ध्यानु भगत की कहानी
ध्यानु भगत की कहानी
"ध्यानु भगत" यह एक ऐसा शब्द है जो हर किसी देवी भक्त को पता है। जब भी हम माता ज्वाला देवी का ध्यान करते है, तब हमारे मन मे ध्यानु भगत की छवि भी आती है, आज इस रचना में मैं ध्यानु भगत की कथा लिख रहा हु।
( सूचना : यह कथा देवी की लोकप्रिय कथाओं में से दी गई है इसलिए हमने ग्रन्थ के नाम मे देवी कथाए लिखी है। )
ध्यानु भगत का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, उनके जन्म लेते ध्यानु भगत के माता पिता स्वर्ग लोग सिधार गए। इस बात पर सारे गांव वाले ध्यानु भगत को मनहूस कहने लगे। कोई भी ध्यानु के साथ नहीं खेलता था। माता-पिता का देहांत हो जाने के कारण ध्यानु भगत का पालन पोषण एक पंडित ने करा। वह पंडित ज्वाला माता का अनंत उपासक थे। उनकी अनन्य भक्ति का ही परिणाम था जो ज्वाला मां की कृपा ध्यानु भगत पर इतनी थी। जब ध्यानु ने पंडित से अपनी मां के विषय में पूछता तब वह पंडित कहता - " तेरी मां तो साक्षात ज्वाला मां है "।
पंडित जी की यह बात सुनकर ध्यानु एक बार माता रानी की शरण में बैठ गया और सच्चे मन से माता को पुकारते हुए कहने लगा - " हे माता ! मेरे बाबा कहते हैं कि आप मेरी जननी है। यदि यह सच है तो आप मुझसे मिलने क्यों नहीं आती ? मुझे अपने सीने से क्यों नहीं लगाती ? हे देवी ! कृपया कर यदि तुम मेरी माता हो तो मुझे सीने से लगालो। मैं माता का सुख भोगना चाहता हूं "। अपने बालक की पुकार सुन जगतजननी माता ज्वाला माँ अपने पुत्र के सम्मुख प्रकट हुई और ध्यानु को अपने सीने से लगा लिया।
समय बीता और अब वह नन्हा सा बालक बड़ा हुआ। ज्वाला देवी की विशेष कृपा ध्यानु पर थी। माता के आशीर्वाद से ध्यानु हर किसी के कष्टों को हरता था। माता के जगराते वह यथा शक्ति करवाता था। उसकी भक्ति इतनी थी कि जब वो एक बार भी जय माता दी बोलता था तभी अंधे को आंख मिल जाती थी, गूंगे को जुबान मिलती थी।
देवी माँ की असीम कृपा से ध्यानु हर किसी के दुखो का निवारण करता था। उसे किसी से भी कोई भी बैर नही था। हर किसी स्त्री में ध्यानु अपनी माता अथवा अपनी बहन के रूप में देखता था।
एक बार ध्यानु समस्त गाँव वालों के साथ माता ज्वाला देवी के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बढ़ दल देखकर अकबर के सैनिक ने ध्यानु से पूछा - अरे भाई ! कहा जा रहे हो ? ध्यानु ने उत्तर दिया कि हम तो ज्वाला माता की क्षरण में शीश नवाने जा रहे है। ध्यानु का उत्तर सुनकर सैनिक ने ध्यानु से माता की महिमा के विषय मे पूछा तब ध्यानु ने माता को सर्वश्रेष्ठ बताया और माता रानी की महिमा सैनिक को सविस्तार सुनाई।
सैनिक द्वारा देवी की महिमा सुनकर सैनिक ने सब कुछ बादशाह अकबर को बता दिया। यह सुनकर् अकबर क्रोधित हो उठा, वह सोचने लगा कि मैं ही सर्वश्रेष्ठ हु। अकबर ने ध्यानु को अपने पास बुलाया और अपने आप को माता से सर्वश्रेष्ठ बताया तब ध्यानु ने इसका प्रतिउत्तर करते हुए अति विनम्र भाव से कहा - " बादशाह ! तुम अपने आप को माता रानी से सर्वश्रेष्ठ कैसे कह सकते हो ? क्या तुम किसी मृत व्यक्ति को ज़िंदा कर सकते हो ? इतना सुनकर अकबर क्रोध से तिलमिला उठा और उसने ध्यानु के घोड़े का शीश काट दिया और माता से शीश जोड़ने के लिए कहा तब ध्यानु माता से प्रार्थना करने लगा और जब घोड़े का सर नही जुड़ा तब ध्यानु ने अपना शीश माता को अर्पण करा तब माता प्रकट हुई और ध्यानु व घोड़े का सर जोड़ा।
जब यह बात अकबर ने सुनी तब वह क्रोध से तिलमिला गया और उसने देवी ज्वाला पे तवे ढक दिए पर वह ज्योत तवो को चीरकर बाहर आई फिर अकबर ने ज्वाला माता के दर के पास नहरे खुदवाई पर ज्वाला पानी से भी न भुजी तब अकबर को माता पर पूर्ण विश्वास हुआ और वह बड़े अभिमान के साथ देवी ज्वाला के मंदिर में सोने का छत्र लेकर गया पर वह छत्र अभिमान से दिया गया था इसलिए वह छत्र सोने से बदलकर किसी और धातु में परिवर्तित हो गया। ( वह क्या धातु है, इसका पता आज तक कोई भी नही लगा पाया है। ) ततपश्चात अकबर लौट गया।
वह छत्र आज भी ज्वाला माता के मंदिर में रखा हुआ है।
प्रेम से बोलो
जय माता दी
