चिताएं जल रही हैं

चिताएं जल रही हैं

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बाहर मूसलाधार बारिश हो रही है। मधु ने पलंग पर लेटे हुए कम्बल और कस कर शरीर से लपेट लिया। उसका उठने का मन नहीं हो रहा था। कल देर रात तक माणिक से हुई बातचीत अभी तक उसके मन को गुदगुदा रही थी। उसने थोड़ा चेहरा घुमाकर बगल में लगे आदमकद शीशे में अपना चेहरा देखा और खुद लजा गई। उसके बूढ़े हो चले चेहरे पर किसी नवयौवना सी लाली आ गई। धत्त! ऐसा भी कभी सोचा था? इस उम्र में प्यार होता है क्या? पर क्या करे अब? अपने मन पर काबू ही नहीं होता!!

 

जिंदगी रूटीन सी चल रही थी। उम्र का साठवां पड़ाव कुछ दूरी पर खड़ा पुकार रहा है। उनको गए पांच साल हुए, बेटे बहू पोते पोतियों में रमी मधु! सदा जीवन को सकारात्मक नजरिये से जीने को आतुर।  जीवनसाथी की जिस उम्र में ज्यादा जरूरत होती है तभी शर्मा जी का जाना मानो भीतर से सब कुछ तोड़ फोड़ गया पर बच्चों का मुख देखकर कलेजे पर पत्थर रख कर जीती रही। लिखने पढ़ने के शौक ने भी काफी संबल दिया। साहित्यिक मित्रों ने भी खूब संभाला। इसकी गाड़ी भले हिचकोले लेती ही क्यों नहीं, पर पटरी पर आने लगी थी कि भयानक दुर्घटना हो गई।

 

माणिक सुदूर उत्तर पूर्व से कब आकर हमारी साहित्यिक मण्डली में शामिल हुआ ठीक ज्ञात नहीं। पर उसका चौड़ा माथा, घुंघराले बाल, बोलने का तरीका सब कुछ शर्मा जी से इतना मिलता जुलता था कि मधु आश्चर्यचकित रह गई। ऊपर से मधु के लेखन का परम प्रशंसक! कुछ एक मुलाकातों में मधु भी उसकी बौद्धिक क्षमता का लोहा मानने लगी। उसकी दलीलें अकाट्य होती और तर्क पैने। न जाने कब मधु का अतृप्त मन माणिक के संग में ही पनाह पाने लगा। मुलाक़ात न हो तो फोन पर लंबी बातें! साहित्यिक वार्तालाप कब निजी बातों की ओर मुड़ गया इसका भान ही न रहा। माणिक तलाकशुदा है। बाल बच्चों का झंझट नहीं। अच्छी खासी नौकरी करता है और साहित्य सेवा। दोनों एक दूसरे की मानसिक अतृप्ति का पूरक बन गए।

 

साक्षी ने चाय का प्याला लाकर टेबल पर रखा तो अचानक मधु विचारों के भंवर से निकल आई। बाहर बरसात रुक चुकी थी। साक्षी अपनी सास की सभी जरूरतें जानती है। इतने बड़े घर की लड़की, लेकिन कितनी सरल कितनी सौम्य और कर्मठ! भगवान ऐसी बहू सबको दे! विपिन के जन्म के समय ही उसकी कुंडली देखकर मामा जी ने भविष्यवाणी की थी कि बालक मातृ भक्त और आज्ञाकारी होगा। विवाह संबंधी भविष्यवाणी भी सत्य हुई। माता जी यूं ही तो प्रख्यात नहीं थे! उनके ज्योतिष ज्ञान का सिक्का तो सभी मानते थे। काश आज वे जीवित होते तो अपने मानसिक उहापोह का कोई उपचार पूछती।

 

"अम्मा!" साक्षी की आवाज ने फिर उसकी तन्द्रा तोड़ दी, "आज सोई ही रहोगी? 

उठती हूँ रे! आज सन्डे है न, मधु अलसाई सी बोली।

"ही ही ही। क्या अम्मा! आपके लिए क्या सन्डे मंडे आप कौन सी नौकरी पर जाती हो?" मीठा उलाहना देकर साक्षी चली गई। बिलकुल बेटी सी साक्षी। कितनी अच्छी है! मधु ने सोचा।

 

कई दिनों से मधु भारी असमंजस में है। क्या करे? ये मुआ दिल उसका कहना क्यों नहीं मानता? अपने भरे पूरे परिवार को छोड़कर उसकी ओर क्यों भागता है? आखिर क्या परिणति होगी इसकी? घर परिवार, लोग, रिश्तेदार, समाज!! क्या कहेंगे लोग? माणिक तो मस्तमौला है। उसे किसी की परवाह नहीं। वो हर स्थिति से निपट लेने का दावा करता है पर उसका दिल तो उस कबूतर के बच्चे सा आशंकित है जिसे अपनी पहली उड़ान पर निकलना हो। विपिन की क्या प्रतिक्रिया होगी? साक्षी क्या फिर इतने प्रेम से अम्मा कह सकेगी? क्या मैं अपने लोगों की नजरों से गिरना सह सकूंगी? हमारे समाज में इंसान इतना परवश क्यों है? उम्र का इतना महत्त्व क्यों? तमाम सवाल उसके मन को मथ रहे थे।

 

अपने सामाजिक दायरे में रहते हुए प्रेम प्रकरण के निबाह का माणिक का सुझाव इसने अस्वीकृत कर दिया। प्रेम करना कोई पाप नहीं। अगर हम छुप कर करें तब पाप होगा। भले हमारी उम्र अब चौथे पड़ाव पर है पर दिल तो अभी भी उसी भोली तितली सा चंचल और उन्मुक्त! जिसने कल आँखें खोली हों।

 

विपिन नहा धोकर कहीं निकल गया। एक सन्डे मिलता है उसमें भी आराम नहीं करता, मधु ने नाक सिकोड़ी! बच्चे धमाचौकड़ी मचा रहे थे। साक्षी बेडरूम में बैठी अकेली टेलीविजन देख रही थी। मधु को देख हड़बड़ा गई। मधु कभी ऐसे उसके बेडरूम में नहीं आती। क्या हुआ अम्मा?

कुछ नहीं रे! और मधु रोने लगी।

 

अम्मा! साक्षी घबरा गई। मधु के आंसू अनवरत बह रहे थे। उसने मधु को बाँहों में भर लिया और बोली, आपको मेरी कसम अम्मा! बोलो क्या बात है? क्या इन्होंने कुछ कहा?

नहीं रे! मधु फूट फूट कर रोती हुई बोली, तुम दोनों तो मेरी दो आँखें हो। 

फिर क्या बात है अम्मा? 

मैं जीना चाहती हूँ बहू, मैं फिर जीना चाहती हूँ!! 

मधु ने हिचकियाँ लेते हुए कहा।

 

साक्षी आँखें फाड़े उसे देखती ही रह गई। 

और उसी रात भयानक विस्फोट हुआ जिसमें मधु की इच्छाओं, भावनाओं के परखच्चे उड़ गए। उसका अस्तित्व विखंडित हो गया। जो प्रतिमा देवालय के ऊँचे चबूतरे पर स्थापित हो आदर पा रही थी वह गिर कर चूर चूर हो गई। सुना है पुराने जमाने में सती प्रथा थी जिसमें पति के मरते ही स्त्री को चाहे अनचाहे उसी चिता में जलना होता था और यह प्रथा अब नहीं रही। कौन कहता है नहीं रही? उस प्रथा में स्त्री एक बार जलकर मुक्ति पा जाती थी अब तो ताजिंदगी अपनी पहचान मिटाकर, अपनी इच्छाओं आकांक्षाओं का गला घोंटकर तिल तिल जलने को मजबूर है। पति की चिता भले थोड़ी देर में बुझ जाए पर उसके लिए कई चिताएं आजीवन जलती रहेंगी। पति के मरते ही उसका अस्तित्व उसी चिता में जला दिया गया, अब जो लाश बची है उसे दबे छुपे रहकर सांस रहने तक जीना होगा, जलना होगा। हंसना बोलना सब बंद।  ऊपर से एक बुढ़ापे की दहलीज पर पहुंची विधवा प्रेम करे? असम्भव!! 

 

विपिन का रौद्र रूप पहली बार मधु ने देखा। माँ इतना भी गिर सकती हैं यह उसकी कल्पना से भी परे था। अपनी कोख से पैदा करके गोद में खिलाया हुआ बालक समाज का ठेकेदार बन गया। उसे अपनी माँ धर्म और समाज के माथे का बदनुमा दाग लगने लगी। मधु को रोटी के लाले नहीं हैं। पेंशन आती है। शर्मा जी ने भी दाल रोटी का इंतजाम कर रखा है वह चाहे तो अभी सूटकेस लेकर घर से निकल जाए लेकिन विपिन और साक्षी लोगों को क्या जवाब देंगे? छोटे छोटे ऋचा और राहुल लोगों का ताना समझ सकेंगे? और जब समझने लायक होंगे तो अपनी दादी को समझ पाएंगे? जब अपने बेटे ने नहीं समझा तो और कोई क्या समझेगा? उस दिन घर में चूल्हा नहीं जला। विपिन ने माणिक को देखते ही जान से मार देने की घोषणा कर दी। दूसरे दिन सबेरे साक्षी अम्मा के कमरे में आई तो वह मुंह ढके सो रही थी। कम्बल उठाकर देखा तो अम्मा का निश्चेष्ट शरीर कभी न खुलने वाली निद्रा में लीन था।  नींद की गोलियों की पूरी शीशी खाली पड़ी थी।  माणिक की एक छोटी सी तस्वीर मधु ने मजबूती से हाथ में पकड़ रखी थी जिसे साक्षी ने जबरन खींच कर बाहर निकाल लिया और दहाड़ मार कर रो पड़ी।

 

 

 

 


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