डायरी के पन्ने डे फोर
डायरी के पन्ने डे फोर


जाने क्यों इस विपत्ति की स्थित में भी आज की सुबह बड़ी सुहानी लगी। सब कुछ तो अपने प्रायोजित कार्यर्क्रम के अनुसार चला। हाँ चाय के साथ जब मोबाइल उठाई तो व्हाट्स एप्प से पता चला आज नहा खा के साथ चैती छठ का प्रारम्भ हुआ। देवी माँ की कृपा बनी रहे जल्द इस भयानक महामारी का अंत हो जाए। इस बंद में आजकल हर दिन ऑन लाइन गोष्ठी हो जाती है अतः 11 से 1 कैसे बीत जाता पता ही नहीं चलता। गोष्ठी में सब से बातें हो जाती है तो बड़ा अच्छा लगता है। इस दरम्यान बच्चों से भी बाते होती रहती है।आज शाम का न्यूज तो दिल दहलाने वाला लगा। दिल्ली आनंदविहार रेलवे स्टेशन पर एकाएक लाखों की तायदाद में लोग एकत्रित हो गए। अब तो राम ही बचा सकते हैं भारत को। अभी सामाजिक दूरियां बढ़ाने की बात हर दिन हो रही है ऐसे में इतने लोगों की भीड़। पता न इस देश के लोगों की समझ कहाँ चली गई है। आज कोई भी इतना नासमझ नहीं है कि अभी के भयावह स्थिति को समझ न सके। घर चलो घर चलो की दौड़ में सभी अपने आप को और अपनो
ं को असुरक्षित करते जा रहे हैं शायद उनकी भी कोई मजबूरी हो जिसे हमारे जैसे लोग जो हर सुविधाओं के साथ घर में बैठे हैं नहीं समझ सकते। हमारी भी मजबूरी है कि चाह कर भी घर से निकल उनकी मजबूरी नहीं पूछ सकते। एक तो वे नादानी कर रहे हैं दूसरा हम केवल उनकी बात सुनने के लिए भीड़ के अंश बन जाएं कहाँ तक उचित है। न्यूज़ बंद करना उचित लगा। मैंने ऐसा ही किया और बच्चों को समझने लगी कि घर से नहीं निकलने है।
बेटा बहू ने बताया कि उनलोंगो की खांसी अभी पूर्णतया ठीक नहीं हुई है तो पुनः मन परेशान हो गया। उन्हें काढ़ा बनाने की विधि और सामग्री लिख कर व्हाट्स एप्प की। काफी देर तक मन परेशान रहा। किसी तरह अपने आप को शांत की और तब उस भीड़ की मनःस्थिति का थोड़ा अंदाज हुआ। ठीक ही कहते हैं -"जाको पांव न फटे बेवाई सो क्या जाने पीड़ परा भगवान से प्रार्थना की - हे भगवान सबको कुशल मंगल रखो। कोई चमत्कार करो कि रातो रात ये कोरोना दुनिया से चला जाए।