दिखावा
दिखावा
" क्या अम्मा!सुबह-सुबह शुरू हो जाती हो तुम भी, कह दिया ना चश्मा बनवा दूंगा अगले महीने ,कौन सी पढ़ाई करनी है अब इस उम्र में तुम्हें?" राजेश का स्वर था यह जो अम्मा पर नाराज हो रहा था फिर चश्मा बनवाने को जो कह रही थी अम्मा।
"अरे !रोज का है इनका, तुम तो चले जाते हो ऑफिस पीछे से मैं इनके नखरे झेलती हूं। बताओ कल बगल वाली की लाई हुई कचौड़ियों पर ऐसे टूट पड़ी मानो बरसों से भूखी हों, दो मिनट का भी सब्र नहीं।" शीला भी पति के पीछे पीछे बोल पड़ी।
" बहू! वह तो मेरा बहुत दिनों से मन था कचौड़ियाँ खाने का और तुम......."अम्मा ने बोलने की कोशिश की।
हाँ, हाँ , मैं तो भूखे मार रही हूँ ना आपको।" बरस पड़ी शीला अम्मा पर।
अवाक अम्मा लौट आयी अपने कमरे में आँसुओं से भरी आँखें लेकर, वही उसकी दुनिया थी।
आज सुबह से रसोई में लगी है शीला और पंडित जी को मनुहार करा कर भोजन करा रहा है राजेश।
"अरे और रबड़ी लीजिए ना पंडित जी....कचौड़ियाँ और लाओ शीला... अम्मा को बहुत पसंद थी कचौड़ियाँ पंडित जी...जब तक आप नहीं तृप्त होंगे तब तक अम्मा को शांति कैसे मिलेगी" राजेश कचौड़ियों को पंडित जी की थाली में रखते हुए बोला
"देखिए ना दो साल हो गए अम्मा को गए तब से कुछ भी ठीक नहीं चल रहा...बिना आपके आशीर्वाद के ये ऋण कहाँ से चुका पाएंगे हम लोग....."सुनो! पंडित जी के लिए सिल्क भंडार से ही कुर्ता लाए हो ना? आज तो आप का ढेर सारा आशीर्वाद चाहिए पंडित जी।"
पंडित जी की रबड़ी की कटोरी फिर से भरते हुए बोली शीला।
पंडित जी ने अपना एक हाथ उठा कर सहमति जताई, मुंह मे कचौड़ी जो भरी थी.....।
अपने कमरे की जाले लगी दीवार में धूल से ढकी फोटो फ्रेम के अंदर कैद अम्मा अब भी तन्हाई में ही थी....ये दिखावा उन्हें मरकर भी चैन नही दे रहा था।