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Renu Poddar

Inspirational

4  

Renu Poddar

Inspirational

दिल के रिश्ते

दिल के रिश्ते

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"दीदी ये लो गर्मा-गर्म छोले-भठूरे और खा कर बताओ, कैसे बने हैं" डिम्पी ने अपने बाल ठीक करते हुए अमृता जी से कहा | अमृता जी ने हँसते हुए कहा "रोज़-रोज़ कुछ ना कुछ मेरे लिए खाने को ले आती है, क्यूँ मेरी आदतें बिगाड़ रही है"| "दीदी कुछ भी बनाती हूँ, जब तक आप को ना खिलाऊँ... तब तक मेरे गले से भी नहीं उतरता"| डिम्पी ने मुस्कुराते हुए कहा | 


डिम्पी अमृता जी की के घर में अपने पति और दो बेटों के साथ किराये पर पिछले दो साल से रह रही थी | डिम्पी को खाना बनाने और खिलाने का बहुत शौक था | वो अमृता जी को अपनी बड़ी बहन की तरह मानती थी | उसका पीहर और ससुराल दोनों गाँव में थे, जबकि उसका पति विवेक शहर में नौकरी करता था इसलिए वह किराये पर अमृता जी के घर में रह रहे थे | 



अमृता जी के पति का देहांत हुए, कुछ साल हो गए थे | उनकी बेटी की शादी हो चुकी थी और बेटा विदेश में ही अपने परिवार के साथ रह कर अपना पारिवारिक बिज़नेस संभालता था | कभी साल में एक बार अपने परिवार के साथ अमृता जी से मिलने आता था, इसलिए अमृता जी का भी डिम्पी और उसके परिवार से बहुत लगाव था | अपने बड़े से घर में अकेलापन उन्हें खाने को दौड़ता था, इसलिए एक मंज़िल किराए पर दे दी थी |  



विवेक डिम्पी को कभी-कभी समझाता था..."अपने जैसे लोगों में ही उठना बैठा ठीक रहता है | अमृता जी से ज़्यादा नज़दीकियां मत बड़ा, उनका और हमारा कोई मेल नहीं है" पर डिम्पी एक कान से सुनती और दूसरे से निकाल देती थी... उसे लगता था, यहाँ शहर में हमारा कोई अपना नहीं है | कोई बड़ा सर पर ना हो तो कितनी दिक्कत होती है, यह बात इन आदमियों की समझ से परे है | अमृता दीदी ने तो आज तक अमीर-गरीब का एहसास ही नहीं होने दिया | 



छोले-भठूरे की तारीफ करते हुए अमृता जी ने डिम्पी के गाल थपथपाते हुए कहा "तू कुछ बनाये और अच्छा ना बने ऐसा कैसे हो सकता है"|  अच्छा पहले ये बताओ अगर कल तुम फ्री हो तो मेरा एक काम कर दोगी अमृता जी ने डिम्पी की तरफ आशा भरी निगाह से देखते हुए कहा डिम्पी ने तुरन्त जवाब दिया अरे दीदी कैसी बातें करती हो फ्री नहीं भी हुई तो भी आपके लिए तो टाइम निकाल ही लूंगी आप बताइये क्या काम है अमृता जी ने कहा कल मेरी बहन अमेरिका से एक हफ्ते के लिए मेरे साथ रहने आ रही है तुम्हें तो पता है...रामू भी गाँव गया है और अपने बदले जिसे लगा कर गया है उसे तो ठीक से कुछ बनाना ही नहीं आता और मेरी बहन को इडली डोसा बहुत पसंद है मुझसे तो डोसा अच्छा नहीं बनता अगर तुम बना दोगी तो मेरी बहुत हैल्प हो जायेगी"| डिम्पी ने अमृता जी को आश्वासन देते हुए कहा "दीदी आप बिल्कुल चिंता मत करो, बड़ी दीदी को मैं ऐसा इडली-डोसा खिलाऊँगी की वो उंगलियां चाटती रह जाएंगी"| अगले दिन डिम्पी खाने के समय से कुछ पहले अमृता जी के घर पहुँच गयी ताकि सारी तैयारी कर सके....जब सभी तैयारियां हो गई, तो अमृता जी ने डिम्पी से कहा "चल तू भी कुछ खा ले, कब से काम में लगी हुई है"| वह दोनों अभी खा ही रही थी तभी अमृता जी का ड्राइवर उनकी दीदी कल्याणी जी को लेकर आ गया | कल्याणी जी ने घुसते ही अमृता जी को गले लगाया और डिम्पी की तरफ टेढ़ी निगाह से देखा | उन्होंने डिम्पी के नमस्ते का भी ठीक से जवाब नहीं दिया....असल में कल्याणी जी को अपनी अमीरी का ज़रूरत से ज़्यादा घमंड था और अमेरिका में रह कर तो उन्हें आम इंसान के साथ बैठना अपनी शान के खिलाफ लगने लगा था | जब अमृता जी ने डिम्पी का परिचय अपनी दीदी से करवाया तो उन्हें डिम्पी का इस तरह अमृता जी के साथ बैठ कर नाश्ता करना बिल्कुल रास नहीं आया | डिम्पी भी अमृता जी के हाव-भाव समझ रही थी इसलिए वह उठ कर रसोई में चली गयी और डोसा बनाने लगी | जब वह अमृता जी के नौकर शाम को बुलाने गई की खाना परोस दो तो उसने अमृता जी और उनकी बहन की बातें सुन ली | कल्याणी जी अमृता जी को डांट रही थी की "तू भी पता नहीं कैसे-कैसे लोगों को मुंह लगा लेती है....अरे तुझे वो किरायेदार को बुला कर डोसा बनवाने की क्या ज़रूरत थी | कुछ खाने के लिए मार्किट से मंगवा लेती | इन लोगों से एक दूरी बना कर रखनी चाहिए... वैसे ही तू अकेली रहती है | आजकल अखबारों में कैसे-कैसे केस पढ़ने को मिलते हैं | तू भी बिलकुल भोली है पता नहीं कब तुझे समझ आएगी"| यह सब सुन कर डिम्पी से वहां ज़्यादा देर नहीं खड़ा हुआ गया कोई काम का बहाना कर के डिम्पी वहां से आ गयी पर यह बात उसके दिल को दुखा गयी | कल्याणी जी जितने दिन वहां रही अमृता जी ने डिम्पी से ज़्यादा बात नहीं की | डिम्पी मन ही मन यह सोच कर दुखी होती रहती थी की आखिर अमृता जी और उसके बीच अमीरी-गरीबी आ ही गयी | डिम्पी भी अपने कामों में मस्त रहने की कोशिश करने लगी | कुछ समय बाद अमृता जी के नौकर शाम ने डिम्पी को बताया की अमृता जी बीमार हैं | डिम्पी से उनको देखे बिना नहीं रहा गया | वो सकुचाती हुई उनके घर पहुँच गई |अमृता जी अपने रूम में थी | डिम्पी ने शाम से उन्हें बुलाने को कहा | उन्होंने उसे उनके कमरे में आने को कहा | जब डिम्पी अंदर गई उसने देखा अमृता जी निढ़ाल सी बिस्तर पर लेटी हैं | डिम्पी ने उन्हें छू कर देखा, उन्हें बहुत तेज़ बुखार था | डिम्पी ने उनके माथे पर ठन्डे पानी की पट्टी रखी और जल्दी से डॉक्टर को फ़ोन कर के बुलाया | डॉक्टर ने उन्हें वायरल फीवर बताया और बी.पी. और शुगर हाई होने की वजह से उनके खाने-पीने का ध्यान रखने को बोला | पांच-सात दिन बाद अमृता जी ठीक हो गई पर इन पांच-सात दिनों में डिम्पी ने उनके खाने-पीने का बहुत ध्यान रखा | जब भी समय मिलता उनके पास आकर बैठ जाती थी | एक दिन डिम्पी अमृता जी के घर गई...अमृता जी उस समय सो रही थी | डिम्पी उनके कमरे की खिड़की के पास उदास सी खड़ी हो बाहर देखने लगी | कुछ देर बाद अमृता जी उसके पास आई और बड़े प्यार से उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली "उस आम के पेड़ को देख रही है, बेचारा सब को सिर्फ मीठे-मीठे आम ही नहीं देता, सबको छाया भी देता है....इंसान उसको पत्थर मारता है, फिर भी वो हमें फल देना बंद नहीं करता और एक तरफ ये तुलसी का छोटा सा पौधा है...सब उसकी पूजा करते हैं | उसके पत्ते तोड़ने से पहले भी तुलसी मैया से प्राथना करते हैं | भगवान ने तो दोनों को देने के लिए बनाया है ये तो हम इंसान ही अपने स्वार्थ के लिए भेदभाव करते हैं | जब हम इंसान पेड़-पौधों में इतना भेद-भाव करते हैं तो हम अमीर-गरीब को कैसे एक सा समझेंगे | दीदी बहुत- बहुत सालों में मेरे पास आती हैं | सिर्फ पांच-सात दिन में मैं उनकी सोच नहीं बदल सकती थी और उनसे बहस कर के उनका मूड भी ख़राब नहीं करना चाहती थी क्यूंकि वह अपने सोच के दायरे से बाहर ही नहीं आना चाहती | मेरे मुश्किल समय में तू ही हमेशा मेरे काम आती है...तो मैं तेरा पीछा कैसे छोड़ सकती हूँ" अमृता जी ने हँसते हुए कहा | अमीर- गरीब कुछ नहीं होता | तू तो मुझ से भी ज़्यादा अमीर है क्यूंकि तेरा दिल बहुत बड़ा है...तभी तो इतनी बेइज़्ज़ती सुनने के बाद भी तूने मेरी इतनी देखभाल की....जो हमारे दुःख में काम आता है, वो ही हमारा सच्चा दोस्त होता है...ना मेरे बच्चे मेरे काम आ रहे हैं और ना ही मेरे रिश्तेदार इसलिए मैं अपने मकान की पहली मंज़िल तेरे नाम करुँगी"|यह सब सुन कर डिम्पी रो पड़ी उसने कहा "दीदी विवेक बहुत खुद्दार हैं...वो कभी भी आपसे कुछ नहीं लेंगे | बस आपका प्यार और आशीर्वाद मिलता रहे...वही मेरे और मेरे परिवार के लिए सबसे बड़ी दौलत है"| उसके बाद दोनों एक दूसरे के गले लग कर रोने लगी |  


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