बुरे फंसे
बुरे फंसे
मंजूषा को बुनाई का बड़ा शौक था। उसके हाथ के बने स्वेटर जो भी देखता था बरबस ही वाह वाह कर बैठता था।इतनी सफाई की मन मोह ले और इतनी पक्की अपनी कला में कि किसी के पहने हुए स्वेटर को भी बगैर सीखे हूबहू बना सकती थी।
साथ ही साथ वो दिल की भी बहुत अच्छी थी। कोई भी अगर उनसे सीखने आता तो वो चाहे जैसे समय निकालें, निकालकर उसको जरूर सिखाती थी। कई बार बहुत थक भी जाती थी सर्दियों के दिनों में ज्यादा सिखाने के चक्कर में।पूरा परिवार समझाता भी था कि इतना ज्यादा थक जाती हो तो कुछ को अगले दिन आने के लिए भी बोल सकती हो पर वो अपने नरम स्वभाव के कारण कभी मना नहीं कर पाती थी।
उनके पड़ोस में थोड़े दिन पहले कुछ नए लोग आए थे। मंजूषा की तारीफ सुनकर एक दिन वहां से भी एक औरत राधा उनसे स्वेटर सीखने आ गई पर उसे कुछ भी नहीं आता था। दिल से मजबूर मंजूषा ने बड़ी कोशिश की उसे सिखाने की और इसी चक्कर में लगभग पूरा स्वेटर उन्होंने खुद ही बनाकर दिया । राधा भी बहुत खुश थी।
दो ही दिनों में राधा फिर से नई ऊन लेकर आ गई एक और स्वेटर बनाने को। फिर से वही सब हुआ, तकरीबन सारा स्वेटर उन्हें ही बनाना पड़ा। ऐसा जब एक बार और हुआ तो मंजूषा की छोटी ननद सीमा कहने लगी कि भाभी राधा आपका फायदा उठा रही हैं। आप उन्हें मना क्यों नहीं करती।मंजूषा बोली कि मुझे भी अब समझ आ गया है लेकिन कैसे मना करूं ये समझ नहीं आ रहा।
सीमा बोली आप बस इस बार जब राधा आए और मैं कुछ कहूं तो मेरी हां में हां मिलना बाकी मैं संभाल लूंगी। वही हुआ अगले दिन राधा फिर नई ऊन लिए चली आ रही थी। पर इस बार सब उसके आने को लेकर तैयार थे। जैसे ही राधा बैठी वैसे ही सीमा बोली अच्छा हुआ आप आ गई। आप भी भाभी को समझाने में मेरी मदद करो। राधा ने बड़े शौक से पूछा क्या समझाना है भई।
सीमा ने कहा कि मेरे समझाने पर भाभी स्वेटर सिखाने की क्लासेज शुरू करने के लिए मान गई बस मैं कह रही हूं कि एक स्वेटर के 500 रुपए सिखाई होनी चाहिए जबकि भाभी कह रही हैं कि 400 ठीक हैं। अब आप बताइए कितना होना चाहिए और साथ ही साथ भाभी की क्लास की पहली शिष्य भी आप ही बन जाएं।
राधा जो अब तक मंजूषा के नरम स्वभाव का फायदा उठा रही थी और सारे रिश्तेदारों के स्वेटर भी बनवाने लग गई थी अब बुरी तरह फंस गई।ना भी नहीं कर सकती थी क्योंकि हाथ में नई ऊन थी सो चुपचाप फीस के पैसे 400 रुपए उसने सीमा को दे दिए जोकि पहली बोहनी होने के नाम पर मांगने से रुकी ही नहीं।
अब राधा को बहुत रोना आ रहा था क्योंकि ये ऊन उसकी दोस्त की थी और वो ये फीस के पैसे क्यों देने लगी जब राधा ने उसे पहले ही कहा था कि फ्री में बनवा कर लाऊंगी। अब राधा को समझ आया कि अच्छे की अच्छाई का फायदा उठाना आ बैल मुझे मार जैसा है पर ये बात उसे बड़ी देर से समझ आई।