अपनापन और स्त्रीधन
अपनापन और स्त्रीधन
आज जब पता चला उसे कि बहु ने एक नया जेवर बनवाया है अपने पैसों से,,
तो स्वाति को याद आ गई 25 साल पहले की बात,, जब वो एक क्राकरी का सेट घर के लिए पसंद कर लाई थी, ननद के साथ जाकर।
घर आने पर उठा था एक भूचाल, उसे किसने हक दिया घर के पैसे इस तरह बर्बाद करने का । कान पकड़ा था उसने,,,, नहीं खरीदेगी कभी कुछ भी इस घर के लिए।
पर उसने तो कभी इस घर को पराया समझा ही नहीं था, तभी तो अपनी पर्स के पैसों को भी वो घर के कामों में खर्च करती रही थी बिना सोचे समझे।
थोडे दिन बाद अपने मायके और इधर-उधर से प्राप्त उपहारों के पैसों को जोड़कर उसने अपने लिए एक कंगन खरीदा सोने का।
ससुर ने कहा सास से ," बिना पूछे कैसे खरीद लाई,"
"ठीक कहते हो जी"- कहकर सास ने मुझे बुलाया और कड़े स्वर में पूछा,,,तब विनम्रता से मैंने कहा ," माँ ये मेरे जमा किए पैसों से लिया है"
"तू कौन सा कमाती है ,,,सब मेरे बेटे की ही तो कमाई है,,,"
मैं चुप रह गई,,, बस दो बूँद पलकों से सरककर धूल में मिल गई।
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आज जब बहू ने जेवर खरीदा, तब अमन ने भी फिर वही अपने पिता की बात दोहराई,,,, पर सास बनी स्वाति ने आज विरोध करते हुए विनम्रता से कहा, "गलत क्या है,, स्त्रीधन पर स्त्री का हक होता है , उसने अपने जोड़े गए पैसों से बनवाया है, इसमें गलत क्या है?"
अमन चुप रह गया।
आज पहली बार लगा स्वाति को, कि बहू का साथ देकर मैंने सही किया है,,,, काश, मेरी सास भी इतनी हिम्मत कर पाती, साथ दे पाती मेरा तो,,,,,,,,,,।