बसंती की बसंत पंचमी- 31
बसंती की बसंत पंचमी- 31
ओह! इस दुख की घड़ी में जब सारी दुनिया डरी हुई थी, न जाने हमारे मन में ये शरारत क्यों आ गई? क्या हम लोगों के भय और कष्ट को समझ नहीं पा रहे थे?
हां, शायद ऐसा ही हुआ।
हम जानते थे कि कुछ दिन बाद ही कर्फ़्यू और धारा 144 आदि लग जाएगी तथा सड़क पर आने- जाने वालों से सख़्ती शुरू हो जाएगी। इस कॉलेज में पढ़ने वाली चंचल- शरारती लड़की ने एक ऐसे घर में प्रवेश किया जहां से घरेलू बाई कुछ ही दिन पहले काम छोड़ कर चली गई थी। इसने किसी को भी ये पता नहीं लगने दिया कि ये एक पढ़ी लिखी संपन्न घर की लड़की है। ये अपनी स्कूटी लेकर जाती पर अपनी वेशभूषा एकदम मेहरियों वाली रखती।
ये जिस घर में काम करने लगी उसी की मालकिन से इसे ये जानकारी मिली कि कई घरों में बाईयों की ज़रूरत है। ये अपनी परिचित और मित्र कई सहेलियों को एक एक कर ऐसे घरों में भेज कर काम पर लगाने लगी।
ये पहले से जानती थी कि एक- दो सप्ताह में कर्फ्यू लग जाएगा और सबको काम से मुक्ति मिल जाएगी। ऐसा ही हुआ। शहर के शहर बंद हो गए। सब घर में बैठ गए। कई लोग घर बैठे- बैठे ही काम करने को मजबूर हुए।
ये लड़की और इसकी सब सहेलियां भी घर बैठ गईं।
लेकिन जब इन्होंने नेताओं व सरकारी बड़े अधिकारियों के ऐसे बयान सुने कि लोग घरेलू कामगारों की पगार न काटें तो इनके मन में लड्डू फूटने लगे। मज़ा आ गया।
और अब?
इन सबने अनलॉक होने के बाद जाकर अपनी- अपनी मालकिनों को असलियत बताए बिना उनसे पांच- छः महीने की पगार ले ली। और जब पैसे हाथ में आ गए तो आगे काम छोड़ दिया। उन्हें "बाय" कह दिया!
क्या करतीं? इन्हें कॉलेज भी तो जाना था। और ज़्यादा दिनों तक घरों में झाड़ू लगाना इनके बस का था भी कहां? वो भी भेस बदल कर।
- बदमाश, शैतान, नालायक... तुझे बेवकूफ़ बनाने के लिए क्या मेरी ही सब सहेलियां मिलीं? कहती हुई श्रीमती कुनकुनवाला एक डंडा उठा कर जॉन के पीछे दौड़ने लगीं। और वो अपने सब फ्रेंड्स के चारों ओर भागता हुआ ऐसे चक्कर काट रहा था मानो म्यूज़िकल चेयर खेल चल रहा हो! सब हँस रहे थे।
