चौथा स्तम्भ
चौथा स्तम्भ
रमेश बाबू समाचार देख रहे थे। अपने छोटी सी नातिन को गोद में बिठा के यही बोल रहे थे, देख बेटी जब तू भी बड़ी बनेगी तब मैं तुझे ऐसे हैं एक न्यूज रिपोर्टर बनाऊंगा।
तभी मिसेस रमेश ने पूछने लगी,
अरे भाई क्यों उसको न्यूज रिपोर्टर बनाना चाहते हो ?
तुम्हें पता है हर एक न्यूज रिपोर्टर अपनी जान से खिल कर भी सारे न्यूज हमारे पास पहुंचाते है।
सच में ? और नहीं तो क्या?
क्या उन लोगों को इतनी दिक्कत उठाना पड़ता है.?
अरे हां। तभी तो सारे समाज के न्यूज हमारे पास है।
घर में बैठ के भी हमको सारे खबरें मिल जाते है.।
ओ , ये तो मुझे पता नहीं थी।
कैसे पता होगा ..। तुम तो कभी न्यूज भी देखती नहीं हो।
तो क्या हमारे नातिन भी न्यूज रिपोर्टर बनेगी।
हां , क्यों नहीं।
अच्छा मुझे बताओ तो, न्यूज रिपोर्टर बन जाना क्या सुरक्षित होगा.?
हुम्म, यही तो दिक्कत है।
अभी ना जाने कितने रिपोर्टर को कई तरह मुश्किल के सामना करना पड़ रहा है।
जब कभी वो स्टिंग ऑपरेशन करते है, तो पता नहीं कितने जोखिम उठा के वो काम करते है।
तो क्या उनको खतरा है?
खतरे का तो पता नहीं, पर हां ऐसे लगने लगा है , जैसे समाज के ये चौथा स्तंभ सुरक्षित नहीं है।
खतरा तो वक्त के साथ हो सकता है बढ़ने लगा है।
तो हम अपनी नातिन को कोई दूसरे जॉब में भेजेंगे।
हां शायद तुम ठीक बोल रही हो।
छोड़ो वो सब बाते।
ऐसे लग रहा था जैसे रमेश बाबू के मन मैं बहुत जोर से चोट लग गई।
देश के चौथा स्तंभ को ले कर वो भावुक है, और होना भी चाहिए, नहीं तो घर बैठे हमको ऐसे खबर ना मिल जाती.....।
