बुद्धू
बुद्धू
मुकेश कक्षा आठ में पढ़ता था। वह पढ़ाई-लिखाई में कमजोर था, जिस कारण स्कूल और गाँव के सब बच्चे उसे बुद्धू कहकर चिढ़ाते थे। जब वह सुबह-सुबह स्कूल पहुँचता था, तब बच्चे उसे देखकर कहते थे- "अरे बुद्धू आ गया रे, देखो।" ऐसा कहकर वे ही-ही करके हँसने लगते थे।
मुकेश को साथियों का ऐसा व्यवहार बहुत बुरा लगता था, लेकिन वह किसी से कुछ नहीं कहता था। वह दिन-रात मेहनत करता था। बहुत जल्दी उसने अपनी हैंडराइटिंग भी सुधार ली। अर्द्ध वार्षिक परीक्षाओं का परिणाम आया। बुद्धू पूरी कक्षा में तीसरे नंबर पर था। किसी को यकीन नहीं हुआ। उसके साथियों ने कहा- "चूहे के गले में सोने की माला।" लेकिन बुद्धू पर किसी की बात का असर नहीं पड़ा। उसने और अधिक मेहनत करनी शुरू कर दी।
वार्षिक परीक्षाओं का परिणाम आया। बुद्धू का कक्षा में प्रथम स्थान था। उसके सभी सहपाठी चकित रह गये। उनको अब पूरा विश्वास हो गया था कि बुद्धू अब बुद्धू नहीं रहा। परिश्रम के बल पर वह बुद्धू से होशियार बन गया है।