rekha karri

Inspirational

4.0  

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धन्यवाद टीचर

धन्यवाद टीचर

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बात १९७७ की है जब मैं पाँचवीं कक्षा में पढ़ती थी । स्कूल की तरफ़ से हम लोगों को बाहर फ़ील्ड ट्रिप के लिए ले जा रहे थे । मेरे पिताजी का तबादला हैदराबाद में हुआ था हम नए नए शहर में आए थे । स्कूल नया था माँ भेजना नहीं चाहती थी क्योंकि उनके लिए भी नया था और वे भी किसी को नहीं जानती थी परंतु टीचर ने कहा था कि जाना ज़रूरी है क्योंकि यह फ़ील्ड ट्रिप है । पिताजी टूर पर चले गए थे और माँ को मैंने बताया था कि सुबह जल्दी साढ़े सात बजे ही स्कूल में पहुँच जाना है। उन्होंने मुझे बहुत सारी हिदायतें दी थी कि सब बच्चों के साथ मिलकर रहना अकेली कहीं नहीं जाना टीचर की बात सुनना। उनकी बातें मैंने सुनी या नहीं नहीं मालूम पर सबके लिए सर हिलाती जा रही थी । 

मेरे लिए भी यह पहला अवसर था कि माता-पिता के बिना कहीं जा रही हूँ । माँ साथ छोड़ने आई थी । हम सब हँसते हँसते बस में चढ़ गए। माँ ने भी टीचर को नजर रखने के लिए कहा और मैं ने तो माँ को बस के स्टार्ट होने के पहले ही हाथ हिलाकर बॉय कह दिया और अपनी सहेलियों के साथ मस्ती करने लगी । 

हम सब एक घंटे में अपने गम्य स्थान पर पहुँच गए। हमारे टीचरों ने सबकी गिनती की और सबसे कहा यहीं खेलो साथ में आए पी टी टीचर्स हमें खेल खिलाने लगे । वहाँ हमने बाँध देखी फिर सब खाना खाने लगे । बड़ा ही मज़ा आ रहा था । उसी समय वहाँ बेलून बेचने वाले और छोटी मोटी बच्चों के पसंद की चीजों को बेचने वाले आ मेरी सारी सहेलियाँ ख़रीदने के लिए भागी मैं भी उनके साथ भागी परंतु पत्थर के लगने से मैं गिर गई और मेरा एक घुटना छिल गया था । वहीं पर बैठी मेरी रमा टीचर भागते हुए मेरे पास आई मुझे एक जगह बिठाया और पानी पिलाया । मैं थोड़ा ठीक हुई तो उन्होंने कहा कि जाओ रुचि तुम भी कुछ ख़रीद लो । मुझे तब याद आया कि मेरे पास तो पैसे ही नहीं है । मैंने नहीं में सर हिलाया पर मेरी आँखें भर आई थी । उन्होंने कुछ नहीं कहा और अपने पर्स से एक रुपया निकालकर मेरे हाथ में रखा और कहा जाओ रुचि मनपसंद चीज ख़रीद लो । उस समय एक रुपया भी बहुत था मैंने उनके हाथ से एक रुपया लिया और उनका चूमकर कहा धन्यवाद टीचर । उस समय वे मेरे लिए बहुत कुछ थीं । जब मैं घर आई और माँ को बताया था तो उन्होंने बहुत अफ़्रीका किया था कि मेरे दिमाग़ में यह बात क्यों नहीं आई थी कि मैं तुम्हें थोड़े पैसे देती । उस दिन के बाद जब भी मैं बाहर जाती थी माँ याद से पैसे दे देती थी । रमा टीचर को तो मैं कभी भी नहीं भूल सकती हूँ । 


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