डे 22 :अपने 'चौकीदार ' बनिए
डे 22 :अपने 'चौकीदार ' बनिए
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
डिअर डायरी : डे 22 अपने चौकीदार 'स्वयं' बनिए 15.04.2020
डिअर डायरी,
लॉक डाउन के दिन बढ़ने के साथ ही कोरोना के पेशेंट्स भी बढ़ते रहे हैं। 11500 कोरोना पेशेंट्स का भारत में होना और ज़रूरी सेवाओं का जारी रहना जिसके बहाने लोग अपने घर की लक्ष्मण रेखा पार कर रहे हैं। "कर्फ्यू " लगाने के बाद ही व्यक्ति हिम्मत हार के घर में बैठा है। लेकिन पुलिस और डॉक्टर्स 'ओवरटाइम ' कर रहे हैं। उसके बाद भी जान का 'रिस्क ' है। जान का रिस्क बैंकर्स और सब्जी -राशन बेचने वालों को भी है, लेकिन उनकी बाहर रहने की समय -सीमा कम है। मैंने अपने लोगों को लड़ते हुए देखा है 'ओवरटाइम ' के लिए, लेकिन क्या एक पुलिस वाला कभी भी कह सकता है कि मैं 'गश्त ' नहीं करूँगा ? या कि मैं नाके की निगरानी नहीं करूँगा ? हम क्यों मान लेते हैं कि इनका काम ही जान देने का है ? क्यों नहीं हम खुद को, समाज को इतना प्रभावी बनाते हैं कि हमारे देश के ये रक्षक अपने घर में चैन से बैठकर दो रोटी खा सकें ?
सच में ऐसे जवानों को सलाम है जो आज सब कुछ भूल कर बस लोगों को घर बैठाने की कोशिश में लगे हैं। लेकिन क्या आपको लगता है ये सलाम ,ये फूल -मालाओं को सम्मान देकर हम अपना कर्त्तव्य निभा ले रहे हैं ? आपको नहीं लगता कि हमें उनको ये इत्मीनान देना चाहिए कि सर आप घर में जाकर थोड़ी देर सो जाइये, मेरी कॉलोनी से कोई शख्स बाहर नहीं जायेगा। क्या हम कुछ घंटे स्वयं के 'चौकीदार ' नहीं बन सकते ?
विनती है आपसे कि मेरे देश के इन 'सुपर हीरोज़ ' के जज़्बात समझिये। बाइक घुमाकर और चक्कर काटकर, इन्हें और परेशान न करिये।
सम्मान करिये, लेकिन पुलिस वालों को सहयोग करिये। ये आपका टैलेंट नहीं है कि अपने मेरे देश के एक वीर को चकमा दिया और एक नाका पार कर लिया, ये आपका 'असहयोग ' है जिससे उस पुलिस वाले की गश्त को समय बढ़ाया जा सकता है और उसको और परेशान होना पड़ सकता है। वो आपसे बात कर रहे हैं, आपको समझा रहे हैं, इसे उनकी कमज़ोरी मत समझिये। वो तानाशाह नहीं बन रहे हैं, उन्हें मजबूर मत करिये। हाथ जोड़ कर विनती करते हैं कि घर में रहिये।
ऐ वतन ! वतन मेरे आबाद रहे तू !
मैं जहाँ रहूं, जहाँ में याद रहे तू !!