डायन
डायन
सीमा' -जो कि ख़ुद अपने आप को एक सशक्त और बुद्धिजीवी महिला की श्रेणी में रखा करती थी, आज जैसे ही 'डायन' धारावाहिक देखने के लिए टी.वी ऑन किया ! .....उसका मन मोम की तरह पिघलते हुए अतीत की गहराइयो में उतरने लगा।
बचपन में जब वह तीनों भाई बहन स्कूल जाने को तैयार होती, माँ उसके भाई के कपार पर काला-टिका कर कहती कि 'राहुल' (सीमा का भाई) को 'रामेशवा-माई' (रमेश की मां) से छुपाकर ले जाना !
'रामेशवा-माई' का घर उसके स्कूल जाने के रास्ते में पड़ता था, जिसको नियति ने असमय विधवा बना दिया था। वह किसी तरह संघर्ष कर अपने बच्चो का पालन कर रही थी। सीमा का अस्थिर मन अब स्कूल की पगडंडियो से निकलते हुए, गांव की कुछ और प्रचलित डायनों के नामों पर अटक गया- जैसे....'अमरा की दाई '(अमर की दादी)..'जलेसरा बहु'....कामेशरा माई..... आदि !
अचानक ! टी.वी. पर विज्ञापन के बाद सुनाई देने वाली ध्वनि...डायन सुनकर सीमा का तन्द्रा भंग हुआ और वह वर्तमान में आ चुकी थी। अब वह भली भांति समझ चुकी थी कि यह मर्दवादी समाज कैसे अपने मनमानी शर्तो पर सिर्फ कमजोर, विधवा और बेसहारा वर्गों में ही 'डायन' पैदा करता है.....संभ्रांत और पुरुष वर्ग में तो इसकी अवधारणा ही नहीं है.....!

