HARSH GUPTA

Abstract

4.6  

HARSH GUPTA

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डिअर पापा

डिअर पापा

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पता नहीं पापा कहना तो आपसे बहुत कुछ चाहता हूँ पर पता नहीं आप मेरी बात सुनोगे भी या नहीं, जब आप थे तो आपसे लड़ता रहता था, अब आप नहीं हो तो मम्मी से लड़ता रहता हु, ये मेरा गुस्सा पता नहीं कैसा अजीब सा है, आप बात नहीं करते थे मुझसे, मै भी नहीं करता था, न जाने कौनसी बात से नाराज़ थे आप, अब बस बार-बार यही चलता रहता है दिमाग है, की आप एक एक बात कर लो, एक बार चाहे मुझे डांट लो, पर बात कर लो पापा, एक बार बोल दो तो की मुझे क्या करना है, 

एक बार मुझे बता दो, की घर मे एयर कंडीशनर कौनसा लगवाना है, कौनसा टीवी लेना है, एक मेरे कमरे में लगेगा या, दूसरे कमरे मे, मेरे कमरे मे लगेगा तो कौनसी दीवार पे लगेगा, कौनसी सी कंपनी का लेना है, सस्ता वाला लेना है या महंगा वाला लेना है|

हमने घर मे नयी पानी की टंकी लगाई है, ५०० लीटर वाली की जगह १००० लीटर की, एक बार बता तो दो, की ठीक किया या नहीं, दूसरे कमरे मे अब गीज़र भी लग गया है, आपने पहले से पूरा प्लान करके के रखा था, की यहाँ भी गीजर लगेगा,वहां भी,

कार वैसे की वैसे कड़ी है, आप जानते हो की मुझे चलना पसंद नहीं है, आपने बहन को तो तो सीखा दिया, पर मुझे नहीं सिखाया , वही फिर आपके और मेरे विचार, पहले आप चाहते थे की में दिल्ली जाऊ, वहां जॉब करूँ, पर अब आप चाहते थे की में घर आजायु, 

तो आपने मुझे बुला ही लिया, मैंने आपके लिए फ़ोन मे व्हाट्स एप्प भी दाल लिया है, मैंने पहला मैसेज भी आपको किया था, अब तो बात कर लो पापा, हर रात, बस यही एक अफ़सोस के साथ रहता है, की आपके साथ थोड़ी और बात कर लेता, एक बात आपका हाथ पकड़ लेता, एक आपको गले लगा लेता, मिल के कही घुमंने चलते पापा.......... पर अब न बातें, न कुछ, 

अगर भगवन नाम की कोई चीज़ है, तो बस आपसे बात करवा दे, बदले मे मेरी सारी साँसें ले ले, बस यही सबसे कीमती चीज़ है इस शरीर मे मेरे पास, 

आपके जवाब का इंतज़र रहेगा।


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