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रामनवमी का जुलूस

रामनवमी का जुलूस

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वर्मा जी पिछले वर्ष रामनवमी के दिन बाजार जाने में हुई कठिनाइयों को स्मरण कर,अपनी पत्नी को साफ मना कर दिया कि आज किसी क़ीमत पर बाजार नहीं निकलूंगा। कल मार्केटिंग करूँगा, लेकिन श्रीमती वर्मा की ज़िद के आगे वर्मा जी नें आत्मसमर्पण करते हुए, बाजार जाकर सामान लाने को तैयार हो गए। जैसे ही उनकी स्कूटर गली के मोड़ पहुंची उनके मन में उपजी आशंका सत्य प्रतीत होती दिखी, भगवा पट्टी(कपड़ा) माथे पर बांधे युवाओं की भीड़ जिसमे नाबालिग़ बच्चे भी थे, तलवार और गगनभेदी नारों की ध्वनि को सुनकर 'वर्मा जी' नें किसी-किसी तरह सड़क किनारे से साइड लेकर अपने गंतव्य तक पहुंचे। कार्य निपटा कर वापस आने के दौरान जैसे ही 'वर्मा जी' मोहल्ले के नुक्कड़ पर पहुंचे, वहां के दृश्य देखकर उनका माथा ठनक गया। हुआ यूँ--कि मुर्गे की दुकान पर तीन-चार भगवा पट्टी धारी(सिर पर) युवक मीट तौलवा रहा था। वर्मा जी ने अंदाज़ लगाया कि जुलूस के बाद ये लड़के शायद सिर पर बंधे भगवे पट्टी को उतारना भूल गये है और इसी के साथ वर्मा जी को-- रामनवमी के जुलूस की उन्मादी भीड़,गगनभेदी नारों और तलवार भांजते लड़कों के पीछे की सच्चाई मालूम हो गयी थी।


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