छैला

छैला

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गुलफाम नगर का दिलरुबा चौक गर्मी की उस शाम चहल पहल से भरा था। ऑफिस से लौटने वाले, घर का राशन खरीदने वालो और फालतू की मटरगस्ती करने वालो की भीड़ से पूरे दिन सुनसान रहा दिलरुबा चौक अब पूरी तरह आबाद था।

मजनू गली का ६२ वर्षीय अर्धगंज हंसराज अपनी खटारा स्कूटर पर मटरगस्ती करता इस गली से उस गली घूम रहा था। आशिक मिजाज हंसराज पूर्ति विभाग से रिटायर होने तक विभाग की महिलाओं के सर का दर्द बना रहा, बड़ा बाबू था इसलिए सब उसकी ठरकीपन झेलती रही लेकिन उसके रिटायरमेन्ट के दिन सबने अपनी खूब भड़ास निकाली और उसे खूब खरी-खोटी सुनाकर विदा किया।

उसके परिवार के हर सदस्य, बेटो-बहुओ ने उसे खूब समझाया की अब तक जो हुआ सो हुआ अब वो शराफत की जिंदगी जिए। लेकिन हंसराज कुत्ते की दुम की तरह सीधा न होने वाला प्राणी था अब उसका काम गली-मोहल्ले की लड़कियों को ताड़ना और सड़क पर आवारागर्दी करना था।

आज भी इसी काम से वो सड़क पर था राह चलती लड़कियों, महिलाओ को वो अपनी गुस्ताख़ निगाहो से घूरता अपनी स्कूटर इधर से उधर घूम रहा था। तभी उसकी निगाह ट्युसन से वापस आती तीन किशोरियों पर पड़ी और उसकी स्कूटर का पहियाँ स्वतः उनकी और मुड़ गया। उसके होठ गोल-गोल मुड़ गए और सिटी बजाते हुए गुनगुनाने लगे— सामने ये कौन आया दिल में हुई हलचल………….

तीनो लड़कियां जो अब तक अच्छी-बुरी निगाह में फर्क करना सीख चुकी थी, सिटी की आवाज से थोड़ा विचलित हुई और उनके कदम तेजी से आगे बढ़ने लगे।

उसी सड़क पर थोड़ी दूर मक्खन हलवाई की दुकान के सामने नल के पास सफाई के लिए रखी कड़ाही को एक मरियल सा कुत्ता बड़ी बेताबी के साथ चाट रहा था। कुत्ते पर निगाह पड़ते ही हलवाई भड़क उठा और चिल्ला कर बोला— "अबे फग्गू, जग्गू कहाँ मर गए, कुत्ता नहीं दिख रहा क्या तुम्हे?"

हलवाई की आवाज सुनकर लड्डू बनाते फग्गू, जग्गू दुकान से बाहर निकले। कुत्ते को कढ़ाई चाटते देख फग्गू ने पास में पड़ा ईंट का अद्धा कुत्ते को खींच कर मारा। कुत्ता जोर से चयाऊं-चयाऊं करता भागा और जा टकराया सीटी बजाते हंसराज के स्कूटर से। कुत्ता स्कूटर से इतने जोर से टकराया था की हंसराज का बैलेंस बिगड़ गया और उसने स्कूटर रेस गलती से बढ़ा दी। उसका स्कूटर तीर की तरह रेढ़ी-खोमचे वालो से टकराता पास के पब्लिक स्कूल की दीवार से जा टकराया और टकरा कर दीवार के साथ बहते गंदे पानी के नाले में जा गिरा।

स्कूटर के नाले में गिरते ही पूरे बाजार में चिल्ल-पौ मच गयी और कुछ कम व्यस्त दुकानदार और फ़ालतू घूमते लोग नाले में गोते लगाते हंसराज को देखने चले आये।

"अबे बड़ा बदमाश बुड्ढा है ये, रोज लड़कियों को छेड़ते हुए घूमता है यहाँ।" —एक युवक मुस्करा कर बोला।

"आज मजा मिल गया सीटियाबाज़ी का सा….. को।" —दूसरा लड़का हंसकर बोला।

तब तक मक्खन हलवाई वहां पहुँच चुका था, उसने नाले से बाहर निकलने का प्रयास करते हंसराज को देखा और बोला— "अबे लड़को बकवास ही करते रहोगे या इसे बाहर भी निकलोगे?"

"तुम्ही निकालो अंकल इसे, हमें अपने हाथ गंदे नहीं करने।" —दोनों लड़के एक साथ बोले।

हलवाई ने अपने नौकरो की तरफ देखा तो दोनों एक स्वर में बोले— "बाबूजी हमे लड्डू बनाने है, हम अपने हाथ गंदे नहीं करेंगे।"

हंसराज पूरी तरह गंदे कीचड में सना हुआ था और पांच फ़ीट गहरे नाले से बाहर निकलने का हर प्रयास करके थक चुका था और अब वो कुत्ते को और कुत्ते को खदेड़ने वालो को गन्दी-गन्दी गलियां दे रहा था।

हलवाई उसकी हालत देखकर कुछ सोच कर बोला— "फग्गू बेटे जरा मुंसिपालिटी के दफ्तर चला जा वहां जुम्मन मिलेगा उसे मेरा नाम लेकर उससे कुत्ते पकड़ने का जाल ले कर आ।"

फग्गू तीर की तरह गया और १५ मिनट बाद अपनी साईकिल पर कुत्ते पकड़ने का जाल लेकर वापिस आया।

कुछ दरियादिल लोगो ने हंसराज को कुत्ते पकड़ने का जाल नाले में फेंक कर जीवन लाल को नाले से बाहर निकाला। तब तक मक्खन हलवाई का दूसरा नौकर उसके इशारे पर पानी की बाल्टी और मग लेकर आ गया था, पानी क्या था बर्तनो को धोकर बचा गंदा पानी था। बिना कुछ सोचे समझे जग्गू ने पानी के मग भर-भर कर जीवन लाल के ऊपर फेंकने शुरू किये। पानी का हमला इतना जबरदस्त था की हमले से घबरा कर हंसराज के मुंह से गलियां निकलने लगी।

"देखो बाबू ज्यादा गली-गुफ़्तार करने की जरूरत नहीं है, दया करके तुम्हारे जैसे सीटियाबाज़ को नाले से निकाल दिया है, नहीं तो डूब मरते इस नाले में..........भलाई का जमाना नहीं है.........चलो बे लड़को चल कर दुकान का काम देखो।" —मक्खन लाल गुर्रा कर बोला और अपने नौकरो के साथ कुत्ते पकड़ने का जाल लेकर अपनी दुकान की और चला गया।

हंसराज पर उसकी बातो का कोई असर ना पड़ा, अब वो सोच रहा था की उसकी सीटियाबाज़ी की वजह से नाले में डूबे स्कूटर को निकलवाने और ठीक करवाने में कितना खर्च आएगा।


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