दोस्ती के रंग
दोस्ती के रंग
"आप यूँ उदास क्यों बैठे हो,हर बार की तरह इस बार भी हमे रमेश भय्या के घर रंग लगाने नहीं जाना क्या।"माया ने ड्राइंग रूम में बैठे अपने पति कल्पेश से पूछा।तो वह बोला "जाना तो था पर"
"पर क्या" पत्नी ने फिर आश्चर्य से पूछा।
कल्पेश बोला "तुम तो जानती ही हो,अभी कुछ दिनों पहले मैंने एक समारोह में सबके सामने उसका मजाक बना दिया था।बस तभी से वह मुझसे कुछ नाराज है,मेरे फोन भी नही उठता"।
"तो क्या बस इतनी सी बात पर आप उनसे अपनी बचपन की दोस्ती तोड़ देंगे?" कल्पेश की बात सुन उसकी पत्नी बोली।
"और फिर यह भी सोचिये की इसमें गलती भी तो आपकी ही है।चलिये जो हुआ सो हुआ, फिर आज तो दिन ही सारे गिले शिकवे भूलने का है।तो आप भी आज उनसे मिलकर अपने इस अबोले को खत्म कर लीजिए।" पत्नी की बात मान जब वह सपरिवार रमेश के घर पहुंचा तो, वह भी आज काफी उदास बैठा था।
फिर उसके मातापिता से आशीष ले जब कल्पेश अपनी गलती का अहसास लिये।हाथ जोड़ता हुआ, रमेश के समीप गया। तब उसने भी कल्पेश को उसके कंधों से पकड़ अपने गले से लगा लिया।और फिर कुछ ही पलो मे उनकी दोस्ती के रिश्ते पर आई धुंध छट गई।और दोनों के चहरे खिलखिला उठे।कल्पेश को यूँ लगा कि इस बार की होली उनकी दोस्ती के कमजोर व फीके पड़ते रिश्ते को ,फिर से मजबूत और सुर्ख बना गई।
