दीपावली
दीपावली
रामदीन को आई इस बड़ी बीमारी और दवाइयों के खर्च से उसके घर की अर्थ व्यवस्था बिलकुल चरमरा गई थी।
पिछले दो दिन से तो पूरे परिवार को ढंग का भोजन भी नसीब नहीं हुआ था। दीपावली नजदीक आने के चलते जहां सभी अपना अपना घर सजाने में लगे थे।
वहीं रामदीन की पत्नी को कैसे भी अपने बच्चों के पेट भरने की चिंता खाई जा रही थी। हालांकि वो रोज तय समय पर ही चौक पर मजूरी के लिए जाती। पर उन दिनों उसे जैसे लक्ष्मी जी के दर्शन नसीब ही नहीं थे। बेचारी शाम को अपने भाग्य को कोसती हुई रोज वापस आ रही थी।
आज लक्ष्मी पूजन का दिन था। उसने भी माता के हाथ जोड़कर उनसे प्रसन्न होने की प्रार्थना की। चौक पर खड़े आज उसे कुछ ही समय बीता था। कि एक बड़ी सी कार उसके पास आकर रुकी।
अंदर से सेठानी ने उससे पूछा। घर के छोटे मोटे काम कर लेगी? उसने झट स्वीकृति में सर हिला दिया। सेठानी के साथ काम में हाथ बटाते उसे कब दिन से रात हो गई, पता ही नहीं चला।
उसके घर जाते वक्त सेठानी ने उसे तय मजूरी के साथ बचा हुआ लजीज खाना, कुछ मिठाई आदि भेंट की। अब वो गहराते अंधेरे में तेज चाल में घर की ओर हुई। इधर उसके बच्चों का नींद व भूख से संघर्ष जारी था।
माँ को देख उसके पास से आ रही लजीज भोजन की खुशबू से उसके बच्चों के मुरझाए चेहरे खिल गए।
उसने भी झट घर में दीप जलाकर लक्ष्मी माता की पूजा की।
और मिठाई के कुछ टुकड़े उन्हें भोग लगा दिए। फिर आज कई दिनों बाद, सारे परिवार ने एक साथ बैठ कर इतना स्वादिष्ट खाना भर पेट खाया।
