डाह
डाह


अभी मैं विश्वविद्यालय से घर पहुंची ही थी कि मेरा फ़ोन घनघना उठा। बहुत थकी हुई थी क्योंकि आज विभागीय मीटिंग की वजह से शाम के चार बज गए थे और मैं बिल्कुल आराम करने के मूड में थी। लेकिन फोन पर शुभ्रा मैम का नम्बर फ्लैश हो रहा था। मेरी सारी थकान छू मंतर हो गई। पूरे छः साल बाद मैम का फोन आया था। शुभ्रा मैम के साथ उनके महाविद्यालय में तीन साल असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर कार्य करने का अवसर मिला था। वहां मेरे करियर की नींव रखी गई थी और शुभ्रा मैम का सान्निध्य प्राप्त हुआ था। विभागीय अध्यक्ष होने के कारण शुभ्रा मैम के मार्ग दर्शन का सुअवसर प्राप्त हुआ था। इन तीन वर्षों में शुभ्रा मैम और मेरे बीच एक गहरा रिश्ता बना... बिल्कुल वैसे ही जैसे मां बेटी का होता है। चूंकि मैं दूसरे प्रदेश से शादी होकर हरियाणा आ गई थी तो करियर की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। मैम मुझे अपनी बेटी के जैसे दुलार करती थी। चूंकि मेरी ससुराल भी मैम के शहर में थी तो मुझे हरियाणा की संस्कृति, परम्परा को समझने में भी मैम से मदद मिलती रही और महाविद्यालय चालीस किलोमीटर दूर दूसरे शहर में था तो मैं शुभ्रा मैम के साथ ही उनकी गाड़ी से जाती थी। उम्र का दशकों का फासला होते हुए भी हमारे बीच एक घनिष्ठता स्थापित हो चुकी थी। शुभ्रा मैम के दोनों बच्चे, बेटी वह बेटा अपनी जाब की वजह से मुम्बई और बेंगलूर में रहते थे। इसलिए भी मैम मुझे पूरा समय भी दे पाती थी और मेरा जब भी मन पैरेंट्स को याद करता था मैम मुझे अपने घर बुला लेती थी। मेरी योग्यता को देखते हुए मैम ने कहा था, " निधि, तुम दिल्ली यूनिवर्सिटी के लिए कोशिश करो... तुम बहुत आगे जाओगी"। वो कहते हैं ना कि सरस्वती का जिव्हा पर वास होता है और चौबीस घंटे में कही हुई एक बात जरूर पूरी होती है... उस दिन निश्चित रूप से मैम के श्रीमुख पर सरस्वती का वास था कि छः महीने बाद ही मेरा चयन दिल्ली यूनिवर्सिटी में एसिस्टेंट प्रोफसर के रूप में हो गया। मेरे माता-पिता के अलावा सबसे अधिक मैम शुभ्रा खुश थीं। समय बीतता गया और एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति के बाद मैं दिल्ली में बहुत व्यस्त हो गई... करियर और बच्चे की परवरिश में खुद को जैसे भूल ही गई थी। बेटा मिहिर भी अब चार वर्ष का हो गया था और पति सोमेश भी दिल्ली में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत हो गए थे। जीवन पंख लगा कर उड़ने लगा था। मैम शुभ्रा से फेसबुक और व्हाट्स ऐप पर मुलाकात हो जाती थी लेकिन फोन किए तो सालों बीत गए थे। आज फोन घनघना रहा था और मैं मेमोरी लेन में गुम हो गई थी। बेटे मिहिर की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी, " Mumma, why are you not picking the phone?"
"Oh, yes... dear" I said in a huff
दूसरी तरफ से मैम की आवाज की खनक कह रही थी कि जरूर कोई खुशखबरी है।
"Hello madam...it's really a great surprise to get your call... how are you.. Lalit and Neha...sir...आप सब कैसे हैं?" मैं एक सांस में कह रही थी।
" निधि बेटा, ललित की शादी तय हो गई है...आप सब पहुंच जाएं पालमपुर...कार्ड डिजिटल ही बनाएं हैं नेहा ने, वहीं वटसप कर रही हूं... बारात का कोई सीन नहीं है... चुनिंदा नज़दीकी दोस्त व close knit family members ही होंगे। सब गंतव्य पर पहुंच जाएंगे...आप जरूर आएं"
"निस्संदेह मैम... मुझे मालूम है आप कुछ भी traditional नहीं करेंगी... you have given sanction to love marriage... I am overwhelmed... हम वहां पहुंच जाएंगे"
"निधि , तुम्हारा इंतजार रहेगा बेटा"
"rest assured madam"
"see you soon"
"yes ma'am, I am so excited"
फोन शांत हो चुका था लेकिन मेरा दिल धड़क रहा था। मैम के जीवन में ये खुशी के पल बहुत सालों की तपस्या का परिणाम था... वर्षों से डिप्रेशन से ग्रस्त पति की देखभाल, खुद की नौकरी... अकेले न जाने कितने दुर्गम रास्तों से होकर शुभ्रा मैम को ये खुशी नसीब हुई थी। ललित और नेहा की जॉब के बाद ये ही इच्छा थी कि एक बच्चे की शादी तो अपने सामने देख लें... नेहा दी, ने तो अविवाहित रहने का फैसला ले लिया था... मैम ने नेहा का फैसला वक्त पर डाल दिया था और बेटे ललित को पिछले साल ही कहा था कि अब गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर अपनी जिंदगी जीए। ललित , नेहा से छोटा था तो वह चाह रहा था कि पहले दीदी की शादी हो जाए, लेकिन मैम शुभ्रा ने समझाया था , "कि सभी की अपनी जर्नी है.. तुम अब अपने बारे में सोचो... दीदी की शादी भी हो जाएगी... वक्त के साथ जब उसे लगेगा वह भी कर लेगी।"
पंद्रह दिन बाद शादी थी और मैं, योगेश व मिहिर पालमपुर, हिमाचल प्रदेश पहुंच गए थे जहां विला कैमिला में शानदार आयोजन था। दो दिन का प्रोग्राम था। हम तो प्रोग्राम से एक दिन पहले ही पहुंच गए थे। मैम भी परिवार सहित पहुंच चुकी थी... अगले दिन मेहँदी से शुरुआत हुई। दुल्हन को देखकर मैं बहुत खुश थी। एकदम शानदार जोड़ी थी। शुभ्रा मैम की दो बहनें और उनके बच्चे भी शामिल होने पहुंच गए थे। बुआ फूफा, मामा का परिवार और बच्चे सब , चाचा चाची वह बच्चे बहुत खुश थे। उधर से दुल्हन का परिवार, नजदीक के रिश्तेदार व सहेलियां सभी आनंद मना रहे थे। आजतक बहुत डेस्टिनेशन शादियां देखीं हैं लेकिन यहां जितनी शांति से सब हवन पूजा और पहाड़ी रीति रिवाज से सब हो रहा था तो सुखद आश्चर्य था और मैं मैम के लिए दिल से खुश थी और हर वक्त उनके साथ खड़ी थी। लेकिन मेरे चक्षु बहुत कुछ देख और रिकॉर्ड कर रहे थे। नेहा दी, और सर सब आनंद मग्न थे। चूंकि मैम तो मुख्य भूमिका में थी तो वो काफी व्यस्त थी और शांत भी। शाम को संगीत का आनंद लेने के बाद रात्रि भोज कर सब अपने-अपने कमरों में आराम करने चले गए। मिहिर भी थक गया था तो मैं भी
मैम को शुभरात्रि कह सोने चली गई थी। ललित के सभी चचेरे, ममेरे भाई वह दोस्त बहुत उत्साहित थे और ललित के कमरे में मस्ती कर रहे थे। सीधी बात है कि सब बहुत खुशनुमा प्रतीत हो रहा था ।
अगले दिन सुबह दस बजे से ही मैम, सर के साथ सभी मेहमान व रिश्तेदारों को उनके कमरे में जाकर बेटे की शादी की खुशी में उपहार व घर पर बनी मिठाइयों के डिब्बे बांट रहे थे। दोपहर बारह बजे शांति हवन का कार्यक्रम था और उसके बाद , हल्दी आदि प्रोग्राम थे। बारात निकलने का समय सांयकाल सात बजे था। उसके बाद तो फेरों तक सभी को व्यस्त रहना था। बारात निकलने से पहले सभी तैयार होकर अपने अपने समूह में फोटो खिंचवा रहे थे। बारातियों के साफे बंध चुके थे। योगेश और मिहिर को तैयार कर मैंने साड़ी डाली ही थी कि मैम के कमरे से कुछ शोर की आवाज़ आई और दरवाजा जोर से बंद हो गया। मैं तुरंत वहां गई तो उनकी दोनों बहनें वहां से निकल कर बाहर चली गईं। चूंकि मैं, मैम को करीब से जानती हूं तो मेरे दरवाज़ा खटखटाने पर शुभ्रा मैम ने खोल दिया।
मैंने पूछा " क्या हुआ मैम?"
मेरा इतना ही कहना था कि मैम फूट फूट कर रोने लगी। मैंने शांत किया, सिर दबाया और उनके पैर मसले। फिर कॉफी बना कर दी।
मैम ने बताया कि, " कल से मैं देख रही हूं। मेरी दोनों बहनें मुझसे मिलने तक नहीं आई। किसी ने एक बार भी नहीं पूछा कि कोई मदद करवानी है...एक भी फोटो मेरे साथ नहीं करवाया है... टूटी डिब्बी में बहु का मुंह दिखाई दिया है...टूटे हुए चावल घुड़चढ़ी की थाली में रख दिए हैं...भानजी को चावल मारने थे...नीले लिफाफे में बेटे को शगुन दिया है...भानजी ने नीले रंग की साड़ी पहनी है जबकि हमारे यहां खास मौकों पर नीला नहीं पहनते, कम से कम चावल मारने वाले को...कल से मेरी ही सूटकेस से कभी शाल तो कभी सूट निकाल कर लें जा रहे हैं... यहां इतनी दूर मैं भी सीमित व चुनिन्दा कपड़े लाई हूं। मैंने, पहले ही सभी को सच्चे मोती , सूट वह कैश दे दिए हैं... मुझे अच्छा नहीं लगता कि कोई मेरे सूटकेस को हाथ लगाए..ऊपर से मेरी बेटी को भी अपने पक्ष में कर लिया है... ये छोटी वाली बहन तो बोलेगी कम लेकिन हरकत ऐसी कर देगी कि दिमाग खराब हो जाता है... सात महीने से शादी की तैयारी चल रही है... इन सब को पहले से पता था, तो पूरी तैयारी से क्यों नहीं आए...इन लोगों को बस अपनी सुविधा चाहिए... वैसे तो इतने लिंक हैं, आखिरी दिन तक मुझे अपनी गाड़ी के लिए ड्राइवर ढूंढने के लिए कहते रहे... शादी के घर में कितने काम होते हैं... मैं इनके काम करूं या शादी की तैयारी... ये लोग चाहते थे कि मैं अपना ड्राईवर इन्हें दे दूं...वो दुल्हन की गाड़ी पर रखना है मुझे..."।
सभी तैयार हो चुके थे। मैंने मैम को शांत किया और तैयार होने में मदद की... बिल्कुल हल्का सा मेकअप किया। मैम को मेकअप पसंद नहीं है। उनका व्यक्तित्व ही इतना प्रभावशाली है कि लोग यूं ही रश्क रखते हैं। बैंड बजने के साथ ही घुड़चढ़ी शुरू हुई। बैंड की धुन पर मैम ने खूब जमकर डांस किया क्योंकि वे नहीं चाहती थी कि सर को कुछ पता चले। उन्हें मालूम था कि सर बहुत तमाशा बना देते। जयमाला कार्यक्रम व डिनर के बाद मैम तो अपने कमरे में सोने चली गईं क्योंकि ये माना जाता है कि मां बेटे के फेरे नहीं देखती। मौसी को भी नहीं देखने होते, लेकिन बड़ी मौसी ने फेरे देखे जो सुबह तीन बजे तक चले थे। पहाड़ी क्षेत्र में सुबह फेरे होते हैं। दुल्हन की विदाई पग फेरे के बाद सुबह पांच बजे हुई। मैंने भी मैम से इजाजत मांगी। आज तक बहुत शादियां देखी थी लेकिन हर शादी में मुझे हमेशा देना ही होता है लेकिन शुभ्रा मैम ने मेरे लिए उपहारों का ढेर लगा दिया।
शादी के पंद्रह दिन बाद मैंने मैम से बात की तो उन्होंने बताया
कि ,"छोटी बहन की डाह इतनी थी कि उसने तो बहन का रिश्ता ही खत्म कर दिया...भानजी मनु ने नेहा के साथ अंग्रेजी में खूब गाली गलौज़ किया... डाह जो छः महीने से सुलग रही थी वह ज़हर बनकर बाहर आ गई थी... मैंने मेल लिखकर भानजी को चुप कराया तो फिर उसे एहसास हुआ कि अब बात हाथ से निकल चुकी... नेहा को अब समझ आ गया था कि वह बेकार ही मेरे से उन लोगों के लिए झगड़ी... इन सभी लोगों को परेशानी ये है कि इतना अच्छा मैच कैसे मिल गया... प्रभु कृपा से डेस्टिनेशन वेडिंग स्वत: ही हो गई चूंकि दुल्हन का गांव पालमपुर से दस किलोमीटर दूर स्थित है और दूसरा घर चंडीगढ़ में है। लेकिन चूंकि उनके दादा दादी व रिश्तेदार पालमपुर के आसपास बसे हैं तो इसलिए पालमपुर में ही शादी का आयोजन किया गया था...इन लोगों को ये भी जलन है कि एक सेलेरी से कैसे सब इंतजाम हो गया... तुम्हें तो मालूम है कि बीस साल से मैं अकेली ही गृहस्थी की गाड़ी खींच रही हूं..."।
"मैम, मैं तो आपकी हर परिस्थिति से वाकिफ हूं... मैंने तो वहां पर भी बहुत कुछ नोटिस किया था लेकिन आपको कुछ नहीं बताया था कि आप परेशान हो जाएंगी... आप खुश रहें। अब अच्छा समय आ गया है... ये रिश्तेदार तो तब तक ही ठीक रहते हैं जब आप उनसे कमतर रहते हैं... बढ़ते कदमों से डाह होना स्वाभाविक है... आप दुबारा से प्रतिलिपि पर सक्रिय हो जाएं... वहां आप की तरह सब एक-दूसरे से सीखते हैं और हौसला अफजाई करते हैं..."।
"ठीक है बेटा निधि..."
"नमस्ते मैम"
"नमस्ते बेटा, मिहिर को मेरा स्नेह"।
"जी, मैम... आपका आशीर्वाद है"
मैम से बात करने के बाद मुझे तसल्ली हुई कि घर पर सब ठीक हैं और सर भी बहुत खुश हैं। सीधी बात ये है
कि आप नीचे गिरोगे तो कोई उठाने नहीं आएगा लेकिन थोड़ा उड़कर तो देखो, सभी आ जाएंगे गिराने।