दो राह

दो राह

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मैं उससे कह ना पाया,

वो मुझसे कह ना पायी,

बीत गये लम्हे इंतज़ार में,

ना बुझी प्यास, ना अग्न लगाई,

 

अधूरे हो तुम, अधूरा हूँ मैं,

पर ज़िंदगी पूरी होती है,

बह जाओ लहरो संग तुम,

बर्बादी, सुंदर हो भी रोती है,

 

पर फिर भी शांत ही हूँ मैं,

तुम भी शायद ऐसी ही हो,

मैं भी बदल ना पाया खुद को,

शायद तुम भी वैसी ही हो,

 

इसलिए छोड़ दिया है अब,

इस कशमकश को दो राहों में,

वक़्त ही शायद करेगा फ़ैसला,

बांहों में होंगे या मिलेंगे आहों में।।


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