Shailaja Bhattad

Inspirational

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Shailaja Bhattad

Inspirational

देर आए दुरुस्त आये

देर आए दुरुस्त आये

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"आपके यहां आए मुझे पूरे पंद्रह दिन हो गए हैं। हर दिन भाभी नया-नया स्वादिष्ट खाना बनाकर खिला रहीं हैं। यह सब आपकी कही गई बातों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता। आप तो कह रहीं थी, भाभी पढ़ी लिखी है, हॉस्टल में रही हैं इसलिए इनको खाना-वाना बनाना नहीं आता लेकिन यह तो एक गृहणी से भी ज्यादा अच्छा स्वादिष्ट खाना बनाती हैं। फिर अपनी ही बहू के बारे में ऐसा झूठ फैलाने का मतलब?"

पहली बार घर आई सास की बहन की बेटी ने पूछा।

"इसलिए बेटा कि अगर मैं इसकी बुराई करूंगी तो फिर कोई भी इसे पसंद नहीं करेगा। इस तरह पूरे समय यह मेरे इशारों पर ही नाचती रहेगी।" 

"क्या! कैसी सोच है मौसी आपकी।"  चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित घ्रणा का भाव लिए हुए। "आपको तो खुश होना चाहिए कि भाभी पढ़ी-लिखी होने के बावजूद, सुशील और नेक दिल है। ऐसी निम्न स्तरीय सोच से आप कुछ भी हासिल नहीं कर पाएंगीं। उल्टा भैय्या और भाभी से आप की दूरियां बढ़ जाएंगी। आपके बुढ़ापे की लाठी आपके बेटे- बहू ही बनेंगे, बाहर के लोग नहीं।

 कहीं ऐसा न हो कि वे हमेशा के लिए आपसे कन्नी काट लें। अभी भी समय है, संभाल लीजिए।" "ठीक है।"

 परिस्थिति की गंभीरता को समझते हुए मौसी ने जवाब दिया।


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