Dinesh Divakar Stranger

Drama

5.0  

Dinesh Divakar Stranger

Drama

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य

दिव्य दृष्टि- एक रहस्य

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मैं बस से उतरने वाला था तभी किसी ने मुझे पीछे से धक्का दिया, मैं नीचे गिर पड़ा। मुझे बहुत गुस्सा आया मैं पीछे मुड़कर कहने ही वाला था कि मुझे धक्का किसने दिया। मेरे कहने से पहले ही एक बड़े ट्रक ने बस को ज़ोर से टक्कर मारा और बस सीधे खाई में जा गिरा। मैं हैरान सा खड़ा था कि अचानक ये सब क्या हो गया, अगर मुझे किसी ने धक्का नहीं दिया होता तो आज मैं भी मर जाता। इसका मतलब मुझे जो सपना आया था वो सपना सच हो गया क्या मुझे सच में दिव्य दृष्टि प्राप्त है ??

इस शहर में मेरा ट्रांसफर नया नया ही हुआ था मैं अपने सारे सामानों को अकेले ही व्यवस्थित कर रहा था क्योंकि मेरा अभी तक शादी नहीं हुआ था और मम्मी पापा भी दूसरे शहर में रहते थे। सभी सामानों को जमाते जमाते बहुत रात हो गई मुझे दिन भर के थकावट के कारण नींद भी बहुत आ रही थी जैसे ही मैं बिस्तर पर लेटा पता ही नहीं चला कि मैं कब सो गया। सुबह सुबह ही मैं ऑफ़िस के लिए निकल पड़ा। आज नये ऑफ़िस में मेरा पहला दिन था। ऑफ़िस दूर था तो मैं जाने के लिए बस में बैठ गया थोड़ी देर में बस चल पड़ा। बस में जैसे बहुत भीड़ रहती थी वैसा नहीं था जितने सीट थे उतने ही यात्री थे। थोड़े समय बाद टीटी ने मेरे ऑफ़िस का नाम पुकारा उस समय मैं कुछ सोच रहा था टीटी की आवाज़ सुनकर मैं बोल पड़ा- रुको भैया मुझे यही उतरना है। मैं बस से उतरने ही वाला था कि किसी ने मुझे धक्का दिया और मैं ज़मीन पर धम्म से गिर गया, पीछे मुड़कर मैं उन्हे कहने ही वाला था कि उससे पहले एक ट्रक ने ज़ोर से बस को टक्कर मारा बस खाई में जा गिरा।


मैं ज़ोर से चिल्लाया तभी मेरी आँखें खुल गयी, मैं डर के मारे पसीने से तरबतर हो गया। मैने कहा क्या यह सपना था इतना डरावना सपना ? क्या यह सपना सच में होने वाला है। (क्योंकि मैंने सुना था कि सुबह के सपने सच होते है) 

तभी मुझे घड़ी दिखाई दिया 7:00 बज चुके थे ओ तेरी सात बजे गया मैं तो ऑफ़िस के लिए लेट हो जाऊँगा, मैं जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा लेकिन मेरे मन में सपने वाली घटना बराबर चल रही थी मैं सपने को भुलाने की जितनी भी कोशिश करता है बेकार था। मैंने अपने आप को समझाया ऑफ़िस तो जाना पड़ेगा और यह सपना शायद सपना ही हो सपने भी भला सच होते हैं क्या ? यह कहकर मैं अपने ऑफ़िस के बारे में सोचने लगा आज मेरे नये ऑफ़िस में पहला दिन है तो एन्ट्री भी ज़बरदस्त होना चाहिए।

मैं तैयार होकर बस का इंतजार करने लगा। थोड़े समय में बस आ गया मैं बस के अंदर प्रवेश हुआ। बस में मिडीयम लोग थे मैं भी एक सीट पर जाकर बैठ गया और थोड़े समय बाद बस चल पड़ी। मैं अपने ऑफ़िस के बारे में सोचते सोचते जा रहा था तभी मेरी नजर पीछे के एक ट्रक पर पड़ी वह बहुत देर से हमारे बस का पीछा कर रहा था। मैंने उस बात पर ज्यादा ध्यान न देते हुए अपने ख्यालों में फिर खो गया। तभी टीटी ने आवाज़ लगाई- सत्यम ऑफ़िस वाले तैयार रहेंगे। ( सत्यम मेरे ऑफ़िस का नाम है)

तभी वह ट्रक जो बहुत देर से हमारे पीछे था अचानक हाई- स्पीड से आगे बढ़ गया ऐसा लगा जैसे वह टीटी कि आवाज़ को सुनकर आगे बढ़ गया।

तभी टीटी ने दोबारा आवाज़ लगाई- सत्यम ऑफ़िस आ गया है जिसको जिसको उतरना है उतर जाएं।

मैं जल्दबाजी में बस इतना कह पाया- "मुझे, मुझे उतरना है भाईया।"

बस रूक गया मैं बस से उतरने के लिए आगे बढ़ा तभी मुझे सपने वाली बात याद आयी मैं उसके बारे में सोचते सोचते उतर रहा था कि तभी किसी ने मुझे पीछे से धक्का दिया मैं मुंह के बल ज़मीन में गिर पड़ा मुझे बहुत गुस्सा आया।

मैं पीछे मुड़कर बोला- "कौन है बे जिसने मुझे धक्का दिया।" लेकिन ये क्या दरवाज़े पर तो कोई नहीं है। तभी एक ट्रक हाई- स्पीड से आकर बस को ज़ोरदार टक्कर मारा।

मैं बोलने ही वाला था कि - "संभल कर बे सामने बस है" लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी बस हवा में उड़ कर खाई में जा गिरा, तभी मैंने ट्रक को देखा अन्दर कोई नहीं था मैं डर गया कि एक सेकंड में ये सब क्या हो गया।

अगर किसी ने मुझे बस से धक्का न दिया होता तो शायद मैं भी इस हादसे का शिकार हो जाता तभी मुझे सपने वाली बात याद आया।

यह तो बिल्कुल वैसा ही हुआ जैसे मैंने अपने सपने में देखा था।


मैं सड़क पर बैठे बैठे उन उलझनों में खोया था कि तभी मेरे दोस्त रोहन का फोन आया ( रोहन मेरे साथ ऑफ़िस में काम करता था उसका भी ट्रांसफर मेरे साथ ही हुआ था) वह बोला- "अबे प्रेम के बच्चे कहाँ है तू कब से बास तुम्हारे आने का वेट कर रहे हैं आज हमारे ऑफ़िस में पहला दिन है और तू पहले ही दिन लेट कर रहा है तेरे चक्कर में बास की डांट मुझे सुन्नी पड़ी।"

मैं बोला- "अरे यार, मैं तो भूल ही गया था तू बास को समझा मैं बस दो मिनट में आता हूं।

रोहन- "हाँ ठीक है लेकिन जल्दी आइयो।"

मैं बस वाली बात को भुलाकर जल्दी से ऑफ़िस पहुंचा। बास ने मुझे थोड़ी डांट लगाई और उसके बाद मैं अपने काम में लग गया।

लंच के समय

रोहन- "अबे क्या हुआ था जो तू इतना देर लगाया ऑफ़िस आने में?

प्रेम- "क्या बताऊं यार आज मेरे साथ एक अजीब घटना घटी।"

प्रेम ने रोहन को अपने सपने वाली बात और सुबह के एक्सीडेंट के बारे में बताया।

उसके बाद प्रेम बोला- "क्या सच में सपने सच होते हैं क्या ?"

रोहन- "तू भी कैसी बात कर रहा है प्रेम कहीं सपने भी सच होते हैं क्या।"

प्रेम- "नहीं यार मैं सच कह रहा हूं जो मैंने सपने में देखा वही आज सुबह सच हो गया। तुझे यकीन नहीं तो न्यूज देख ले, बस एक्सीडेंट वाली खबर को ज़रूर बता रहे होंगे।"

रोहन मोबाइल में समाचार देखता है सच में एक्सीडेंट वाली खबर बता रहे थे।

उसे देखकर रोहन बोला- "लेकिन यह कोई इत्तेफ़ाक भी तो हो सकता है ना प्रेम ऐसे ही किसी के सपने सच कैसे हो सकता हैं।"

प्रेम- "हाँ हो सकता है ? लेकिन मेरा दिल इस बात को मान ही नहीं रहा ?"


तभी लंच समय खत्म हो गया

रोहन- "चल छोड़ यार इस बात को लंच खत्म हो गया है चल चलते हैं।"

प्रेम- "तू चल मैं आता हूं थोड़ी देर में।"

रोहन के जाने के बाद मैं फिर से उसी एक्सीडेंट के बारे में सोचने लगा।

तभी एक ज़ोरदार थप्पड़ की आवाज़ से मेरा ध्यान हटा और तब मेरा ध्यान उस आवाज़ की ओर गया।

एक लड़की चपरासी को एक थप्पड़ मारकर उस पर भड़क रही थी।

जब मैंने उस लड़की को देखा तो ऐसा लगा जैसे हम दोनों पहले से एक दूसरे को जानते है उसकी अदा पर मैं मोहित हो गया। गुस्से में वो और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी मैं उसके रूप में मोहित हो गया।

तभी उसने चपरासी को फिर से डांटा, तब मेरा ध्यान उसके बातों पर गया वह कह रही थी- "बेवकूफ़ देख कर नहीं चल सकते मेरे कपड़ों पर कॉफ़ी गिरा दिया।"

बेचारा चपरासी सौ बार माफ़ी मांग चुका था लेकिन मैडम के नखरे थे जो खत्म होने का नाम भी नहीं ले रहे थे।

मैं उनके पास जाकर बोला- "अब माफ़ भी कर दीजिए, इस बेचारे चपरासी को, मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला।

तब उस मैडम का गुस्सा थोडा शांत हुआ, मैंने चपरासी को जाने को बोला और उस लड़की की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए बोला- "हाय मेरा नाम है प्रेम और आपका ?"

"आपको क्या लगता है आप मेरा नाम पूछेंगे और मैं ऐसे ही किसी को अपना नाम बता दूंगी" - उस लड़की ने कहा

प्रेम- "अच्छा नाम को छोड़िए, में खुद ही गेस कर लेता हूं ?"

"अच्छा तो बताओ क्या गेस किया"- लड़की के कहा

प्रेम- "आप तो दिखने में अमीर और एकलौती लग रही है। क्योंकि कॉफ़ी गिरने पर इतना गुस्सा तो अमीर लोग ही करते हैं और आप अमीर है तो आपको काम करने की क्या जरूरत ? लगता है आप अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है।"

तब उस लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- "लगता है आपको मस्तिष्क पढ़ना आता है।"

प्रेम- "मैं समझा नहीं ?"

"मतलब आपने जो कहा वो बिल्कुल सही है यह कंपनी मेरे पापा की है और मैं उनकी एकलौती बेटी हूं इसलिए मैंने जब नौकरी कर अपने पैरों पर खड़े होना की बात कि तो पापा ने साफ मना कर दिया, लेकिन मेरे ज़िद के वजह से यहाँ नौकरी की परमिशन मिल गई अब मैं मैनेजर की पोस्ट पर काम करतीं हूं"- लड़की ने कहा

प्रेम- "अच्छा तब तो आप हमारी सीनियर हैं और हमें आपको मैम कहकर बुलाना होगा।"

लड़की- "नहीं मुझे कोई मैम शब्द पसंद नहीं तुम मुझे मेरे नाम से बुलाना, मेरा नाम जैसिका है। और अब से हम दोनों दोस्त हैं।"

प्रेम- "अच्छा ठीक है जैसिका बाकी बातें कल करते हैं अभी ऑफ़िस का बहुत सारा काम बचा है।"

जैसिका- "ओ के प्रेम सी यू लेटर, बाय।"


उसकी बातों ने जैसे मुझे अपने वश में कर दिया हो मैं उसके ख्यालों में खो गया।

मैं अपने कार्यालय में बैठा काम कर रहा हूं। बहुत गर्मी लग रहा है और पंखा फुल स्पीड में घूम रहा है। पंखा ठीक मेरे उपर था थोड़ी देर बाद मैंने महसूस किया कि पंखे में से कुछ आवाजें आ रही है मैंने उपर की तरफ देखा।

पंखे को पकड़े किले धीरे धीरे निकल रही है ऐसा लग रहा था जैसे वह गिरने वाला हो, मैं उठकर वहां से भागने लगा लेकिन मुझे किसी शक्ति ने कुर्सी से बांध दिया था मैं टस से मस नहीं हो पा रहा था। मैं उस कुर्सी से निकल कर भागने की नाकामयाब कोशिश करता रहा लेकिन मेरे सारे कोशिशें नाकामयाब थी।

तभी पंखे से एक आवाज़ आयी मैं उपर देखने लगा, पंखे की सारी किले निकल गई थी और तभी अचानक पंखा तेजी से मेरे उपर गिरने लगा।

क्रमशः


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