चुनाव घोटाला
चुनाव घोटाला
"जल्दी कर आरुष, कोई हमे देख न ले।"
रवि धीरे से फुसफुसाया।
"बस हो गया।" हाल में ही हुए छात्र चुनाव की पेटी अपने हाथ में लेकर निकलते हुए आरुष ने कहा।
"अब अनुराग जीत कर भी हार चुका है।"
रवि ने आरुष के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
लेकिन आयुष यही बात सुनकर यकायक ठहर गया।
"क्या हुआ तुझे" रवि ने पूछना चाहा।
कुछ नही, यह कह कर आरुष बात टाल गया।
रात भर वह इसी बात को लेकर करवटें बदलता रहा कि वह जो कर रहा था क्या वह सही नही है।
अनुराग एक उभरता हुआ छात्र नेता था जिसने कॉलेज में तहलका मचा कर रखा था। उसके आने के बाद आए दिन लड़कियों के साथ होने वाली छेड़कानी, जूनियर्स के होने वाली बदसुलूकी या हम यूं कह लें कि रैगिंग में काफी हद तक कमी आई थी।
उसके आचरण और व्यवहार से आरुष खुश तो था लेकिन इक बात ने उसे अनुराग से दुश्मनी निभाने के लिए मजबूर कर दिया था। वो थ कविता और अनुराग की बढ़ती दोस्ती। न जाने क्यों कविता अब सिर्फ अनुराग के बारे में ही बात करती थी। पिछले सप्ताह अनुराग के विरोध में खड़े हो कर उसने कविता के नजरों के खुद को और गिरा लिया था।
हाल में ही छात्र नेता का चुनाव होना था। हर तरफ से अनुराग के पलड़ा भारी लग रहा था। हो भी क्यों न हर कोई बदलाव चाहता था। कविता पूरे दिन भर अनुराग के साथ लगी रही। उसके साथ साथ पोस्टर लगाती रही तो कभी ऊंची आवाज में चढ़ बढ़ कर युवाओं में अनुराग का गुणगान करती रही।
यह सब देख आरुष से रहा नही गया। उसने फैसला कर लिया था कि वह किसी भी कीमत पर अनुराग को जीतने नही देगा। और वह कामयाब भी हो गया अपने मकसद में। वोटों से भरी पेटियां तो उसने गायब कर दी थी। लेकिन फिर भी एक अजीब उलझन में पड़ा हुआ था।
आरुष ने देखा रात के 2 बज चुके हैं। और सारे लोग सो रहे थे। वह धीरे से उठा और पेटियां उठाई और हॉस्टल से निकल पड़ा।
"आज हमारे कॉलेज के लिए बेहद खुशी की बात है कि हमारे स्कूल में हाल में ही संपन्न हुए चुनाव का परिणाम घोषित होने वाला है।" यह कह डीन साहब ने कुलपति जी को परिणाम बताने के लिए बुलाया।
" शत प्रतिशत परिणाम अनुराग के पक्ष में रहा और अब वह नए छात्र नेता होंगे। " कुलपति ने खांसते हुए अपनी बात पूरी की।
सभी हैरान थे कि यह कैसे हो गया।
रास्ते में रवि ने आरुष से पूछा कि यह कैसे हो गया।
आरुष हंस पड़ा। उसने मुस्कुराते हुए कहा "उसको भी बदलाव चाहिए।"