छोटी बड़ी खुशियाँ अपनों के साथ

छोटी बड़ी खुशियाँ अपनों के साथ

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"सुनो साधना, बसंत का फोन आया था क्या ? कब आ रहा है बताया उसने ?" रमेश जी ने साधना से पूछा। "हाँँ जी.... सुबह फोन पर बात हुई थी। कह रहा था कि उसके पास छुट्टियाँँ नहीं हैं। वह शादी से एक दिन या दो दिन पहले ही आएगा।" उसको शादी के बाद भी काफी छुट्टियाँँ चाहिए। और उससे ज्यादा उसे छुट्टियाँँ नौकरी में नहीं मिल सकतीं।

''आपको जो ठीक लगे आप व्यवस्था कर लेना'' साधना ने कहा। रमेश जी ने गुस्से में बोला, ''यह क्या बात हुई खुद की शादी है, व्यवस्था तो देखनी होगी, होटल है, लेने-देने का सामान है, और ना जाने कितने फैसले करने हैं, उसके बिना कैसे होंगे ? फिर कुछ कमी रह गई तो सारी जिंदगी कुछ ना कुछ बताता रहेगा।" रमेश जी ने तेज आवाज में कहा।

साधना बोली, ''मैंने कहा था उससे पर उसने कहा कि आजकल सब कुछ नेट पर हो जाता है वहीं से देख लेगा।''

"अरे ! हलवाई का देखना है, उसका खाना पीना भी क्या नेट पर ही चख लेगा। शादी भी नेट से कर लेता फिर।" साधना मुस्कुराते हुए बोली अरे ! "आप भी क्या मजाक करते हो। आप हो, देवर जी हैं"..... "जी, तो उसने कह दिया होगा। तुम तो बेटे की तरफदारी करोगी। छुट्टी नहीं मिल रही शादी भी नेट पर ही कर लेना।"

साधना मुस्कुराती हुई रसोई में चली गई और दो कप चाय बना कर ले आई। बच्चों का ऐसा ही विदेश में से नौकरी करके यहाँँ आना-जाना है कि जल्दी नहीं हो पाएगा। वह भी सही कह रहा है शादी के बाद कहीं घूमने का प्रोग्राम बनाया होगा। इससे ज्यादा छुट्टियाँँ कहां मिलेंगी ?

"देखो ना एक हमारा जमाना था पाँच दिन पहले आ गए थे, आप बारात लेकर और पिताजी ने एक महीना पहले ही नाई, मोची और हलवाई सबसे कह दिया था आप की खातिरदारी करने के लिए।"

"हाँँ.... हाँँ...... याद है सुबह ही हजामत करवाने के लिए धमकता था, सोने भी नहीं देता था।"

"हाँँ, आप तो कमी निकाल दोगे। अगर जरा सी भी कमी हो जाती तो तब देखते पर, वह भी क्या दिन थे, चार-पांच दिन पहले बारात आ जाती थी और सब व्यवस्था करते थे और मेरी सारी बहनें, मौसी, बुआ सब दस दिन पहले आ गए थे और ढोलक की आवाज में तो पड़ोसी कई दिनों से सुनने लगे थे। हाँ, पर तब लड़की वालों को परेशानी बहुत होती थी।"

"अब देखो बसंत कब आएगा ? कब ढोलक बजेगी ? कब रौनक होगी ? पहले तो कितना आनंद आता था, सारी बहनें हंसते-हंसते एक दूसरे का काम कर लेती थीं। अब की बार भी मीता मेरी छोटी बहन और ननद जी सुमित्रा दीदी को कह दिया है कि मैं कुछ नहीं जानती तीन दिन पहले आना ही होगा। चाहे उनके पति को छुट्टी मिले या ना मिले।"

"एक ही बेटा है उसकी शादी में भी रौनक नहीं होगी क्या ? हाँ... हाँ.... तुम्हारी तुम जानो और आजकल समय ही किसके पास है ? जो नौकरी से छुट्टी लेकर तुम्हारे घर दो-तीन दिन पहले आएगा। आज कल घर से शादी कहाँँ होती है। मैरिज हाॅल कर दिया है, वहीं आएंगे।

वहीं हल्दी की रस्म हो जायेगी, भात भी। संगीत भी एक दिन पहले कर लेना। घर साफ ही रहेगा।"

"सुनो जी, मेरे जो खास हमारे परिवार के हैं वह तो घर पर ही आएंगे, मैं भी अरमान पूरे करूंगी बसंत की शादी में।"

"अच्छा-अच्छा जो तुम्हें अच्छा लगे वह कर लेना। वह भी कितने प्यारे दिन थे सब में अपनापन था। भाई-बहन पहले ही पूछ लेते थे काम क्या करना है , कब आयेंं ?"

शादियों में सहयोग देना, एक दूसरे को अपना समझ के काम करना। परिवार में जब पूरा परिवार साथ रहता था तब चाहे जेठ जी के बच्चों की शादी हो या कोई त्यौहार हो या कुछ हो सब मिलकर करते थे और अपना समझ के करते थे।"

"पर अब जमाना बदल गया है साधना कब तक उन बातों को बोलती रहोगी।

आजकल तो शादी का कार्ड ना पहुंचे तो नाराज, कार्ड पहुंच जाए और फोन ना करो तब सब नाराज, कार्ड भी भेजो और सब को अलग से फोन भी करो । आजकल सब दिखावे का जमाना है। साधना, नाराजगी का एक बहाना चाहिए। किसी ना किसी बहाने से कमी निकालने की आदत थी और रहेगी , बरसों से ये ही है। फिर भी तुम सोच समझ कर जिन-जिन को भी बुलाना है किसको क्या देना है ?

सब की एक सूची बना लो। आजकल कुछ ध्यान भी नहीं रहता।"

"बसंत आ जाता था तो मेरा आधा बोझ हल्का हो जाता पर फिर भी सुरेश (छोटे भाई) से बोलूँँगा कि आकर थोड़ा सहयोग दे। अभी तक पूछने भी नहीँ आया कि भैय्या कुछ काम है क्या ?" छोड़ो, चाय पिओ साधना ने हँसते हुये कहा।

(कुछ दिन बाद)- "चलो, कुछ खरिदारी दिया आ कर करा गयी, देवरानी का फर्ज निभा रही है। कुछ आपके साथ, कुछ मीता करा देगी। ज्यादातर काम हो गया, शादी के कुछ ही दिन है चलो, जैसे-तैसे सब काम हो गया। अब शादी के कुछ ही दिन बचे हैं।

दीदी को और मीता को बोल दिया है, मैं तो जानती नहीं शादी के बारे में दोनों के.. बच्चों की शादी हो चुकी है, तो क्या-क्या होगा यह तो उनसे पूछना होगा। कह रही थीं चूल्हा चक्की मिट्टी के बनेंगे, जगराता होगा, भात लिया, टीका, मेहंदी, और भी बहुत सारी रस्म गिना रही थीं दोनों। मैंने तो कह दिया मुझे कुछ याद नहीं रहता। आप आ जाना और करवा देना।"

आपकी बसंत से बात हुई क्या ? साधना ने पूछा "हाँँ हुई थी जब मैंने कहा कि अब तेरी मम्मी को थकान होने लगी है तो बस भड़क गया। मैंने तो कहा था यह छोटी-छोटी रस्में रहने दो। इसकी वजह से बाजार के चक्कर ज्यादा लगेंगे, शादी.... कोर्ट मैरिज कर लेता हूँ और रिसेप्शन बढ़िया देंगे, फिर वही बात लेकर बैठ गया था। पैसे और समय की तो बचत होगी।

कोर्ट मैरिज, रिसेप्शन से पर क्या मेरे अरमान पूरे हो पाएंगे। वैसे भी हमने लड़की वालों से कोई मांग नहीं की है। हमें बस केवल लड़की चाहिए जो हमारे घर में आकर रौनक कर दे। हँसी-खुशी के लिए फोन करो समझता नहीं है कोई बात",रमेश जी ने गुस्से में कहा।

साधना ने कहा "आप मत करा करो उसे फोन, मैं ही कर लूंगी। जब भी बात करते हो तो ऐसी उखड़ी हुई बातें करते हो।" "अरे, यह तो मैंने क्या गलत कह दिया? शादी के दो दिन पहले आएगा, कुछ ना कुछ काम रह जाता है।"

(कुछ दिन बाद)- "मीता तेरे और दीदी के आने से खूब रौनक हो गई है, अब सारी रस्में तुम ही संभालो कैसे-कैसे करनी हैं। सारे अरमान रह जाते हैं अगर तुम दोनों नहीं आतीं, बस आज ढोलक बजाना शुरू कर देंगे। और कुछ याद आता रहे तो हमें बता देना।" साधना ने कहा।

"हाँँजी, हाँँजी जी आते क्यों नहीं ?

हर एक किसी की शादी में थोड़ी जा सकते हैं, अपनों की शादी में ही जा पाते हैं और बुलाते भी अपने ही हैं।" "गैरों की शादी में तो उसी दिन जाना", मीता ने हँसकर कहा। रमेश जी बोले रौनक हो गई अब तुम दोनों की आने से, सुरेश भी कह रहा था, दिया को आज भेज देगा।

अरे वाह ! देवर जी मुझसे भी कह रहे थे। साधना ने कहा.....बच्चों का तो पता नहीं एक दूसरे से मिलते नहीं, बसंत बाहर रहता है शादी में पता नहीं आ पाएंगे या नहीं।

 अरे ! क्यों नहीं आएंगे ! मम्मी जरूर आएंगे। बसंत..... बसंत की आवाज पर साधना ने चौंक कर कहा ! रमेश जी के पैर भी जल्दी-जल्दी कमरे की तरफ बढ़े। हाँँ बसंत बोल रहा था शायद। "मैं आ गया मम्मी, अरे ! तू तो बाद में आने वाला था।

आता कैसे नहीं ! आपकी वह भावुकता भरी बातें और घुमा-घुमा कर बात कहना सब समझ में आ रहा था मुझको।"

साधना ने गले से लगाया और उसकी आँँखों में आँँसू आ गए। मम्मी, मैं बेटी नहीं हूँ जो विदा होने के लिए आई हूँ। देखो ना मीता ये कितनी मजाक करता है।

साधना और रमेश जी की चेहरे पर खुशी के भाव अलग झलक रहे थे , बसंत को देखकर। बसंत ने आते ही सब के पैर छुए। अरे! अब इसको निहारती रहोगी या चाय-नाश्ता भी लाओगी। बड़ी दूर से आया है।

हां, हलवाई गर्म-गर्म मठरी बना रहा है, चाय के साथ खिलाओ।

मैंने सब से कह दिया है मेरे सारे भाई-बहन आते ही होंगे। एक-दो दिन में साधना ने कहा। अरे! तू कब मिला? देवर जी तो मना कर रहे थे कि मिहुल नहीं आ पाएगा। अरे मम्मी..... सोशल मीडिया का जमाना है।

हम लोग ग्रुप में हैं। भाई-बहन सब मेरी शादी की तो कब से तैयारियां चल रही हैं।

सभी आने वाले हैं और शादी में धूम मचाएंगे और सबको अपनी यादें जो ताजा करनी हैं, बचपन की गोपाल की देसी घी की चाट और छत पर बैठकर अंताक्षरी खेलना.... सब कुछ पुराना फिर दोहराएंगे। सब लोग आपस में बड़े मुस्कुरा रहे थे कि देखो आजकल बच्चे भी एक दूसरे के साथ रिश्ते बनाए हुए हैं यही तो चाहिए।

बस, जिंदगी में.... खुशी में... सब एक दूसरे के साथ हों और दुख में एक दूसरे के साथ, बाकी सब अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं ,इतना ही बहुत है जिंदगी में....आजकल सब दूर रहते है पर सोशल मीडिया से सब पास आ गये हैं।

सबकी जिन्दगी में क्या हो रहा है सब जानते हैं ,रिश्ते बने रहें इतना बहुत है। खुशियों में दुख में साथ रहें। खुशियों में अपने साथ ना हो तो सूनी होती है हर खुशी....चलो ढूँढते हैं छोटी-छोटी खुशियाँ अपनों के बीच। मिलने- मिलाने का समय, साल में एक बार जरूर निकालें।


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