दहेज प्रताड़ित
दहेज प्रताड़ित
गुस्से में बिंदिया रवि के पास गयी और बड़बड़ाने लगी"मेरे बस की बात नहीं है रोज रोज तुम्हारी बीमार मां की सेवा करना। "रवि ने बिंदिया की तरफ प्रेम से देखते हुए कहा" ठीक है तुम मत करो, मैं कर लूँगा। और जब मैं आफिस रहूंगा तब के लिये कोई मेड हायर कर लेता हूं। तुम परेशान न हो। "कहकर रवि आफिस चला गया।
बिंदिया रोज ही कुछ न कुछ कारण खोज लेती सास को लेकर क्लेश का। सास भरसक कोशिश करती कि उसकी वजह से कोई वाद विवाद न हो किंतु सब व्यर्थ।
रवि के पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था। मां बहुत ही कम उम्र में विधवा हो गई थी। कितने ही प्रस्ताव लाये रिश्तेदार मां की नयी गृहस्थी के लिए, किंतु मां ने किसी की एक न सुनी। तंगहाली में सारा जीवन बीत गया। अब लगा था कि बेटा ठीक-ठाक कमाने लगा है, जीवन में कुछ सुधार होगा। किंतु रोज रोज की किच किच से जीना दूभर हो गया था।
शाम को रवि जब आफिस से वापस आया तो बिंदिया ने हमेशा ही की तरह रवि को सुनाना शुरु कर दिया "रवि अब तुम्हें फैसला करना होगा। या तो अपनी माँ को चुनो या मुझे। मैं इन्हें अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
रवि को याद था कि पिछली बार जब उसने माँ का पक्ष लिया था तो बिंदिया ने मारपीट और दहेज की रिपोर्ट लिखा दी थी। बड़ी मिन्नतें करके बिंदिया को मनाया था।
रवि कहने लगा"बिंदिया साथ तो मैं तुम्हारे ही रहूंगा। किंतु अब हम इस घर में नहीं रह सकते। जो भी अपने पैसों का सामान है समेट लो। "
" क्या लेकिन क्यों? "बिंदिया सकपका कर बोली।
" हां, यह घर मां की सम्पत्ति है और मां ने यह घर वृद्धाश्रम चलाने वाली संस्था के नाम कर दिया है।"
मां चौंक गयी"क्या कह रहा है बेटा? "
" हां मां जब मैं अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं कर सकता तो आपकी जीवन भर की कमाई का उपभोग करने का मुझे कोई अधिकार नहीं।"
रवि कहता गया"हमारे देश के कानून में तुम्हारे जैसी बूढ़ी मां और मेरे जैसे बेबस बेटे के लिए कोई प्रावधान नहीं है। प्रावधान है तो सिर्फ दहेज प्रताड़ित के लिए..... ।
