दोस्ती की स्मृतियां
दोस्ती की स्मृतियां
जिंदगी में दोस्ती और दोस्तों कि बहुत अहमियत होती हैं। जिंदगी के पंद्रह साल हम लोग जिन चेहरों से मिलतें है, उनके साथ रहते हैं, फिर बिछड़ जाते हैं। समय का पहिया इतना तेज घूमता है, कि कब आपका वर्तमान, भूतकाल बन जाता है, सच पता ही नहीं चलता। वो रात जागकर पढ़ना, ट्यूशन जाना, मजाक मस्ती करना, मेला घूमना, कान पकड़ कर क्लास के बाहर खड़ा होना। ये सब जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, शायद नहीं यही तो असली जिंदगी थी।
आशुतोष को मैं दस साल की उम्र से जानती थी। हमारी मुलाकात स्कूल में हुई थी और हम लोग एक ही कोचिंग सेंटर में पढ़ते थे।
मैं उससे ज्यादा बातें नहीं करती थी क्योंकि मुझे किसी से भी घुलना मिलना ज्यादा पसंद नहीं है। मैं सिर्फ लड़कियों से ही दोस्ती करती थी क्योंकि वैसे भी लड़कों से बात करने पर, थोड़ा मजाक सा बन जाता है।
आशुतोष बुद्धिमान लड़का था और हमेशा फर्स्ट क्लास लाता ही था। एक बार मैं सारे विषयों में फर्स्ट आ गई तब से हम दोनों की कांटे की टक्कर चालू हो गई। मैं तो कभी ईर्ष्या नहीं करती क्योंकि मुझे पता था, कि आशुतोष अच्छा स्टूडेंट हैं और मैं सिर्फ मेहनत कर सकती हूं, मुझे अपने पर भरोसा रखना चाहिए, न कि दूसरे से ईर्ष्या करनी चाहिए।
एक बार परीक्षा के दौरान, जिस दिन गणित की परीक्षा थी मेरी तबीयत ठीक नहीं थी, वैसे भी मेरा हाल गणित में ज्यादा अच्छा नहीं था। उस दिन आशुतोष ने अपना गणित का पेपर मुझे देकर मेरी मदद की थी। बस तभी से मुझे पता चला कि वो सिर्फ ईर्ष्यालु नहीं बल्कि एक अच्छा इंसान भी हैं। वो चाहता तो मेरी कभी मदद नहीं करता लेकिन उसने मदद की और मैं गणित की परीक्षा पास कर गई।
दसवीं कक्षा के बाद सारे छात्र छात्राएं अलग-अलग हो गए।
आज पांच साल बीत चुके थे तब फेसबुक पर फ्रेंड बनाया। कुछ बातें भी हुई और पता चला कि आशुतोष रेलवे में नौकरी करता है।
खुशी बहुत हुई और अच्छा भी लगा।
आप जिंदगी में जितने चाहे उतने दोस्त बनाए, मगर हां वक्त पर अपनी दोस्ती निभाइए। जो दोस्ती वक्त पर निभाते हैं , उन्हें हम कभी भी नहीं भूलते। विस्मृत स्मृतियों में वे स्मृतियां सदैव जीवित रहती हैं , चाहे कितनी ही छोटी या बड़ी हो वे स्मृतियां उनकी ज़रा सी याद आपको सालों पहले वाले बचपन में ले जाती हैं। आपको अपनी भूली बिसरी गलियों में फिर ले जाती हैं।