"बुढ़िया की सनक"
"बुढ़िया की सनक"
मैं कौन हूँ ?
कोई बताएगा मुझे,
मेरे भी मुँह में जीभ है, बोलने दो ना
कब बोलना है मुझे यही बता दो
कुछ तो बोलने दो.!
माँ मुझे बोलना है क्यूँ चुप कराती हो
बचपन में कितने सवाल होते थे मन में, कुछ भी बोलने पर कभी माँ चुप करा देती, कभी पापा, तो कभी भैया अभी तुम छोटी हो इतना मत बोलो.!
थोड़ी बड़ी क्या हुई वही दशा रही, एलफेल मत बोलो अब तुम बड़ी हो रही हो "मैं सहम कर चुप"..!
आहा अब तो मैं जवान हूँ थोड़ा तो बोल सकती हूँ,
प्रिया पराये घर जाना है पता है ना ससुराल में नाक कटवाओगी लड़कीयो का इतना बोलना अच्छी बात नहीं, कम बोला करो या चुप रहा करो जब देखो बड़बड़, "मैं चुप"।
ससुराल में बड़ी बहू थी कुछ भी बोलने पर सासु माँ का ताना बहू अपनी हद में रहो ये तुम्हारे पापा का घर नही अभी मैं बैठी हूँ, मानों मेरे बोलने से उनका सिंहासन छीन जाएगा, "ओर मैं चुप".!
मुझे बोलना है पति को दो बातें सुनानी है प्यार जताना है रूठना है मनाना है, पर डांट, मेरी बात में कोई टांग अडाए मुझे बिलकुल नहीं पसंद तुम चुप रहो तो ही बेहतर होगा मैं रूआँसी हो गई कहाँ जाके हक माँगूँ सिर्फ़ बोलने का..और मैं चुप"
नौकरी करने लगी सच्चाई की पुतली जो ठहरी सच बोलने पर नोटिस मिली अपना ज्ञान अपने पास रखो अगर शांति से नौकरी करनी है ओह यहाँ भी आज़ादी नही, "मैं चुप"
बच्चे बड़े हुए हर टाॅपिक पर बातें करनी चाही पर, मॉम आपको कुछ पता नहीं प्लीज़ चुप रहिए, ये आपका ज़माना नही, मौन मुखर होने को तड़प उठा पर हक नहीं मिला, "और मैं चुप"
अब तो बुढ़ी हो गई बोलने दो ना, ये बुढ़ापे की सनक नहीं आखिरी आरज़ू समझो,
दादी माँ आपको कमरा दिया है ना क्यूँ बार- बार बात करने के बहाने डिस्टर्ब करते हो आपको आराम की जरूरत है जाईये आराम करिये ज्यादा बोलना आपकी सेहत के लिए ठीक नहीं.! "मैं चुप"
हलक में शब्दों के मजमे अटके है सबसे बहुत कुछ कहना है मौन की कब्र में दबे अल्फ़ाज़ों को दफ़नाते थक चुकी हूँ कुछ तो बोलने दो।हा
पर ये किसकी आवाज़ है?
अब चुप भी रहो अनंत की डगर पर अकेले ही जाना है किससे बात करोगी चलो मैं तुम्हें लेने आई हूँ,
ओह तो मेरी साँसें खतम हो गई मौत खड़ी है दरवाजे पर सुनो कोई तो सुनो उस अलमारी के नीचे जो.....
अरे दादी माँ बोलो बोलो क्या अलमारी के नीचे क्या माँ बोलो ना ......क्या है अलमारी के नीचे सुनो प्रिया प्रिया बोलो ना क्या अलमारी के नीचे......
सबको अलमारी में रस था पर अब मुझे कुछ भी नहीं बोलना, मैं चुप चाप हंमेशा के लिए चुप हो गई अलमारी का रहस्य अपने मौन में दफ़ना कर एक भीतरी सनक लिए।।
