डॅडा-मम्मा

डॅडा-मम्मा

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नहीं - नहीं मेरी निमो आत्महत्या नहीं कर सकती ! वो तो जिन्दगी से लबालब थी फिर ऐसा क्या हुआ जो उसने नहीं मैं नहीं मानता मेरी निमो और आत्महत्या यह तो पानी में आग लगाने जैसा हुआ ! मेरी निमो खिलखिलाती मस्ती में झूमती हर लम्हा मानो उसी के लिए ही था जिसे वह भरपूर खुलकर जीती थी ! मेरे गले में बाहें डालकर लटकती और ज़िद करती कि मैं उसे झूला झुलाऊं बड़ी हो गई तब भी यही ज़िद करती - डॅडा-मम्मा मुझे झुलाओ वरना आज स्कूल नहीं जाऊंगी और मुझे उसे झुलाना ही पड़ता ! भला ऐसी मेरी निमो आत्महत्या करेगी ? नो नाॅट एट आॅल नेवर नेवर  फिर क्या हुआ ? यही तो सब सोचने पर मजबूर करता है ! मन मानने को तैयार ही नहीं ! जब मेरी निमो दस दिन की थी तभी गायत्री उसे मेरे हवाले कर खुद कूच कर गई डिलीवरी के बाद पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि जाने से तीन दिन पहले बहुत ज्यादा तबीयत बिगड़ गई डाक्टर्स का कहना था - पूरी बाॅडी में इन्फेक्शन फैल गया है पर मेरी समझ में नहीं आया कि जब सब नोर्मल था तो फिर ये इन्फेक्शन ? इसका जवाब मुझे आज तक नहीं मिला मैं खुद भी तो डाक्टर हूं पर समझ नहीं पाया और न ही जान पाया बस अपनी गायत्री से हाथ धो बैठा ! बड़े-बड़े वादे करने वाली कमबख्त मंझधार में छोड़ गई ! मेरे तो परिवार में भी कोई नहीं था।

अनाथ आश्रम में जो पला-बढ़ा था । गायत्री से मेरी मुलाकात मेडिकल के फर्स्ट इयर में हुई थी साथ-साथ पढ़ते-पढ़ते जाने कब प्यार हो गया ! तमाम विरोधों के बावजूद गायत्री ने मुझसे शादी कर ली तब से उसके पेरेंट्स ने सारे सम्बन्ध तोड़ दिये थे । गायत्री की मौत पर आये ज़रूर थे लेकिन उसका कातिल भी मुझे ही ठहराकर गये ! बच्ची को देखा तक नहीं मेरे डीन डाॅक्टर शर्मा ने कहा भी कि बच्ची को वे अपने साथ ले जायें मगर उनका जवाब था- जब हमारी बेटी ही नहीं रही तो फिर किसी अनाथ के गंदे खून को ले जाकर हम खुद को गंदा क्यों करें ! सोचिए मुझ पर क्या बीती होगी ! क्या ऐसे होते हैं मां - बाप ! वैसे भी मैं अपनी गायत्री की आखिरी निशानी को खुद से अलग करने की तो सोच भी नहीं सकता था ! खैर आये हुए सभी मेहमान अपने-अपने घरों को लौट गए । मैं अपनी निमो को लेकर अपने घर में अपनी गायत्री के साथ रह गया । अपने नाना-नानी की नज़र में मेरी निमो अपशकुनि थी जो मां को खा गई ! नहीं मेरी निमो अपशकुनि नहीं अपशकुनि नहीं बल्कि मेरी मासूम गुड़िया मेरे कलेजे का टुकड़ा मेरी गायत्री की निशानी उसका अंश भला अपशकुनि ?

खैर अब सवाल था अपनी गुड़िया को पालपोस कर बड़ा करना । एकदम तो किसी के पास छोड़ना भी मुझे गवारा न था हालांकि उसकी देखभाल के लिए चौबीस घंटे की आया रखी थी पर वह मेरी नज़रों के सामने रहती थी जहां जाता यानि कि क्लिनिक वगैरह भी जाता साथ ही ले जाता यहां तक कि देश-विदेश की सेमिनारों में भी !

उसे जब भी बोतल से दूध पिलाने की कोशिश की वो पीती ही नहीं ‌थी रो-रो के बुरा हाल हो जाता था ।एक दिन रोते-बिलखते नन्हे होंठों को प्यार से सहलाया तो रोना थम गया मुंह खोल कर चूसने का प्रयास करने लगी तब मुझे पता नहीं क्या सूझा कि मैं रूई के फाहे से दूध पिलाने की कोशिश करने लगा  कुछ बूंदें मुंह में निचौड़ी नहीं पिया सब बाहर निकल गया उंगली से होंठ पोछे तो उंगली चूसने लगी देख कर चकित रह गया और फाहे से दूध उंगली पर निचोड़ने लगा मेरी गुड़िया पीती गई पेट भर गया तो अपने आप छोड़ दिया ! उसके बाद तो इस तरह दूध बड़े आराम से पीती रही रोना तो जाने कहां गुम हो गया था अब तो खेलती किलकारियां मारती ! छ महीने में बैठने भी लगी दूध अभी भी वैसे ही पीती जब तक कटोरी से न पीने लगी । जब कभी रोते हुए चुप नहीं होती तो इस तरह पिलाने से चुप हो जाती मानो मां का स्तनपान कर रही हो ! और इसका यह सिलसिला तो पांच साल की होने तक चलता रहा बड़ी होने पर भी मेरा हाथ पकड़ कर अपने मुंह के पास रखकर सोती !

खूब मेरे साथ मस्ती करती मेरे ऊपर कूदती फांदती कभी मेरे सिर में मालिश करती बाल बनाती कभी शैतान पोनी बनाती !एक दिन दोपहर में आराम कर रहे थे हम बाप-बेटी इसके नन्हे हाथों की मालिश तो जादू ही करती पता नहीं कब पोनी बनाई दिखी ही नहीं फ्रेश होकर क्लिनिक आये ! यह तो खी - खी कर ही रही थी अब स्टाफ भी मुंह फेर के हंस रहा था जब अंदर गया तो अपनी हंसी रोकते हुए रोज़ी ने कहा - सर आपकी पोनी खोल दूं सिर पे हाथ फेरा तो पीछे पोनी हाथ में आई अब तो मेरी भी हंसी छूट गई मेरी हंसी ने जैसे सबको हंसने का सिग्नल दे दिया रुकी हुई हंसी का मानो फव्वारा फूट गया और मेरी गुड़िया पता नहीं कहां छुप गई थी ! फिर खिलखिलाती हुई डॅडा-मम्मा को उल्लू बनाया उल्लू बनाया कहते हुए मेरे गले में बाहें डालकर मेरी गोदी में बैठ गई ! शादी होने तक भी अपने डॅडा-मम्मा को ऐसे ही परेशान करती ! ऐसी जिजीविषा और जीवट भरी मेरी निमो आत्महत्या ? नहीं बिल्कुल नहीं !

फिर वो मुझे कितनी प्यारी थी हम दोनों बाप-बेटी एक-दूसरे के पक्के दोस्त थे अपनी हर बात शेयर करती मुझसे । जब उसे शेखर से प्यार हुआ तो उसने मेरे पूछे बिना ही बता दिया - डेडा-मम्मा आय म इन लव !

वाओ हूं इज दैट माय एनीमी ?

डॅडा ? 

ओके -ओके बाबा बट  

वाट बट ?

अरे मेरी मां एनीमी का मतलब जब शादी के बाद उसके साथ चली जाओगी तो वो मेरा दुश्मन ही तो हुआ जो तुम्हें मुझसे छीन कर ले जायेगा मेरी गुड़िया को मेरी आंखों से दूर ले जायेगा मतलब पक्का जानी दुश्मन !

नो नो डॅडा-मम्मा मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी !

 तो क्या अपने डेडा-मम्मा को साथ ले जायेगी ?

 ओ यस यूं आर राइट माय डीयर डॅडा-मम्मा !

 अगर मैं नहीं गया तो ?

 तो क्या  मैं अपने डॅडा-मम्मा के साथ ही रहूंगी !

और शेखर ?

वो भी रहेगा ! 

अगर नहीं रहा तो ?

तो मैं उससे शादी नहीं करूंगी !

ऐसा सोचने वाली मेरी गुड़िया को मैंने ही शेखर के साथ भेजा था ! शेखर ने भी कहा था - डॅड मैं अपने माम - डॅड के साथ यहीं शिफ्ट हो जाऊंगा उन्हें अकेला तों नहीं छोड़ सकता मैं ही तो उनके बुढ़ापे का सहारा हूं! उसकी यह सोच अच्छी लगी और उसे मैंने अपनी गुड़िया के लिए पसंद कर लिया हर तरह से मुझे अपनी गुड़िया के योग्य लगा । आखिरकार फिर ऐसा क्या हो गया जो मेरी गुड़िया ने आत्महत्या कर ली ! नहीं नहीं मेरी गुड़िया आत्महत्या नहीं कर सकती सपने में भी नहीं ! वो तो मां बनने वाली थी उसने खुद मुझसे कहा था - डॅडा-मम्मा आप नानू बनने वाले हैं ! फिर ? 

मुझे इस फिर का पता हर हाल में लगाना है ! मैं अपनी गुड़िया की ससुराल गया वहां जाने पर मुझे सब बदला-बदला लगा शादी से पहले तो कुछ और ही नजारा था तो अब ऐसा क्या हुआ कि घर के लोग सीधे मुंह बात ही नहीं कर रहे थे मैंने पूछा-मेरी गुड़िया ने ऐसा क्यों किया ? तो उसके सास-ससुर गुस्से में तमतमाते हुए बोलें - क्यों क्या इस प्रकार की लड़की से उम्मीद भी क्या की जा सकती है ! हमारे बेटे की तो जिन्दगी बर्बाद हो गई हमें तो पहले ही पता चल गया था ये लड़की कुलच्छनी और बदचलन है पर क्या करें बेटे के आगे हार गये थे ! वरना ऐसी लड़की जिसे बड़ों की कोई परवाह नहीं अरे भाई छोटों-बड़ों की भी कोई इज्जत होती है कदर होती है मगर यहां तो सब राम-राम हर वक्त अपने यार के साथ हा हा ही ही करती रहती ! हमारी तो नाक में दम कर रखा था अच्छा हुआ जो  

 खबरदार जो आगे एक शब्द भी बोला और बस मैं गुस्से में बाहर निकल आया एयर पोर्ट के लिए टेक्सी को आवाज दी टेक्सी रुकी देखते ही टेक्सी ड्राइवर बोला - डाक्टर साहब आप यहां ?

तुम कैसे जानते हो मुझे ? 

सरजी आप भले ही भूल गये पर मैं कभी नहीं भूल सकता अपने खैरख्वाह को ! टेक्सी के लोन के लिए मुझे कोई गारंटर नहीं मिल रहा था मुझ गरीब की मदद तो मेरे अपनों ने भी नहीं की थी बैंक में आप आये हुए थे पता नहीं क्या सोचकर आपसे रिक्वेस्ट की वो किसी अनजान से - सर आप मेरे गारंटर बनेंगे ? मुझे टेक्सी के लिए लोन चाहिए पर कोई साइन करने को तैयार नहीं आप प्लीज और आगे बोलने का मौका ही नहीं दिया मेरी तरफ बड़े गौर से देखा बोले - कहां करना है ? आपने बिना कुछ पूछे सोचे-समझे साइन कर दिया ! ऐसे देवता को भी भला कोई भूल सकता है ! 

 तुम तो दिल्ली के रहने वाले फिर यहां ?

 मेरी पत्नी के कोई भाई - बहन नहीं इकलौती है पिछले छः महीने से उसके पिताजी बीमार है दिल्ली आने को तैयार नहीं बेटी के घर का कैसे खायें ! पर आप ? 

बताता हूं पहले एयरपोर्ट तो चल ।

जी सर चलिए लेकिन आप यहां इस घर के आगे ये आप जैसे भले इन्सान के रिश्तेदार तो हो नहीं सकते ! बड़े ख़राब हैं ये लोग अपनी गर्भवती बहू को बड़ी बेदर्दी से मार दिया ! 

अच्छा पर तुम्हें कैसे मालूम ?

अस्पताल के लिए टेक्सी बुलाई वो मेरी थी उस बच्ची की हालत बहुत ही ख़राब थी पिछली सीट पर बीच में बिठाया पर बैठने की हालत तो उसकी थी नहीं मैने लिटाने को कहा अपने काम से काम रखो कहकर चुप करा दिया ! आपस में अजीब सी बातें करने रहे थे ! औरत जो शायद लड़की की सास ही रही होगी फुसफुसाते हुए कह रहीं थी - तूने पूरा नहीं पिलाया ? नहीं तो मम्मी आपने जो दिया सब फिर अब तक  इतने में अस्पताल आ गया बच्ची के कराहने की आवाज़ भी नहीं आ रही थी दिल किया गाड़ी सीधे थाने ले जाऊं पर पहले बच्ची की जान जरूरी है मगर उसने तो दम तोड़ दिया था वहीं से वापस लौटने लगे मैं कुछ कहने जा रहा था कि मेरी साइड पीठ में कुछ नुकीला महसूस हुआ बस चुपचाप चल पड़ा ! अफसोस बेचारी के मां - बाप का भी इंतजाम नहीं किया आनन - फानन में दाह-संस्कार कर दिया ! लड़का रुतबे वाला था इसलिए सब रफा - दफा हो गया !

यह सब पुलिस में बता सकते हो ?

पर सरजी मेरे पुलिस में बताने से क्या होगा ? जब लड़की के माता-पिता ने भी कुछ नहीं किया अब तक कोई आया भी नहीं ये भी हो सकता है बेचारों को पता भी ना हो !

वो बदनसीब बाप मैं हूं ! बोलो मेरी मदद करोगे ?

जी सरजी  आपके लिए तो जान भी हाजिर है ! बिना जाने-पहचाने किसी का गारंटर बनने वाला कभी ग़लत नहीं हो सकता ! फिर सरजी आप एयरपोर्ट क्यों जा रहे हैं ? चलिए पुलिस स्टेशन !

 पुलिस ने भी सब सुनकर एफ आई आर दर्ज की और इतने में एसीपी जांगिड़ आ गये डाक्टर साहब को देखते ही बोले अरे डाक्टर तू यहां कैसे ?

 अरे तू एसीपी बन गया कहते हुए बाहें फैलाकर गले लगाया दोनों प्यार के अतिरेक में गुथमगुथा अब बता माजरा क्या है ? डाक्टर साहब ने सब विस्तार से बताया और सुनकर एसीपी जांगिड़ गंभीरता भरी गहराई से बोले - अब बेफिक्र रह तेरी गुड़िया मेरी भी तो गुड्डो है ! पोस्टमार्टम तो नहीं हो सकता बाॅडी जो नहीं है लेकिन आज पांचवां दिन ही है तो मामला अभी गरम ही होगा ! पहले अस्पताल से सुराग निकालेंगे । सिविल अस्पताल के डीन डाक्टर सबरवाल से मिले उनकी मदद चाही उन्होंने पता किया - कौन-सी अस्पताल ले गए थे । हालांकि टेक्सी ड्राइवर बंसी अभी तक डाक्टर साहब के लिए रुका हुआ था उसे अस्पताल का नाम याद नहीं आ रहा था स्थिति ही ऐसी थी पर रास्ता पता था ले गया ! वहां रिसेप्शन पर हॅड के बारे पूछा तो रिसेप्शनिस्ट ने फोन किया तुरंत डाक्टर चौधरी आये पुलिस का सुनकर घबरा जो गये थे उन्हें सम्मान के साथ अपने चेंबर में ले गये बातों के बीच चाय-नाश्ता भी हुआ । डाॅक्टर सबरवाल ने पूछा तो डाक्टर चौधरी ने कहा जी सर यहीं लाये थे पर मर चुकी थी ।

एसीपी जांगिड़ बोले - अच्छा तो आपने पुलिस को सूचना क्यों नहीं दी ? 

डाॅक्टर चौधरी का जवाब था - दी थी सर आप शायद छुट्टी पर थे बाकी किसी ने ध्यान नहीं दिया ।

 पर ड्राइवर का कहना है उसकी टेक्सी में वापस उसी समय चले गये थे !

 साॅरी सर  उन लोगों ने पोस्टमार्टम भी नहीं करने दिया था !

 वाट साॅरी सर अपना काम तो ठीक से करते नहीं बाद में देखूंगा आपको और आपकी आपकी साॅरी को अभी चलिए हमारे साथ ।

 कहां सर ?

 चलिए बैठिए इतने में इंस्पेक्टर सागर आते ही बोले - रहने दीजिए ना सर घर का मामला है । चमचों ने पता नहीं कब और किसको सूचना दी थी पर एसीपी समझ गये सारा माजरा अच्छा तो आप है जिनके बल पर मामला घर का हो गया !

नहीं सर आप नहीं थे ना फिर वे लोग आपकी पहचान के थे सर !

 मेरी पहचान माय फुट मुझसे बात करनी चाहिए थी ।

 अगेन साॅरी सर गलती हो गई ! पर पेशेंट के घरवाले भी बहुत तो रहे थे 

वाह बहुत अच्छे तबीयत यूं ही बिगड़ गई होगी  हार्ट अटैक हो गया था बेचारी की मिट्टी क्यों खराब करनी ऐसा ही कुछ कहना चाहते हो है ना ?

इंस्पेक्टर गर्दन झुकाए खड़ा रहा कुछ नहीं बोला ।

 एसीपी जांगिड़ ने निमो के ससुराल वालों पर कार्रवाई की इन्क्वायरी बिठाई गई टेक्सी ड्राइवर की गवाही के आधार पर सबको दोषी पाया गया तीनों सास-ससुर व पति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई ! इंस्पेक्टर सागर को निलंबित कर दिया गया और डाक्टर चौधरी का लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया !

आज निमो भले इस दुनिया में नहीं है पर डाक्टर साहब के लिए वो यहीं इसी दुनिया में ही है हर जगह मौजूद है ! आज भी वे उसी तरह अपनी गुड़िया के होंठों पर उंगली रखते हैं उसे खिलाते-पिलाते हैं उसकी पसंद की हर चीज बनाते हैं फिर उसके दोस्तों को खिला देते हैं ! दोस्त भी पूरे दिल से खाते हैं । माना कि गुड़िया नहीं है मगर उसके होने का अहसास सर्वत्र है वो अहसास भी ऐसा कि जज्बात भरे सायों में पलता और अपनी ठोस छाप छोड़ता हुआ जिन्दगी के धरातल पर टिका है जहां सिर्फ गुड़िया और उसके डॅडा-मम्मा बस और कोई नहीं !


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