दहलीज भेद नहीं करती
दहलीज भेद नहीं करती
"ये क्या भाभी आप बैग में कपड़े क्यों पैक कर रही हो कहाँ जा रही हो ?"
"रामनगर के कॉलेज में नौकरी के लिए आवेदन दिया था वो मंजूर हो गया है। दो दिन बाद जॉइन करना है। शाम की गाड़ी से निकल रही हूँ।"
"आपको नौकरी करने की क्या जरूरत है। और शाम को तो भैया वापस आ रहे हैं।"
"अब अपना पेट भरने के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी न। माँ-बाप पर बोझ बनकर तो रह नहीं सकती अब।"
"भाभी.....! अपना पेट भरने के लिए मतलब? दो साल तक आपने कितनी जद्दोजहद करके क्या कुछ नहीं किया भैया को उस औरत के चुंगल से छुड़ाने के लिए। और अब जब सबकुछ ठीक हो गया, भैया की भी अक्ल ठिकाने आ गयी कि उसने सिर्फ पैसों के लिए उन्हें फांस रखा था, और वो अब घर वापस आ रहे हैं तो आप...."
"परिवार की बदनामी हो रही थी। अम्मा-बाबूजी बुढ़ापे में इस तरह बेटे की करनी का दुःख भोग रहे थे। लोग कैसे-कैसे ताने देते थे उन्हें। फिर कल को तुम्हारी शादी में कितनी अड़चने आती? मैने इस घर के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है बस। तुम्हे तुम्हारा भाई और अम्मा-बाबूजी को उनका बेटा लौटा दिया।"
"और आपका पति...भाई और बेटे के अलावा वो आपके पति भी तो हैं न.."
"जो लौट रहा है वो इस घर का बेटा है, भाई है। मेरा रिश्ता तो उसी दिन खत्म हो गया था जिस दिन उन्होंने दूसरी औरत से रिश्ता जोड़ा और इस घर के बाहर पैर रखा। दहलीज के बंधन सिर्फ औरतों के लिए ही होते हैं क्या ?"