धोखा कोई करे सजा किसी और को मिले
धोखा कोई करे सजा किसी और को मिले
भास्कर ऑफिस से जल्दी घर आ गया था । उसने आते ही जया को आवाज़ दी कि जया एक कप चाय बनाकर ला दे ।वहीं बैठकर पेपर पढ़ रहे पिता की तरफ़ घूम कर उनसे कहा — आज आपकी लाड़ली बेटी बिंदु के ससुराल से फ़ोन आया है कि उसका अबार्शन हो गया है उसे आकर ले जाएँ । आप जानते हैं कि मुझे तो छुट्टी नहीं मिलती है तो आप ही जाइए और उसे यहाँ लेकर आ जाइए ।
भास्कर को अपने पिता पर ग़ुस्सा है क्योंकि उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों को ठीक से नहीं निभाया है । निरंजन जी रेलवे में नौकरी करते थे । मध्यप्रदेश में उनकी पोस्टिंग हुई थी । उनकी पत्नी सुगंधी को अपनी भाषा तमिल के अलावा दूसरी कोई भाषा समझ में नहीं आती थी । उन्हें अपने घर के काम करवाने में भी तकलीफ़ होती थी । बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपनी रेलवे की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था । यही रीजन वे सबको बताते थे ।
अपनी पत्नी और बच्चों को लेकर वे तमिलनाडु में ही आकर बस गए थे और एक कंपनी में नौकरी करने लगे । भास्कर उनका बड़ा बेटा बड़ा था । अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह भी नौकरी करने लगा । निरंजन जी के ग़ुस्सैल स्वभाव के कारण उनकी लड़कियों को कोई भी अपने घर की बहू बनाकर नहीं ले जाना चाहते थे । अगर भूले भटके कोई आ भी जाते थे तो वे उनसे लड़कर वापस भेज देते थे । बेटियों की चिंता में ही घुलकर सुगंधी की मृत्यु हो गई थी । भास्कर के लिए रिश्ते आ रहे थे क्योंकि वह स्टील प्लांट में नौकरी करता था । भास्कर को रचना पसंद आ गई थी । उसका ब्याह दो तीन महीनों में हो गया था । रचना को पहले से ही पता चल गया था कि घर में तीन तीन बिन ब्याही लड़कियों और ग़ुस्सैल ससुर को उसे ही सँभालना है ।
रचना ने आते ही घर को सलीक़े से सँभाल लिया था । उसके आने के दो साल बाद ही उसने बडी ननंद नंदा की शादी करा दी थी । परंतु दूसरी ननंद बिंदु की शादी में दस साल का समय लगा पर उसे भी किसी तरह निपटाया था । अब आख़री ननद कला थी उसके लिए भी रिश्ते ढूँढने लगे थे।
बड़ी ननंद को ससुराल अच्छा मिल गया था । वह अपने पति के साथ मिलकर ख़ुशी से जीवन बिता रही थी । दूसरी ननंद के ससुराल वालों ने ही इन्हें धोखे में रखा था । उन्होंने अपने बारे में सारी बातें छिपाकर रखी थी । बिंदु को उन्होंने पढ़ी लिखी है और नौकरी करेगी यही सोचकर बहू बनाने का फ़ैसला किया था । बिंदु के मायके वालों को बताया था कि राघव बैंक में काम करता है । भास्कर के पास पैसे न रहने पर भी उसने सोचा बहन छत्तीस साल की हो गई है तो बैंक में काम करने वाला अच्छा लड़का मिला है तो धूमधाम से शादी करा दूँ ।
बिंदु जब ससुराल पहुँची तब उसे पता चला कि राघव नौकरी नहीं करता है । उन्होंने भास्कर को धोखे में रखा था कि वह बैंक में काम करता है ।
अब राघव नौकरी क्यों नहीं करता है इसका भी एक कारण यह था कि राघव के पिता गंगाधर गाँव के बहुत बड़े ज़मींदार थे । उनके दो लड़के और एक लड़की थी । बड़ा बेटा पढ़ लिखकर अमेरिका चला गया और वहीं का हो गया था । दूसरी बेटी रजिता थी जो बीमारियों का घर थी । बड़े बेटे ने पिता की जायदाद लेने से मना कर दिया था । इसलिए पिता ने राघव से कहा अपनी बहन रजिता की देखभाल मरते दम तक करेगा तो पूरी जायदाद तेरी होगी फिर क्या उसने हामी भर दी और बहन के साथ रहने लगा । शादी के लिए लड़की के माता-पिता नौकरी करने वाले लड़के को ढूँढते थे इसलिए राघव की शादी नहीं हो रही थी । बिंदु भी उम्र में बड़ी थी भास्कर भी थक गया था एक बहन और उसकी खुद की दो बेटियों की शादी भी करनी थी । इसलिए बैंक में नौकरी है यह सुनकर बिना किसी से पूछ ताछ किए बिंदु की शादी राघव से शादी करा दिया ।
दो साल बाद आज राघव का फ़ोन आया था कि अपनी बहन को ले जाओ ।
भास्कर के पिता भास्कर की बात मानकर बिंदु के घर जाते हैं वहाँ उसकी हालत देखकर उनका दिल बैठ गया । बिंदु की हालत गंभीर थी भाई बहन उसे डॉक्टर के पास भी लेकर नहीं गए थे । गंगाधर बाहर जाकर ऑटो लेकर आए और बिंदु को खुद अकेले पकड़ कर ऑटो तक लाए राघव उनकी मदद करने के लिए भी नहीं आया था । उस एकाध घंटे में ही उन्होंने जान लिया था कि राघव बहन की हाथ का कठपुतली है। गंगाधर बिंदु को अस्पताल ले कर गए डॉक्टर के चेकप के बाद उसे साथ ले कर राघव के घर उसे छोड़ने पहुँचे तो रजिता ने उन्हें बाहर ही रोक लिया और कहा कि अभी अपनी बेटी को अपने घर ले जाकर रेस्ट दीजिए जब हम पत्र लिखकर बुलाएँगे तभी उसे छोड़ने आइए यह कहकर उनके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर दिया था ।
गंगाधर उदास हो गए और बिंदु को लेकर वापस आ गए थे । दो महीने हो गए थे वहाँ से पत्र नहीं आया । बिंदु चुप रहने लगी थी । रचना ने उसे बहला फुसलाकर सारी बातें जान ली जब भास्कर को पता चला कि राघव बैंक क्या कहीं भी नौकरी नहीं करता है उसका दिल उसे कोसने लगा था कि एक बार पूछताछ कर लेता तो शायद यह दिन देखना नहीं पड़ता था परंतु होनी को कौन टाल सकता है । तीसरे महीने में राघव के पास से गंगाधर को रजिस्टर पोस्ट मिला खोलकर देखा तो दो पेज की चिट्ठी थी । जिसमें उसने बिंदु की बुराई के साथ उसके अवगुणों की लिस्ट लिखी थी । पहली बात तो यह थी कि वह पागल है पढ़ी लिखी है पर किसी काम की नहीं घर नहीं सँभाल सकती बहन का सम्मान नहीं करती कुल मिलाकर अंत में लिखा कि आप अपनी बेटी को अपने पास ही रख लीजिए हमें उसकी ज़रूरत नहीं है क्योंकि आपने धोखे से अपनी पागल लड़की को हमारे मत्थे मढ़ दिया है ।
भास्कर को ग़ुस्सा आया उसने अपने पिता से कहा "यहाँ अगर बिंदु रही तो आसपडोस के लोग पूछेंगे कि बहन अभी तक यहीं क्यों है ससुराल क्यों नहीं गई है । मैं इन सब प्रश्नों का जवाब नहीं देना चाहता हूँ । मैं अब इस सबसे छुटकारा पाना चाहता हूँ मुझे अपने बच्चों पर भी ध्यान देना है। मैं उनके साथ अन्याय नहीं कर सकता हूँ । इसलिए आप बिंदु को लेकर चेन्नई चले जाइए वहीं कोई छोटी मोटी नौकरी करते हुए आप दोनों अपना गुज़ारा कीजिए ।"
गंगाधर को जी को काटो तो खून नहीं है । पर बेटे की बात को टाल भी नहीं सकते थे । इसलिए बिंदु को लेकर चेन्नई पहुँच गए । वहाँ अपने ही बड़े भाई के बेटी के घर पहुँच गए और उससे कहा घर मिलते चले जाएँगे । तब उसने और उसके पति ने समझाया कि "इतना दान दहेज देकर शादी इसलिए नहीं कराया है कि उसे अपने घर में रख लें । जाइए उनसे बात कीजिए और ज़रूरत पड़ने पर वकील की सहायता ले लेंगे । शादी देख भाल कर की थी हमने कोई झूठ नहीं बोला उन्होंने ही हमें धोखे में रखा था ।"
गंगाधर जी बिंदु के ससुराल पहुँचे और सारी बातें की पहले तो रोब जताया पर जब उनके झूठ को बताया था तो कहने लगे बेटी को लाइए हम उससे बातें करेंगे । बिंदु बाहर खड़ी थी पिता के बुलाते ही अंदर आई थी । रजिता ने बहुत सारी शर्तें उसके सामने रखी अगर उन्हें मानती है तो हम बिंदु को घर में रखने को तैयार हैं । गंगाधर ने कहा बेटा शर्तों से ज़िंदगी नहीं गुजारी जा सकती है इसलिए चल वापस चलते हैं । बिंदु को घर की हालत पिता की मजबूरी सब मालूम था इसलिए उसने उन लोगों से कहा कि मुझे आपकी शर्तें मंज़ूर है फिर क्या उन्होंने बिंदु को अपना लिया । पिता को बिंदु ने आश्वासन दिया कि वह सब कुछ सँभाल लेगी ।
रजिता ने बहुत सारे शर्तों की लिस्ट दी थी उसमें एक मायके नहीं जाएगी वहाँ से कोई नहीं आएगा । बिंदु ने मान लिया और पिता से अंतिम बार बिदाई ली ।
गंगाधर ने जब भास्कर को सारी बातें बताई तो उसने कहा कि हम भी उसके घर की तरफ़ नहीं जाएँगे । ईश्वर की लीला देखिए कि बारह साल न बिंदु अपने घर वालों से मिली थी न ही मायके वालों ने उसकी कोई खोज ख़बर ली । पिता की मृत्यु की ख़बर ने भी उसके दिल को नहीं पिघलाया था ।
दो हज़ार चार में कला की शादी भास्कर ने शिपयार्ड में काम करने वाले मयंक से कराई । उस शादी में आए उनके किसी रिश्तेदार से पता चला कि बिंदु के दो लड़के हुए थे । दोनों ने अच्छे से पढ़ाई पूरी की और बाहर जाकर बस गए हैं । रजिता की मृत्यु तीन साल पहले हो गई है । पिछले साल ही बिंदु की मृत्यु भी हो गई है ।
भास्कर और रचना दोनों को बहुत बुरा लगा कि बिंदु को गुजरे एक साल हो गया था और हमें ख़बर भी नहीं किया है ।
भास्कर ने जो फ़ैसला किया था कि बिंदु को देखने हमारे घर से कोई भी नहीं जाएँगे । उस आदमी ने हमें धोखा दिया था । हम उसके धोखे को समझ ही नहीं पाए थे ।
राघव और रजिता ने जो फ़ैसला सुनाया था कि बिंदु मायके कभी नहीं जाएगी । उनका यह फ़ैसला सही था क्या ?
बिंदु उस समय ही बी ए पास थी माता-पिता भाई पति ननंद का विरोध किए बिना राघव के धोखे को अनदेखा करके उनके जुर्म सहने का बिंदु ने जो फ़ैसला किया था वह सही है क्या ।
दोस्तों माता-पिता को अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करना चाहिए । अगर गंगाधर ने वक़्त रहते ही अपनी बेटियों की शादी करा दी होती तो शायद आज उन्हें यह दिन नहीं देखना पड़ता था ।
भाई ने जब पिता की ज़िम्मेदारी को अपने सिर पर लिया था तो अहम को छोड़कर उसे रिश्ता निभाना था । बारह साल तक बहन की कोई खोज ख़बर नहीं ली सिर्फ़ जीजा के धोखे को ध्यान में रखते हुए ज़िंदगी बिता दी बहन के दिल को नहीं समझा क्या यह सही है ?
के कामेश्वरी