अपवित्र
अपवित्र
कुछ मदद कर दो बाबू जी, मेरा बच्चा बहुत भूखा है बच्चे को दूध लेना है।
चल दूर हट, रोज देखता हूँ तेरे जैसों के नाटक, देख नहीं रही कि मैं मंदिर जा रहा हूँ, छू लिया तो अपवित्र कर देगी!
बाबू जी, मैं कोई भिखारिन नहीं सिर्फ विपत्ति की मारी हूँ, पति रह नहीं गया तो मेहनत करके अपने बच्चे को पाल रही थी, दो दिन से काम नहीं मिला तो आपसे मदद मांगी थी भीख नहीं...मदद नहीं कर सकते मत करो मगर अपमान भी मत करो।
अरे जा जा अपना काम कर, बहुत आई मान अपमान वाली...
बाबू जी, ये मत भूलिए जिस भगवान के दर्शन के लिए आप जा रहे हैं उसका दरवाजा सबके लिए खुला हुआ है, उसकी निगाह में कोई पवित्र अपवित्र नहीं, उसे सिर्फ आस्था से मतलब है ढोंग से नहीं...
हुँह...अब तुझ जैसी भिखारिन से हमको पूजा पाठ सीखना पड़ेगा, चल भाग यहां से...
आ....आ.....आ. ..ह
अचानक मंदिर की सीढ़ी चढ़ते उन बाबू जी का पैर फिसला और वो लुढ़कते हुए उसी अपवित्र के पैरों से टकरा के रुके...
मंदिर के खुले दरवाज़े के पीछे से भगवान मुस्कुरा रहे थे...