सिक्के
सिक्के
शहर के व्यापार की केंद्र-बिंदु कही जाने वाली "मोतीझील" चौक पर 'अमित' की एक छोटी-सी स्टेशनरी की दुकान थी। उसी दुकान की आमदनी से उसके परिवार का भरण-पोषण होता था।
आज दोपहर में अमित के फोन की घंटी बजी, अमित ने फोन उठाते हुए....कहा....हेल्लो....हाँ....ठीक है....!अमित के घर से फोन था, जिसमें आज "नॉनवेज" खाने की माँग की गयी थी। शाम को घर लौटने के क्रम में उसने 'मटन' की दुकान से मीट खरीदने के पश्चात, दुकानदार को पाँच सौ की करेंसी दी। दुकानदार ने अपना निर्धारित मूल्य काटकर बाकी के पैसे उसे वापस कर दिए....कुछ सिक्के और नोट भी थे।
अमित ने एक सरसरी निगाह से पैसों को देखा और अपनी जेब में डाल लिया। कल शनिवार था और प्रत्येक शनिवार को अमित मोहल्ले के चौराहे पर स्थापित 'हनुमान' जी के मंदिर दर्शन को जाता तथा वहाँ आरती की थाली में कुछ सिक्के अवश्य डालता था। आज इसी क्रम में जब उसने अपनी जेब में ज्योहीं हाथ डाला, उसे उन सिक्कों का स्मरण हो आया, जो कल शाम में उसे 'मीट' के दुकानदार ने वापस किये थे।
सहसा ! अमित के मन-मस्तिष्क में विचारों का एक ज्वार- सा उठा ......और इसमें उसमें उन सिक्कों की पवित्रता के मानक ढूंढ रहा था......!