डूबना
डूबना
बड़ी अजीब बात है जी। लोगों का अंदाज भी बहुत जुदा जुदा है। कोई कहां डूबता है तो कोई कहां। कोई किसी की काली काली झील सी गहरी आंखों में डूब जाता है तो कोई जुल्फों की बदली में डूब के मौज मनाता है। रसिकलाल तो छमिया भाभी के गालों में पड़े डिंपल में ही डूब कर मर गए थे जबकि छैला सिंह उनके कमल दल से नर्मो नाजुक होंठों पर टपकी दो बूंदों में ऐसे डूबे कि आज तक बाहर नहीं निकल पाए।
पियक्कड़ चंद पैमानों में डूब गए तो खानदान सिंह ने अपने खानदान की लुटिया डुबो दी। लज्जा देवी तो लाज शर्म में ही डूबी रही अब तक। साहूकार सिंह कर्ज में डूबे रहे। हर्ष कुमार गमों की खाई में ऐसे डूबे कि लोग आज भी ढूंढ रहे हैं उनको।
ईमान सिंह ताजिंदगी भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे रहे तो सरला देवी षड्यंत्रों में। शेयर मार्केट में डूबने वालों का तो कोई हिसाब ही नहीं है जबकि कुछ लोग "नोटबंदी" में डूब गए। बहुत सारी हीरोइन तो बॉलीवुड की गंदगी में डूब गई तो भंवरी देवी जैसी औरतें राजनीति में।
नदी, नाले, झील, तालाब, झरनों, बांधों में तो लोग डूबकर मरते ही हैं मगर हमने तो लोगों को फाइलों में, किताबों में, संगीत में, चर्चा में और तो और निंदा रस में भी डूबते हुए देखा है। कोई टीवी के किसी कार्यक्रम में डूबा हुआ है तो कोई बीवी के साथ दैनंदिन वाले युद्ध में। कोई दो जून की रोटी कमाने में डूब रहा है तो कोई अपने बाप दादाओं की कमाई उड़ाने में।
अपने अपने शौक होते हैं साहब, डूबने के भी। जिनको चरस, गांजे की खुमारी में डूबने का शौक है वे "शराब" में डूबने वालों को "आम आदमी" समझकर दुत्कारते हैं और अपनी "क्लास" की प्रतिष्ठा को कलुषित नहीं होने देते हैं। आखिर "क्लास" भी कोई चीज होती है ना। आजकल लोगों को बेशर्मी में डूबने का ऐसा चस्का लगा है कि इसमें डूबने के लिए भयंकर प्रतिस्पर्धा हो रही है। कुछ लोग धूर्तता और मक्कारी में आकंठ डूबे पड़े हैं तो कुछ लालच के दलदल में। कोई सफेदपोश "कालाबाजारी" करने में ही इतना डूबा हुआ है कि उसे खुद नहीं पता कि वह जिंदा भी है या उसकी "लुटिया डूब चुकी" है।
मेरा यही कहना है कि जिसको जहां डूबना है, डूब जाओ पर इतना ख्याल रहे कि आपके इस "डूबने की आदत" के कारण आपके परिवार पर कोई संकट नहीं आ जाए। मेरी नज़र में तो डूबने के लिए "चुल्लू भर पानी" ही सर्वश्रेष्ठ है। इसमें सभी लोग आराम से डूबकर मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं।