संवेदनशीलता
संवेदनशीलता
कोरोना कोरोना कोरोना
तंग आ गई हूँ मैं रोज बस यही समाचार कहीं भी देखो कहीं भी सुनो नही देखना मुझे टीवी नही सुनना अब इस बारे में कुछ भी । रोज की इस डर वाली जिन्दगी की कहानी से अब धबरा -सा गया है मन । पिछले सप्ताह किसी की मौत का समाचार अब तो सुबह शाम की तरकारी भाजी हो गई है ये मौत की खबरें जैसे कोई जीवन से नही हारा कहीं धूमने निकला हो ये क्या हो गया है ये कैसा दौर आ गया है मेरा तो दिमाग ही जैसे बन्द खाली डिब्बा बन गया है क्या हम इन्सान नही रहे संवेदनाएं मर रही है ?हम पत्थर के होते जा रहे है ?
सोच ही रही थी मैं अचानक फोन की धंटी बजी मेरी बहुत प्यारी दोस्त मनु हास्पीटल में है जिन्दगी और मौत की जंग
उसकी बेटी की भरी हुई आवाज हिल गई मैं अन्दर तक मेरा कलेजा मुँह को आ गया।
सिर चकराने लगा हाथ पाँव फूलने लगे
आँखे जैसे बरसने को तैयार बैढी थी
रोज टीवी पर सुनती थी खबरें किसी न किसी की तब तो ऐसा कुछ नही हुआ बस अफसोस के दो बोल ।
फिर आज मनोरमा की खबर में ऐसा क्या नया था ?
तब समझ आया नया था क्योंकि वो मेरी अच्छी दोस्त थी बहुत करीबी दिल ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था मैं उसके लिए कुछ भी करने तैयार थी जिससे मेरी प्यारी सहेली ठीक हो जाए ।
यानि संवेदनाऐ मरी नही है अभी भी मैं इन्सान हूँ अभी भी प्यार है मेरे दिल में
रोती हैं आँखें आज भी मेरी
बस इन्तजार है तो मनोरमा की वही पहले वाली मधुर आवाज सुनने का और प्यारी-प्यारी बातों का जो हम धण्टों बैठकर करते रहते थे काॅलेज के अहाते में पेड़ की छाँव के नीचे बैठकर क्या वे पल फिर से लौटेंगेएक डर फिर से।