नेग
नेग


अंजु को चारों तरफ से बधाई संदेश आ रहे थे। वजह भी विशेष थी। मोहित के साथ विवाह हुए अभी एक साल ही हुआ था और पुत्र-रत्न से उसकी कोख नवाजी गईं थी। अंतरजातीय विवाह में काफी मुश्किल आई थी शुरू में । अंजु के माता-पिता कमतर जाति में बेटी का विवाह नहीं करना चाहते थे, लेकिन बेटी की जिद्द के आगे झुकना पड़ा। खैर शादी में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने यही सब्र किया था कि दामाद अच्छे पद पर कार्यरत है। समाज में ब्याह शादियों रहे बदलाव को स्वीकार करने में ही समझदारी है, यही सोचकर विवाह संपन्न हुआ था। अंजु को मोहित बहुत खुश रखता था, इसलिए अंजु के माता-पिता निश्चिंत थे। अब नाना-नानी बनने की खबर सुनकर तो उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। अंजु के सांस ससुर भी खुश थे कि बहु ने आते ही पोते का मुंह दिखा दिया। अंजु की तीन ननद शादी शुदा थी । सभी मोहित से बड़ी थी। मोहित सभी का लाड़ला था, इसलिए मोहित के परिवार में उसके अंतरजातीय विवाह पर अधिक परेशानी नहीं हुई। फिर अंजु भी तो कमाऊ बहू थी। सीधी बात ये है कि कमाऊ बहू सभी की पसंद होती है।
घर में कुंआ पूजन की रस्म अदायगी पूरे इक्कीस दिन बाद हुई। मोहित के पिता ने सामाजिक भोज का आयोजन भी किया था। घर में रिश्तेदारों की मंडली जमा दी। तीनों ननदें भी सपरिवार आई थीं। अंजु के मायके से पीलिया लेकर उसके दो भाई आए थे। अंजु व नवजात शिशु की सोने की चैन व ननदों के लिए पांच पांच हजार के लिफाफे सूट आदी व सास ससुर के लिए चांदी का थाल दिया था। बाकी सभी रिश्तेदारों के लिए सूट आदि, जो मंगवाया गया था। सास, रामरती तो फूली नहीं समा रही थी। दिन भर मिलने जुलने वाले बधाई देकर और प्रीतिभोज में सम्मिलित होकर शाम तक चले गए थे।
अंजु की देखभाल के लिए विशेषकर एक मेड का इंतजाम किया गया था जो अंजु की हर जरूरत का ध्यान रखती थी। मालिश करना, न
वजात शिशु को नहलाना आदि सब उसके जिम्मे था। आजकल ननदें तो दो दिन के लिए ही आती हैं और नेग लेकर चली जाती हैं। अंजु की ननदें भी जाने की तैयारी कर रही थी। सास रामरती ने तीनों बेटीयों के साथ अंजु के कमरे में दस्तक दी और नेग देने की बात कही। अंजु स्वभाव से सरल व मृदुभाषी थी। उसने सास से पूछा
" मम्मी जी, क्या देना है?"
" तुम तीनों ननदों को सोने के आभूषण दो?"
" मम्मी जी, सबसे छोटी दीदी को दे देती हूं, सोने के आभूषण का नेग तो एक का बनता है। बड़ी व मंझली दीदी को पैसे दे देती हूं?"
"नहीं, सभी को आभूषण देने हैं और वो भी इनकी पसंद से"
"शादी में तो आपकी तरफ से तो एक मंगलसूत्र व अगूंठी व पायल ही दी गई थी। अब ये तो शगुन की चीजें हैं?"
"अरे, बेटा जना है। ऐसा सौभाग्य मिला है तुम्हें। तुम्हारे मां बाप ने इतने गहने कपड़े दिए थे, उसमें से दे दो?"
"मम्मी जी, वो तो मेरा स्त्री -धन है और मां पापा की निशानी है?"
"ऐसा करो, चुपचाप दो कंगन बड़ी को दो, हार मंझली को व सोने की पाजेब सबसे छोटी बेटी को दे दो। इतना तो तुम्हें करना ही होगा" सास ने आदेश सुना दिया।
तभी थोड़ा शोर सुनकर मोहित भी वहां आ गया और पूछा क्या बात है।
"भाई, ये तेरी बहू तो नेग देने में भी इतना तर्क कर रही है" तीनों बहनें एकसाथ बोल उठी।
"अंजु, जो मां कह रही है वैसा ही करो। सही सलामत एक पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई है। "
अंजु से नेग लेकर तीनों ननदें अपनी सुसराल जा चुकी थी और अंजु सोचती रही कि ये पंरम्पराएं आज के मंहगाई के युग में कितनी उचित हैं। नेग तो वही सही है जो प्रेम से यथाशक्ति दिया जाए, अपनी खुशी से दिया जाए। सीधीबात ये है कि कब तक इन परंपराओं का भार समाज ढ़ोता रहेगा।