दादी माँ के ड्रामे
दादी माँ के ड्रामे
सबसे बड़ा पोता होने के कारण, दादी से हमेशा से ही मेरी बहुत अच्छी बॉन्डिंग रही। दादाजी पर उनका बहुत रौब चलता। माँ बाबा भी उनके सामने बोलने की हिम्मत न कर पाते थे।
मुझे उनके साथ रहने का फायदा ये मिलता कि अपनी ज़िद उनके माध्यम से पूरी करवाया करता। दादी आज स्कूल नहीं जाना, दादी माँ से ये बनवा दो, बाबा से वो मंगवा दो। दोस्तों के साथ खेलना, घूमने जाना आदि के अलावा मुझे पहला मोबाईल भी उन्होंने ही लेकर दिया।
मैं भी दादी का उनके कामों में भरपूर साथ देता। बुआ जी को दो तीन दिन और रोकने को वे बीमारी का बहाना अक्सर अपनाती। जिसमें मैं ही उनकी रेगुलर दवा को, डॉक्टर द्वारा दी गई इमरजेंसी दवा के रूप में दर्शाया करता।
दादाजी से बात मनवाने को घंटो पड़ोस की आंटी के यहां बैठकर वापस आती, तब मैं ही ऐसे बताया करता कि "कितनी दूर से वापिस लेकर आया हूँ यह कहकर कि मैं दादा जी को मनाऊंगा।"
मेरे नम्बर कम आने पर स्कूल टीचर को अपनी बातों में फंसाकर डांट खाने से बचा लेतीं। अपनी पसंद के खाने के ना बनने पर माँ से बोलना छोड़ देतीं। अपना अंतिम समय बता बता कर 10 बार तो तीर्थ यात्रा पर घूम आई थी।
मेरे लिए उनका यह ड्रामा तब परेशानी बनकर खड़ा हुआ जब उनके सिर पर मेरी शादी कराने की सनक सवार हो गई। अभी कॉलेज का ही तो छात्र था मैं। बहुत कुछ बनना था अभी।
"दादी अभी कुछ साल पहले ही तो मेरी फीडर छुटी है।" मैं मज़ाक के अंदाज़ में बोल पड़ा था।
"कुछ काम धंधा तो ढूंढने दो" बाबा भी मेरी सपोर्ट में बोल रहे थे।
दादाजी कुछ सोच में लीन थे या दादी से पंगा नहीं लेना चाहते थे कह नहीं सकता।
मगर माँ होठों पर हँसी दबाए तिरछी नज़रों से मुझे देखकर शायद यही कहना चाहती थी कि "बच्चू अब पता चला।"
"ज़मीदारों का बेटा है नौकरी की क्या ज़रूरत ? मरने से पहले अपनी पौत्र बहु का मुंह देखना चाहती हूँ, क्या पता अगले साल हूँ या नहीं ।"
दादी के ड्रामे फिर से चालू हो चुके थे।
एक रात तो उनकी इतनी तबियत बिगड़ी कि सब परेशान हो उठे। अपने अंतिम समय का हवाला देते हुए अगले दिन ही अपनी पसंद की कन्या से मेरी सगाई करवा दी।
आज मेरे बेटे का तीसरा जन्मदिन है। दादी आज भी बीमारी का बहाना करके लेटी हुई हैं। ताकि बर्थडे में आई हुई बुआ जी दो दिन और रुक जाए।