चलो बढ़ाते कदम आत्मशुद्धि की ओर
चलो बढ़ाते कदम आत्मशुद्धि की ओर
आत्म शुद्धि यानी अपने मन की शुद्धि। क्या हमारा मन शुद्ध है?
अगर हाँ, तो क्यों आते हैं हमारे मन में गलत विचार ? क्यों किसी भी काम को करने से पहले नेगेटिव थोट्स आते है? क्या हम जानते हैं कौन रेसपोनसिबल है इन सब के लिए?
हम और सिर्फ हम ! क्योंकि ये हम पर निभर्र करता है कि हम जहाँ उठते बैठते हैं वहां से हम क्या ग्रहण करते है। सकरात्मक ऊर्जा या नकारात्मक ऊर्जा।
तो क्या हम लोगो के साथ उठना बैठना बंद कर दे?
नहीं, ये तो मुमकिन नहीं क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। और हमेशा एक दूसरे पर निर्भर रहता है। अगर हम समाज से जुड़ेगे नहीं तो हम अकेले रह जायेंगे।
पर क्या किसी के साथ उठते बैठते हम विचार करते है कि वह इंसान सही है या नहीं ?
उदाहरण के तौर पर एक औरत जिससे शायद हम कुछ समय पहले मिले हैं और वह अपनी सास की बुराई किये जा रही हैं। हम भी उसे बेचारी बेसहारा समझकर उसकी हाँ में हाँँ मिलाये जा रहे है। उसकी सास जिसे हमने आज तक हमने देखा भी नहीं कि छवि हमारे मन मैं किसी हिटलर से कम नहीं है।
तो ग़लती किसकी है हमारी या उस औरत की?
हमारी और सिर्फ हमारी, क्योंकि हमने अपने आसपास इतनी नेगिटिव ऊर्जा फैला रखी है कि हम कुछ अच्छा सोच ही नहीं पाते।
तो क्या करें हम? कैसे बचे इस से ?
एक छोटा सा उदाहरण देती हूं।
जब हम कहीं उठते बैठते हैं तो हम देखते है ज़मीन साफ है या नही अगर कचरा है ,तो हम साफ करके बैठते हैं ।और अगर सभंव ना हो तो उठते समय अपने कपड़ों को झटक कर उठते है,ताकि हमारे कपड़े मैले ना हो। उसी तरह किसी के साथ मेल जोल बढ़ाने से पहले समझ लेना चाहिए कि वे लोग कैसे है।और अगर हमें कभी भूल से भी गलत लोगों के संगत मे पड जाये, तो हमें सारी नेगिटिविटी सारे नेगटिव थोट्स को वहीं झटक कर जाना है।
"मुश्किल है मगर नामुमकिन नही, क्योंकि कपड़ों पर लगे मैल को तो मिटा सकते हैं। पर आत्मा पर चढ़े मैल को मिटाना आसान नहीं।"
अगर हम अपने अंदर पोसिटिव ऊर्जा भर दे तो कोई हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
