धारावाहिक: बहू पेट से है भाग-1
धारावाहिक: बहू पेट से है भाग-1
शीला चौधरी का अहाता दोपहर को आबाद होता था। जब लोग लंच के बाद आराम कर रहे होते हैं तब मौहल्ले की "बातूनी" औरतें शीला चौधरी के घर पर इकठ्ठे होकर गपशप करती हैं। दरअसल शीला चौधरी का मकान ठीक टी पॉइंट पर है। इस घर के अहाते से तीनों सड़क और उनके किनारे बने हुए मकान दूर से ही दिखते हैं। यहां पर बैठे बैठे ही लगभग चालीस पचास घरों की जासूसी हो जाती है। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कौन क्या ला रहा है ? और तो और कौन किसके साथ आ रहा है ये भी पता चल जाता है यहां से। जब ये "लेडीज क्लब" शुरू नहीं हुआ था तब शीला चौधरी अपने अहाते में मुड्डी डालकर बैठ जाया करती थी और आने जाने वाली औरतों से "राम राम" कर लेती थी। कोई कोई औरत वहां रुक कर दो चार मिनट बतिया भी लेती थी। धीरे धीरे शीला चौधरी की मिलनसारिता और उनका मधुर व्यवहार मौहल्ले में चर्चा के विषय बन गया था।
आज के जमाने में प्रेम से कौन बोलता है जी ? ऐसा लगता है कि सब लोग गले तक भरे बैठे हैं और दूसरों को काट खाने को सदैव तैयार रहते हैं। दुख की कोई सीमा है क्या ? जिधर देखो उधर ही दुख अजगर सा पसरा पड़ा है। कोई अपनी पत्नी से तंग है तो कोई पत्नी अपने पति की शक्ल तक देखना नहीं चाहती है। कोई अपने बच्चों से दुखी है तो कुछ बच्चे अपने माता पिता से परेशान हैं। कोई पड़ोसी से खार,खाए बैठा है तो किसी की पड़ोसन उसे भाव ही नहीं दे रही है। एक दुख है क्या ? अनंत सागर भरा पड़ा है दुखों का। शराबी फिल्म के गाने के बोल "नशे में कौन नहीं है मुझे बताओ जरा" की तरह "दुखी कौन नहीं है मुझे बताओ जरा, सुखी है कौन मेरे सामने तो लाओ जरा" की तरह सुखी आदमी को ढूंढते ही रह जाओगे वाला मामला लगता है। तो ऐसे "दुखी माहौल" में अगर कोई प्रेम से दो मीठे बोल बोल लेती है तो उससे बड़ी समाज सेविका और कौन हो सकती है ? धीरे धीरे शीला चौधरी सब लोगों के लिए "चौधराइन" बन गई ।
एक दिन उनकी पड़ोसन शोभना और लक्ष्मी ने उनके सामने यह प्रस्ताव रखा कि क्यों नहीं हम लोग एक "लेडीज क्लब" चालू करें। इसमें मौहल्ले की सारी औरतों को शामिल कर लेते हैं। घंटे दो घंटे रोज गपशप करेंगे। मन का गुबार भी निकल जायेगा और दुनिया भर की खबरें भी मिल जाया करेंगी। बोलो क्या कहती हो चौधराइन ?
चौधराइन तपाक से बोली "अरे, इसमें सोचने की बात ही क्या है ? सच कहूं तो आपने मेरे मुंह की बात बोल दी है शोभना जी। मैं तो कबसे चाहती थी कि ऐसा कोई क्लब बने मगर यहां की औरतों को तो जैसे काम धंधे से ही फुरसत नहीं है। पता नहीं दिन भर कितना काम करती हैं ये औरतें ? और ये हाल तो तब है जब इन सबके घरों में बाई लगी हुई है। किसी किसी के घर में तो दो दो तीन तीन बाइयां लगी हुई हैं, फिर भी काम के बोझ से मरी जा रही हैं महारानियां। मैं तो कबसे चाह रही थी कि कोई क्लब बने, मगर कहने की हिम्मत नहीं हुई । आज तुमने इस बात का जिक्र करके बहुत बढिया काम किया है। चलो अच्छा हुआ जो तुम दोनों तो राजी हुईं कम से कम। बाकी महिलाओं को भी क्लब में शामिल करने की मुहिम चलाते हैं आज से"। चौधराइन उत्साहित होकर बोली। उसकी मन मांगी मुराद जो पूरी होने वाली थी आखिर।
शोभना कुछ बोलती उससे पहले ही लक्ष्मी बोल पड़ी "एक बात बोलूं जिज्जी, पहले जगह और समय तो फिक्स कर लो कि क्लब कहां चलेगा और कबसे कब तक चलेगा ? मेरी समझ में तो उसके बाद ही किसी को कहना ठीक रहेगा। क्यों शोभना जी" ?
"बिल्कुल सही कहा आपने लक्ष्मी जी। अगर कोई पूछेगा कि क्लब कहां और कब चलता है तो हम क्या बतायेंगे भला ? तो पहले जगह और समय तय हो जाना चाहिए, उसके बाद ही मुहिम चलाई जाये। क्यों चौधराइनजी" ?
चौधराइन कुछ बोलती उससे पहले ही लक्ष्मी ने अपनी राय रखते हुए कहा "मेरी राय में तो चौधराइन जी का अहाता ही बेस्ट है। बिल्कुल टी पॉइंट पर है। मौहल्ले की आती जाती सब औरतें टकराएंगी यहां पर। हमारे लिए भी आसानी होगी उनसे संपर्क करने में। फिर यह मकान कॉलोनी के सेन्टर में भी है ना। इसलिए भी ये सही है। लोगों को आने जाने में भी सहूलियत रहेगी ना। बोलो चौधराइन जी, आपका क्या कहना है इस बारे में" ?
चौधराइन तो चाहती ही यही थी कि उसे पंचायती करने का अवसर मिले। और अपने घर से ज्यादा सुरक्षित जगह और कौन सी हो सकती है ? चौधराइन गदगद होते हुए कहने लगी "और बोलो भला, ये घर मेरा थोड़े ही है, ये तो आप सबका ही है। तो यह तय रहा कि कल से हम लोग इस अहाते में "लेडीज क्लब" चलायेंगे। अच्छा एक बात तो तय हो गई। अब समय भी तय कर लेते हैं"।
शोभना ने कुछ सोचते हुए कहा "पांच से छ : का समय कैसा रहेगा जिज्जी" ?
"इस समय तो घर में चाय बनती है और कुछ स्नैक्स भी। मेरी समझ में तो यह समय ठीक नहीं है"।
"तो फिर छ : से सात रख लें" ? लक्ष्मी तपाक से बोल पड़ी
"बोलने से पहले कुछ सोच भी लिया करो ? इस समय शाम के खाने की तैयारी शुरू हो जाती है। कोई दूसरा टाइम देखो"। शोभना विजयी भाव से बोली।
थोड़ी देर तक ऐसे खामोशी छाई रही जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ में तीन बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष कोई शिखर बैठक कर रहे हों। फिर तंद्रा भंग करते हुए चौधराइन बोली "लंच का काम दो बजे तक सिमट जाता है। घर के सब लोग भी या तो सो जाते हैं या फिर अपने अपने कमरों में जाकर मोबाइल में बिजी हो जाते हैं। तो क्यों ना हम लोग रोज तीन से पांच बजे तक बैठें यहां पर। जिस जिसको जब जब समय मिले तब तब वह आ जाये और गपशप का मजा ले ले। कहो कैसा लगा" ?
"बहुत बढिया"। दोनों ने एक साथ कहा।
और इस तरह से मौहल्ले का "लेडीज क्लब" बन गया।