हिम्मत मत हारना
हिम्मत मत हारना
बडा सुहाना-सा दिन,खिलता हुआ सूरज, और बसंत बयार, मन चहक उठा, आ चल कहीं लम्बी सैर कर आए,,।
क्यूँ ना कार साथ लेंलें।
आनन फानन में कुछ पूरियाँ तली एक भाजी और थोडा सा आम का अचार, कुछ मीठा भी तो हो, मन ने कहा, चलो कोई बात नहीं ,रास्ते में खरीद लेंगे।
दो जोडी कपडे भी तो रख।कहीं लौटने में देर हो जाए तो,चलो, वो भी रख लिए।
गुनगुनाते से चौपहिए पर सवार,रास्ते में दिखा एक दोस्त ,चल आ जाए, थोडी पिकनिक मना लें,,, बैठ गया वो भी खुशी -खुशी।
थोडा आगे, एक बूढा, चल नहीं पा रहा था मानों धसीट रहा था कदमों को, मन ने कहा बैठा ले इसे भी,
बैठा लिया, एक से भले दो, दो से भले तीन,बस अब तो गाते -झूमते आगे बढते गए,भूख लगी सभी को, चहकते हुए कहा मैंने, फिक्र क्या है,,मेरे पास सारा इन्तजाम है,, पोटली खोली जैसे अन्नपूर्णा का भंडार, अपने लिए तीन समय का, तीनों के लिए एक समय में ही सफाचट, झककर खाया,।
अब मीठे की बारी,दोस्त ने कहा आनन्द आ गया।
बूढे ने कृतज्ञता से देखा,मैं तो झूमने ही लगा,
अरे ये क्या,गाडी स्टार्ट ही नहीं हो रही,बूढा अपनी भाषा में बोला, येन अयतो(क्या हुआ )।
मैने सोचा शायद कुछ अटक गया है चलो थोडा धक्का देते हैं,,,दोनों ने मिलकर थोडा धक्का दिया, पर गाडी तो टस से मस होने के लिए तैयार नहीं,
अब क्या किया जाए, बूढे ने चारों ओर देखा, फिर कहाँ ,,अरे मेरा गाँव अब ज्यादा दूर नहीं ,,नानु होगबहुधो(मैं जा सकता हूँ।) धन्यवाद।
हाथ जोडा और चला गया,,,
मैने दोस्त की ओर असहाय होकर देखा,,
दोस्त किसी सोच में था, बोला,मुझे एक जरूरी काम याद आ गया है मैं भी चलता हूँ, कोई मिस्त्री मिले तो भेजता हूँ ।
,,,,,,मै अकेला,,खोज में किसी की, आगे बढने लगा,रास्ता पथरीला, पैंरो में क॔कड की चुभन,सिर पर चमकता,, गर्मी और पसीने से तर बेतर,प्यास भी लगने लगी, देखा चारों ओर दूर तक कोई भी घर नहीं बस बंजर से खेत, जैसे मुझे मूँह चिढा रहे हो, बेहाल अपने पैरों की थकन से कहीं अधिक मन से,अब वो चहक नही रहा, ये क्या चप्पल भी टूट गई,
अचानक चुभी एक कील, खून से लथपथ पैर,,
बस और नही चल सकता, लगता है अब कहीं नही पहुँच पाऊँगा, मन भी आज चुप चाप, क्यों क्या उसने भी साथ छोड दिया है मेरा, क्या उसने भी हार मान ली,
शायद हाँ,,,अब?
तभी एक पेड दिखा एक चबूतरा, बैढ गया मैं,
अपने पैरों को लहूलुहान देखकर हिम्मत ने जबाब दे दिया था, जल्दबाजी में प्राथमिक उपचार का डिब्बा भी नही रखा था गाडी में ,,,और गाडी भी तो इतनी दूर छोड आया, लगा इसीतरह यहाँ ,,जीवन का अन्तिम पडाव तो नहीं ,,,मैं अचेत -सा,
तभी देखा एक बच्चा पेड के दूसरे कोने पर सिर टिकाए कुछ पढकर हँस रहा था,उसने देखा मुझे,मेरे हताश चेहरे और बहते धाव को,थोडी -सी मिट्टी उठाई और मेरे धाव को ढँक दिया,फिर कहा, बाबा, तुम भी कहानी सुनोगे, बहुत मजेदार है,,
दो मेढक खेल रहे थे,
अचानक वहाँ दूध से भरे खुले डिब्बे में गिर गए।
तभी दूधवाला आया और डिब्बे का ढक्कन बन्द कर चला गया।
दोनो धबरा गए।
एक ने कहा दोस्त, हमें तो पानी मै तैरने की आदत है ये कौन सा पदार्थ है, इसमें तो मेरे हाथ पाँव ही नहीं चल रहे।
दूसरे ने कहा, सही कहते हो दोस्त, पर हाथ पाँव नही मारेंगे तो मर जाऐंगे ,कोईशिश तो करनी होगी, हिम्मत रख।
दोनों हाथ पाँव चलाने की कोशिश करते रहे, नया था उनके लिए दूध में तैरना,
अन्ततः एक थकने लगा, कहा दोस्त अब नही, और नही मार सकता मैं इस तरल पदार्थ मै अपने हाथ -पाँव,,
बस हो गया,,।
उसने हार मान ली, हाथ पाँव मारना बन्द कर दिया, और थोडी देर में ही वो डूबकर मर गया,।
दूसरा बहुत दुःखी हुआ, पर उसने हाथ पाँव मारना बन्द नहीं किया,,जैसे जैसे रात गहराती गई,,,वो थकता गया पर उसने हिम्मत नही हारी,दूध पर मक्खन जमने लगा,,,
अब वो धीरे धीरे उस मक्खन से धिरने लगा, उसका बिछौना मानो तैयार हो गया था, वो आराम से मक्खन पर बैठ गया,,
रात बीत चुकी थी, सुबह दूधवाले ने ढक्कन खोला, वो फुदककर बाहर आ गया।
वो बच्चा अब जोर जोर से ताली बजा रहा था,और मैं जो मन से हारकर बेहोशी की कगार पर था, अचानक उठ खडा हुआ,देखा तो आकाश पर छुटपुट बादल सूरज को ढँकने का असफल प्रयास कर रहे थे मेरा खून बन्द हो चुका था, मैं उठा और पूरे आत्मविश्वास से आगे बढ़ने लगा।