओह! क्या हुआ तुम्हे?” रीना मेरा चेहरा देख कर बोली।
“कुछ नही” मैंने छुपाने की कोशिस की.
“बता दो अब शायद मैं कुछ हल निकाल पाऊँ” वो बोली.
मैने रीना को नेहा से हुई पिछली मुलाक़ात के बारें में सब कुछ बता दिया।
“हे भगवान? तुम पागल हो क्या?” रीना एक दम से बोली।
“क्यूँ क्या हुआ?” मैने पूछा. "क्या दोस्ती का हक़ भी ग़लत है".
“एक बात बताओ? तुमने कितनी बार अपनी मम्मी की डाँट खाई है आज तक?” रीना ने पूछा.
“यही कोई 30-40 बार” मैं बोला
“तुम्हे कैसा लगा उन 30-40 बार” वो बोली।
“स्वाभाविक है की मुझे गुस्सा आया” मैं बोला और यह बोलते ही मैं ठहर गया।
“समझ गये ना अब” रीना मेरा चेहरा देखते हुए बोली।
“हा” मैं थोड़े धीमे स्वर में बोला।
“अच्छा मैं चली अब” वो बोली और चली गयी।
मैं फिर से उसी जगह जाकर बैठ गया।
कभी कभी हम दोस्ती के नाम में कुछ ऐसी चीज़ो में समय निकाल देते है जिससे हमारे रिश्तो में कोई असर नही होना चाहिए. यह भी कुछ ऐसी ही बात थी. अगर नेहा की सौतेली मा है तो क्या वो मेरी दोस्त नही होगी. जब मैने आजतक उसे उसके घरवालों के बारे में नही पूछा तो ऐसा सुनने के बाद क्यूँ मैं इतना उत्सुक हो गया की उसके गम का भी एहसास नहीं हुआ।
“हे भगवान मैं कितना बेवकूफ़ हूँ. जो मेरे साथ 30-40 दिन हुआ है, वो तो उसके साथ हर रोज़ होता है. मैं उसके दर्द को और कैसे बड़ा सकता हूँ. अगर वो मेरी दोस्त नही होती तो मुझसे मिलने क्यों आती? यह मैने क्या कर दिया. ज़्यादा समझदारी में मैं यह भूल गया की उसकी परिस्थिति क्या है.” मैने सोचा और उसी पल नेहा को मेसेज किया “मुझे माफ़ करदो, मैं तुम्हारा दिल नही दुखाना चाहता था”
पर उसका कोई जवाब नही आया. शायद वो अब भी मुझसे नाराज़ थी और उसका गुस्सा भी ज़ायज़ था. मैं उसके घर आजतक नही गया था और ना वो मेरे घर आई थी. और अब तो वैसे भी उसके घर जाना नही बनता था क्योकि वो वैसे ही गुस्से में थी. अब मेरे पास इंतेज़ार के अलावा कोई चारा नहीं था।
2 हफ्ते बाद उसका मेसेज आया।
“हेल्लो ”
“हाई, क्या कर रही हो” मैने भेजा
“कुछ नही” जवाब आया.
“अब भी गुस्सा हो क्या?” मैने पूछा
“हाँ हूँ” वो बोली
“फिर कैसे जाएगा गुस्सा?” मैने पूछा
“आइसक्रीम खाकर” उसका मेसेज आया.
यह पड़ते ही मैं हँस पड़ा।
“ठीक है इस रविवार को आइस क्रीम पक्का” मैने भेजा।
“ठीक है” उसने लिखा
फिर हम दोनो रविवार को मिले।
“और रानी लक्ष्मीबाई जी क्या हाल आपके” मैं बोला।
“हा हा हा हा” वो हँसने लगी।
“अरे यह क्या हुआ, आइसक्रीम से पहले ही गुस्सा गायब” मैं बोला.
“हा, जल्दी ऑर्डर करो आइस क्रीम” नेहा बोली।
“हा हा, ओक” मैं बोला और आइस क्रीम का ऑर्डर दे दिया।
“वैसे मेरे शादी के प्रपोज़ल का क्या हुआ?” मैने हँसते हुए पूछा।
“वो तो हो ही नही सकता?” वो बोली।
“क्यूँ क्यूँ” मैं आँखे ततेरता हुआ बोला।
“मैं फिर एक अच्छा दोस्त खो दूँगी ना” वो बोली और तभी आइसक्रीम आ गयी।
“अच्छा? चलो ठीक है” मैं बोला मूह बनाते हुए।
“वैसे तुम्हारी शादी का क्या? कब तक ऐसे ही भागती रहोगी?” मैने पूछा
“जब तक भाग सकती हूँ” नेहा एक गहरी साँस लेते हुए बोली।
“लेकिन इससे तुम्हारी परेशानी ही बढ़ेगी” मैं बोला. शायद मैं कुछ और सुनना चाहता था.
“शादी करके कौन सा परेशानी हाल हो जाएगी? क्या पता लड़का कैसा होगा?” नेहा ने कहा.
“तो ऐसा कब तक चलाओगी” मैं बोला।
“पता नही” उसनें बोला और उसकी आइस क्रीम तब तक ख़तम हो चुकी थी।
“चलो कोई नही, हो जाएगा सब ठीक” मैं बोला।
“पता नही” नेहा बोली और मुस्कुराने की कोशिश करने लगी।
फिर कुछ देर और बात करने के बाद हम दोनो अपने अपने घर की तरफ चल पड़े. नेहा दोस्तों की हर परेशानी में सुझाव देती थी और होसला बड़ाती थी. पर कोई नही जानता था की वो खुद की दुनिया में कितनी फँसी हुई है. और शायद नेहा भी हर किसी की तरह यह नही चाहती थी की कोई उसकी हालत पर तरस खाकर उससे शादी करे।
ऐसे ही समय बीतता गया और फिर 2 साल बाद हम दोनो की मुलाक़ात फिर हुई।
“अरे तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ” मैं नेहा को देखते हुए बोला. वो चमक जो उसके चेहरे में हुआ करती थी वो थोड़ी कम दिख रही थी. हम दोनो की बातें भी बहुत कम हो गयी थी. मैं अपनी नौकरी में कुछ ज़्यादा व्यस्त हो गया था और नेहा अपनी रिसर्च वर्क में।
“कुछ नही” वो धीरे से बोली।
“सही सही बताओ क्या हुआ?” मैने पूछा।
“कुछ नही” वो हमेशा की तरह छुपाते हुए बोली।
“चलो कोई नही मत बताओ” मैं धीरे से बोला।
“मेरा तो ठीक है पर तुम क्यूँ इतने सीरीयस हो चले हो” नेहा बोली।
“कभी कभी होना पड़ता है” मैं बोला।
“ओहो, शादी की बात है क्या” वो हंसते हुए बोली।
“और क्या हो सकता है” मैं और धीरे से बोला।
“तो कर लो शादी” वो हँसते हुई बोली।
“तुम मानती ही नही” मैं बोला पर मुस्कान गायब थी।
“अरे मैं ही क्यूँ, हम तो दोस्त है ना अच्छे” नेहा बोली।
“इसलिए ही तो बोल रहा हूँ की हम दोनो अच्छे दोस्त है, मैं जब भी शादी के बारें में सोचता हूँ तो एक अच्छे और समझ से चलने वाले रिस्ते के बारें में सोचता हूँ. और वो उसके साथ ही हो सकता है जिसको तुम जानते हो और अपनी बातें बता सकते हो. और यह तुम भी जानती हो की मैं सिर्फ़ तुमसे ही अपनी बातें डिसकस करता हूँ. घर वाले तो ऐसे पीछे पड़े है की जैसे अगले साल क़यामत आ जाएगी. अगले हफ्ते हम सब मुंबई जा रहे है और पता नही कब आएँगे” मैं बोलता गया.
आज मेरा मन कह रहा था की सब कुछ बोल दू ,जो भी मैं समझता हूँ या सोचता हूँ. क्योकि मैं जानता था की जो मेरे घर में 1 साल से हो रहा था मैं उसको ज़्यादा दिनो तक नही सह पाऊँगा. इसलिए आज मैं अपने आपको रोकना नही चाहता था. मैने हमेशा नेहा को दोस्त की तरह ही देखा था पर आज जब शादी की बात आई तो मुझे लगा की शायद वो ही ऐसी लड़की है जो मुझे जानती है और जिसको मैं थोड़ा बहुत जानता हूँ. दूसरी तरफ से मैं उसको ज़बरदस्ती भी नही करना चाहता था, इसलिए मैने ज़्यादा ज़ोर नही देना ही सही समझा. बस अपने दिल के बात बोलकर चुप हो गया.
“अरे रहने दो, कोई क़यमत नही आएगी” नेहा बोली और फिर कुछ देर में हम दोनो चले गये.
नेहा के जाने बाद मैं थोड़ा हल्का ज़रूर हो गया था. जो भी मैं कह सकता था मैं कह चुका था और अब नेहा की बारी थी. मेरे पास कुछ ही दिन बचे थे मुंबई जाने से पहले. मैं यह जानता था की अगर नेहा ने मुंबई जाने से पहले कुछ नही बोला तो वो नही चाहती शादी करना।
“सामान पेक कर लिया क्या” माँ बोली.
“हा , बस हो गया” मैं बोला
“कल की ट्रेन है हमारी दोपहर 2 बजे की, इसलिए आज ही सब तैयारी करले ” मम्मी बोली.
“हा , मैने सब पेक कर लिया है बस अब 1-2 दोस्तों से मिलने जा रहा हूँ” मैं बोला और घर से निकल पड़ा.
अपने 2 दोस्तों से मिलने के बाद मैं घर की तरफ जा रहा था की अचानक से फोन बजा. फोन की तरफ देखा तो एक मेसेज आया था।
“तुम चले गये क्या” नेहा का मेसेज था।
“नही कल की ट्रेन है” मैने जवाब दिया।
“मुझे तुमसे मिलना है अभी” नेहा ने लिखा।
“लेकिन अभी क्यूँ” मैने टाइप किया।
“अरे तो क्या मुंबई पहुचने के बाद मिलोगे. चलो फिर 1 घंटे में मिलते है” नेहा का जवाब।
“ठीक है” मैने लिखा और मैं तैयार होने घर आ गया।
1 घंटे बाद हम फिर से उसी जगह मिले जहाँ हम हर बार मिला करते थे.
“तुम सही में जा रहे हो” नेहा बोली।
“कमाल है, अब आकाशवाणी में बुलवाऊं क्या” मैं बोला।
“अरे लेकिन अब मुझे आइस क्रीम कौन खिलाएगा” वो शैतानी अंदाज़ में बोली।
“खुद खा लेना. वैसे भी हर बार खुद ही तो खाती थी ना, मैं तो बस पैसे देता था. अगले बार से खुद ही दे देना पैसे” मैं हँसते हुए बोला।
“अगली बार से? चलो फिर मँगाओ आइस क्रीम” नेहा हंसते हुए बोली।
मैं पिछले 15 मिनिट से नेहा को देख रहा था और वो बहुत ही फ्रेश लग रही थी. बहुत समय के बाद वही पुरानी नेहा को देख कर बहुत अच्छा लगा था. मुझे खुशी थी की वो खुश है. मैने सोचा की पूछ ही लेता हूँ की क्या अच्छा हुआ उसकी ज़िंदगी में।
“आज तो तुम बहुत खुश लग रही हो. क्या बात है ?” मैं उसको छेड़ते हुए बोला.
“अरे हा तुमको बताना भूल गयी, मेरी शादी होने वाली है” वो इतराते हुए बोली.
“सच्ची? हे भगवान यह तो कमाल है” मैं खुशी से बोला और मेरे चेहरे पर मुस्कान एक दम से दुगनी हो गयी. “फिर तो तुमको 2 आइस क्रीम पक्का”
“यह हुई ना बात” नेहा खिलखिलती हुई बोली.
“बधाई हो, पर वो बेचारा लड़का कौन है जिसके बुरे दिन आने वाले है” मैं मज़ाक के मूड में बोला.
“वही जो मुझे 2 आइस क्रीम खिला रहा है” वो बोली और चुप हो गयी
“क्या??” मैं तोड़ा रुका. मुझे विश्वाश नही हो रहा था की नेहा क्या बोल गयी थी. मुझे लगा की शायद मुझसे मज़ाक कर रही होगी।
“शक्ल देखी है अपनी आईने में? ” मैं बोला
“हाँ कल ही देखी ध्यान से और सोचा की तुम्हारी शकल मेरे साथ चल जाएगी” नेहा हंसते हंसते बोली और कुछ देर में सीरीयस हो गयी।
“तुम सही बोल रहे थे, जब मैने भी सोचा की शादी किससे होगी तो लगा की कोई ऐसा होना चाहिए जिसको अपनी दिल के बात बोल सकूँ और जो मुझे अपने दिल की बात बोल सके. और ऐसे दोस्त सिर्फ़ हम दोनो ही है. मुझे नही पता की हमारा भविष्य क्या होगा पर यह ज़रूर जानती हूँ की अगर मैं तुम्हारे साथ नही रह पाई तो शायद किसी के साथ नही रह पाऊँगी.” नेहा बोल कर चुप हो गयी।
मुझे अभी भी अपने कानो पर विश्वास नहीं हो रहा था की जिस लड़की से मैं अपनी बातें शेयर करता था और ज़िंदगी का एक हिस्सा शेयर करता था, अब सारी ज़िंदगी शेयर करूँगा. यह बात बहुत ही खुशी की थी और शायद इसलिए मेरे होटो पे मुस्कान आ गयी थी. मैने नेहा की तरफ देखा और वो भी मुस्कुरा रही थी. इन पलो में कुछ ऐसा लग रहा था की सारें गम मिट गये है. सिर्फ़ मुस्कुराहट और खुशिया ही खुशियाँ आने वाली है. मैं खड़ा हुआ और नेहा को गले से लगा लिया. इस गले मिलने का मतलब बहुत कुछ था, शायद एक नये सफ़र की तैयारी थी जो हम एक दूसरे के साथ करने को राज़ी हो गये थे।
बहुत ही अजीब सी बात थी. ना हमने कभी प्यार का इज़हार किया था और ना ही कभी एक दूसरे को इस शब्द में ढालने की कोशिश की थी. और आज इस सब के बावजूद हम इस मोड़ पर आ गये थे,मैने जितनी भी कहानियाँ देखी थी उसमें या तो कोई प्यार का इज़हार करता था या फिर सीधा शादी. लेकिन हमारे रिश्ते में तो कभी किसी ने प्यार का इज़हार नही किया और सीधा शादी की बात आ गयी. आज मुझे एक बात समझ में आई थी की प्यार हमारी कल्पना से भी आगे है. प्यार का कोई एक रूप नहीं है. यह तो एक भावना है जो हम दूसरों के प्रति व्यक्त करते है. यह तो एक माध्यम है जिसके ज़रिए हम एक दूसरे की ज़िंदगियो को जोड़ते है. आज जब मैने नेहा को गले लगाया तो कुछ ऐसा प्रतीत हुआ की शायद यही प्रेम है।