चिराग की जिन्न
चिराग की जिन्न
जब पहली बार मिली उससे, तो वो किसी चिराग की जिन्न ही नज़र आई मुझे।घर में चक्करघिन्नी की तरह घूमती सभी की जरूरतों को झट से पूरा करती, मुस्कुराकर सामने आती ,पूछती, आपकी क्यि सेवा कर सकती हूँ, जैसे ही कोई कुछ कहता, तुरन्त गायब हो जाती जैसे, अगले ही पल उसकी जरूरत का सामान होता उसके हाथों में।
मैं चकित थी, अलाउद्दीन के जिन्न की कहानी तो कहानी थी नहीं, उसका सच से क्या वास्ता।
पर आज वो कहानी उस घर में अपने आप को साबित कर रही थी । आखिर कैसे।
कोई इतना अधिक परफेक्ट कैसे हो सकता है, हर समय मुसुकुराता हुआ, हाजिर हर किसी के लिए।
मैं दो दिन के लिए ठहरी थी वहाँ ,मेरी दोस्त का घर था।रात सोचते-सोचते कदम उस लड़की के कमरे की ओर बढ्र गए अनायास ही। आजकर शहरों में कामवाली मिलना कितना दूभर है और फिर इतनी परफेक्ट हर समय मुस्कुराती सी।। कोई सपना -सा लग रहा था मुझे।
कमरे के बाहर जैसे ही दरवाजे पर हाथ रखकर खोलना चाहा, अन्दर से सुबकियों की आवाज आई, मेरे कदम ठिठक गए, वो किसी से फोन पर बात भी कर रही थी,, फुसफुसाते हौए उसने कहा ," आप मेरी बिल्कुल भी चिन्ता ना करें मैं बिल्कुल ठीक हूँ, बस आपकी आवाज सुनकर रोना आ गया। यहाँ मुझे कोई परेशानी नही। बहुत अच्छे लोग हैं, प्यार से रखते हैं।
मेरी उत्सुकता और बढ़ गई,,,आखिर बात क्या है ,दिनभर मुस्कुराते, खिलखिलाते चेहरे के पीछे का सच ,,,।
मैंने रात में उसके कमरे में जाना उचित नहीं समझा। पर मैं रातभर उसके बारें में ही सोचती रही।
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दूसरे दिन रविवार था मेरी दोस्त भी आज फुरसत में थी। हमदोनो ने पिकनिक का आयोजन किया था।
करीब दस बजे नाश्ते के बाद हम निकले, मैंने देखा कि वो उसीतरह मुस्कुराते हुए हमें भेज रही है साथ ही उसने मेरी दोस्त सबे कहा, "आप घर की फिक्र मत करना में बाबुजी और बच्चों को ठीक तरह से देख लूँगी।
ताज्जुब हुआ मुझे और थोड़ी ईष्या भी अपनी दोस्त से ,इतनी अच्छी केयर टेकर पाने के लिए।
आज पिकनिक में भी मेरा मन नहीं लग रहा था ,बस उसकी सिसकियाँ सुनाई दे रही थी।
अन्त मूं मैंने अपनी दोस्त को बताया रात की बात।
उसपर उसने जो बताया, सुनकर उस लड़की के प्रति और मेरी दोस्त के प्रति भी मेरे मन में आदर का भाव और बढ़ गया।
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वो कह रही थी और मैं सुन रही थी,,",पिछले साल एक हिल स्टेशन पर घूमने गए थे वे लोग, मेरी दोस्त उसके पति और दो बच्चे।
पहाड़ों की सैर करते -करते मैं एक और गई तो देखा पहाड़ के किनारे एक लड़की खडी सुबक रही है, अचानक मुझे लगा वो कूदने वाली है, मैंने झटके से दौड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया
उसने हतप्रभ मुझे देखा और मुझसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी
पता नहीं, उसक्षण मेरे बाजुओं में कहाँ से ताकत आ गई मैं उसे ऑही छोडा, तब वो जोर से रोने लगी,,और कहने लगी, मुझे जाने दे,,कृपया मुझे मरने दें, अब जीने के लिए मेरे पास कुछ ऑहीं बचा
पिक्चरों में देखा था मैंने ,ऐसे में थप्पड मारकर होश में लाया जाता है, मैनें कभी किसी को थप्पड नहीं मारा, पर उसदिन पहलीबार हाथ अनायास ही उठ भी गए, तब एकबात समझ में आई कि हम जो देखते हैं वो अपने आप ही सीख भी लेते हैं अतः देखने का चुनाव भी जरूरी है।
खैर, मेरे थप्पड मारने से वो और जोर से रोने लगी,,,
मैंने उसे बाहों में भरा और छाती से लगा लिया। धीरे धीरे उसका रोना सुबकियों में बदल गया।
मैंने अपनी पर्स से पानी को बोतल निकाली,और उसे दी ।दो धूँट पानी पीकर वो थोड़ी शान्त हुई,,, तब मैंने ध्यान से उसे देखा ,,पतली -दुबली झरहरी बदन की साँवली सी सूरत, तीखे नैन नक्श, उम्र कुछ सतरह अठारह के करीब, पहाडी पोशाक में ,,, पर कपड़े बेतरतीब से, जैसे बदहवासी में लम्बा सफर तय किया हो,,,
उसने सुबकते हुए कहा, "मैम साब, आपने मुझे क्यों बचा लिया,,,,मेरा अब इस दुनिया में कोई नहीं, कही ठिकाना नहीं,,,, कहाँ जाऊँगी,,,मौत से अच्छी कोई गोद नहीं जो मुझे अपनी पनाह में ले ले।"
मैंने पूछा ,"आखिर ऐसी क्या बात है जो ईश्वर की दी हुई इस भेंट को तुम यूँ बर्बाद करना चाहती हूँ?"
उसकी फीकी-सी हँसी जैसे जाने क्या कहना चाहती थी,,,पर मुझे जानना था, आखिर क्यों एक मासूम -सी कली खिलने के पहले मुरझाना चाहती है।
"आप जानकर क्या करेंगी,, मेरे ही माता-पिता ने जब बिना कुसूर के मुझे मरने के लिए छोड दिया तो अब कौन है जो मुझे सहारा देगा।"
मेरी उत्सुकता और बढ़ गई थी, भला माँ-बाप अपनी बेटी को मरने के लिए क्यों छोड़ देंगे। ऐसा कभी सुना नही।
मैं तुम्हारे माता-पिता से बात करूँगी ,मुझे समझाओ तो सही।
नहीं मैम साब , उनका भी कोई दोष नहीं। हमारे समाज की प्रथा के खिलाफ नहीं जा सकते वे भी।
फिर मेरे पिता अपाहिज हैं, भाई है नहीं, माँ भी कुछ साल पहले चल बसी। हम तीन बहनें। मैं बडी हूँ, अगर मैं जिन्दा रही तो मेरी छोटी बहनों से कोई विवाह नहीं करेगा।
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पहेली उलझती जा रही थी,,,उसी अनुपात में मेरी उत्सुकता भी बढती जा रही थी।
बिना माँ की बेटी,,,अपाहिज पिता ,,छोटा -सा गाँव, पहाड़ की तलहट्टी में,,,
हम बहुत खुश थे मैम साब।
मैं घर सम्भाल लेती थी, मेरे पिता खेत पर बैठकर बटाई आदि काम देख लेते थे, दोनों छोटी बहने पढने जाती थी ।
सुबह -शाम में भी आस -पडोस के सरदारों के घर का काम कर आती थी।
पर वो मनहूस शाम।आपकी तरह ही किसी शहर से तीन लड़के धूमने आए।मैं सरदार मलिक सिह के घर से खाना बनाकर लौट रही थी।उन्होने बड़ी शालीनता से पूछा," हमें भूख लग रही है ,यहाँ कोई होटल है क्या पास में।हमारे गाँव में होटल नहीं हुआ करते मैम साब।
हाँ, गाँव के बाहर एक ढाबा है जहाँ, दाल रोटी मिल जाती है।
उन्होने कहा हम नए है रास्ता बता दोगी क्या?
मुझे लगा भूखे हैं शाम भी हो गई है अतः इन्हें रास्ता बताकर वापस लौट आऊँगी , ज्यादा दूर नहीं।
मैं उनके साथ आगे बढी, अंधेरा और गहरा गया था,,,रास्ते सूने हेने लगा,,,, अचानक किसी ऑए मुँह को भींच लिया और बगल में खडी एक बडी कार में खसीटते हुए ले गए,,मैं बहुत छटपटाई पर कोई फायदा नहीं वे तीन थे और मैं अकेली,,,,।आगे क्या हुआ मेरे साथ,,,,कैसे बताऊँ,,,मेरे लिए तो,,,,,,।मैं दर्द, अपमान और विश्वासधात के सदमें को झेल न सकी ,,बेहोश हो गई।
आधी रात जब होश आया तो एक किनारे फेकी पडी सी में कूडे के ढेर पर कूढे की तरह।
कुछ समझ ही नहीं पाई,,,,,उठने की कोशिश की तो शरीर पर जगह-जगह खून बह रहा था कपडे फटे पडे थे,,,और चेहरे पर खरोंच के निशान ,,जैसे जंगली जानवरों ने नोच खाया हो,,
किसी तरह घर पहुँची,,,पूरा गाँव सो रहा था।पर पिताजी दरवाजे पर बैठे थे मेरे इन्तजार में,,,,,।किसीतरह धसीटती अपने शरीर को मैं पहुँची दरवाजे तक,, छोटी बहनों ने दौडकर सम्भाला मुझे।
तबतक मैं फिरसे बेहोश हो चुकी थी।
सुबह उठी तो बहनों ने बताया कि गाँव वालों से पिताजी ने कहा है कि आपको कलरात जंगली जानवर उठाकर ले गया था, बहुत मुश्किल से बच पाई है।मुझे समझ नहीं आया, ऐसा क्यूँ कहा उन्होंने।पिताजी ने मुझे धरेलू दवाईयाँ दी और करीब एक महीने में मैं ठीक भी गई, उनकी नजर में। पर अब में पहले वाली निडर सोनिया नहीं रही,,उस हादसे ने मुझे इतना डरा दिया कि मैं घर से बाहर निकलने में डरने लगी।
तीन महीने हो गए, उस बात को,,,एक दिन अचानक उल्टियाँ शुरू हो गई,,,पिता जी की पारखी नजरों ने क्या भाँपा मुझे पता नही, बस उन्होंने कड़ाई से एक ही बात कही, अब तुम यहाँ नहीं रह सकती,,, तुम्हारा मर जाना ही तुम्हारी बहनों के लिए उत्तम है, नहीं तो इनका विवाह भी नहीं होगा।
आखिर, मेरा कुसूर क्या है, मैंने क्या किया है बाबा,,?
वो जानते थे मेरा कुसूर नहीं।फिर भी उस समाज में विवाह से पूर्व माँ बनने की यही सजा है।अगर समाज तक बात फैली तो फिर बहनों की शादी भी नहीं होगी। गर्भपात को वहाँ पाप समझा जाता है।
किन्तु एक पिता होने के नाते वे ये सारी बातें मुझसे खुलकर नही कह सकते थे।
मैं नादान,,,सतरह साल की ,,नहीं जानती माँ बनना क्या होता है,,,,।
अब आप ही बताएँ,,,मेरे पास क्या उपाय है, मरने के अलावा।
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उसकी भोली पर दर्द में डूबी आवाज ने मुझे अन्दर तक हिला दिया।
शहर की शिक्षा और संस्कृति,,,,
हर माँ के सिर को शर्म से झुकती आज के युवा पीढ़ी के करतूते ,,,अन्जाम से बेफिक्र स्त्री शरीर को भोग की वस्तु मात्र मानकर जब जहाँ जैसे,,,,, अमानवीयता की पराकाष्ठा,,एक नाबालिग कन्या,,,आज मौत से गले मिलने तैयार,,,, निर्दोष जीवन की हत्या का दोषी कौन?
वे तीन लड़के, उनके माता -पिता ,,,,उनके शिक्षक या शहरी जीवन की नापाक संस्कृति की एक मैली धारा,,,,?
जो भी हो इसके लिए अब इस गाँव में जगह नहीं।
माँ हूँ मैं भी। समझ सकती हूँ इसके पिता के दर्द को। कलेजे पर किसप्रकार पत्थर रखकर उन्होंने ये फैसला लिया होगा।
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थोड़ी देर सोचकर मैंने कहा ,तुम मुझे अपने पिता के पास ले चलोगी?
उसने सूनी आँखों से देखा, उन आँखों में आशा की एक पतली सी किरण भी झलकी मुझे।
मैं उसके पिता से मिली, उनसे उसे अपने साथ शहर लेजकल ठीक से रखने की बात की।
मुझपर विश्वास करना कठिन था उनके लिए, पर उनके पास अपनी बेटी को जिन्दा रखने का यही एक उपाय भी था। वो मान गए।
रात उसे मैं अपने होटल में लेकर आ गई।
दूसरे दिन हम शहर पहुँचे,,,, सबसे पहले एबार्शन जरूरी था,,मैने उसे समझाया ,,मान गई वो ।
मेरी एक डाक्टर दोस्त की मदद से एबार्शन करवाया और कहा तुम आराम करो ,कुछ दिन ,,फिर जैसा तुम चाहोगी वो करेंगें।
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एक महीना भी नहीं बीता था ,उसने अपने आप ही घर को सम्भालने की जिम्मेदारी इतनी अच्छी तरह ले ली कि हमें पता ही नहीं चला, मेरे दोनों बच्चों से इस तरह हिलमिल गई जैसे उसके छोटे भाई-बहन हों।
कहती है अब वो मुझसे -" आपने मुझे दूसरा जन्म दिया है अब आप ही मेरी माँ हो।"
हमसब उससे बहुत प्यार करने लगे हैं, अभी छोटी है , कुछ सालों में इसकी शादी कर दूँगी।
अब मुझे उस हँसती खिलखिलाती गुडिया सी चिराग की जिन्न वाली लडकी के लिए चिराग मेरी सहेली ही नज़र आ रही थी,,, उससे सम्बन्धित सारे प्रश्नों के जबाब तो मिल गए थे ,,पर ढेर सारे सवाल इस समाज और संसार के पर्ति मेरे मन में अब भी चल रहे थे,,,जिनके जबाब कहाँ मिलेगें, पता नही,,,,,।
