बसंती की बसंत पंचमी- 26
बसंती की बसंत पंचमी- 26
रसोई में गैस पर बनने वाली कढ़ी उबल- उबल कर आधी रह गई थी लेकिन श्रीमती कुनकुनवाला का उधर ध्यान ही नहीं था। शायद रख कर भूल गई हों। वो तो गनीमत थी कि बर्तन बहुत बड़ा लिया गया था और दूसरे गैस भी एकदम कम मोड पर थी इसलिए उबल कर फैली नहीं।
वो पिछले पच्चीस मिनट से फ़ोन पर ही थीं। श्रीमती चंदू उन्हें समझाते - समझाते थक गईं कि उन्होंने जॉन को कोई रुपए नहीं दिए। ना- ना, कहा न, प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को भी नहीं दिए... अरे देती तो वहीं सबके सामने देती न, अकेले में मैं किसी से मिली ही कब? और बेटे जॉन को देने का तो सवाल ही नहीं, उस बच्चे को क्यों दूंगी? देने होते तो आपको ही देती ना! पर ये बात कम से कम छह- सात बार दोहरा देने के बाद भी श्रीमती कुनकुनवाला उनकी एक मानने को तैयार नहीं थीं। वो यही कहे जा रही थीं कि आपने ये अच्छा नहीं किया, कहीं फ्रेंडशिप में भी कोई ऐसे किसी के साथ करता है?
खिन्न होकर जब उन्होंने फ़ोन रखा तब तक भी उन्हें चंदू की बात पर रत्ती भर यकीन नहीं हुआ।
लेकिन जब यही जवाब वीर ने भी दिया तो वो आपे से बाहर हो गईं। उन्हें ये सब अपने ख़िलाफ़ कोई षडयंत्र जैसा लगने लगा। उन्हें लगा कि इन सब ने आपस में सलाह करके कोई फ़ैसला ले लिया और उन्हें बताया तक नहीं। जबकि पार्टी ख़ुद उनके यहां ही थी। फ़िल्म की बात उन्होंने ही सबको बताई, प्रोड्यूसर डायरेक्टर उनके घर आए... फ़िर भी उन्हें ही किसी ने कुछ नहीं बताया। सोचा होगा कि मैं प्रोड्यूसर से मिल कर पहले ही अपनी बात मनवा लूंगी इसलिए उसका मुंह रुपयों से बंद करने का प्लान बना लिया! देखो, बताओ, और अपने आप को मेरी फ्रेंड कहती हैं! ऐसी होती हैं फ्रेंड? अरे फ्रेंड तो एक दूसरे के लिए बहनों- भौजाइयों से बढ़ कर होती हैं... उनके आंसू तक छलक आए।
वो तो गनीमत रही कि उन्हें तत्काल रसोई में कढ़ी छलकने का ख्याल आ गया तो वो फ़ोन बंद करके भागीं नहीं तो न जाने क्या- क्या खरी खोटी सुनातीं इस मिसेज़ वीर को। न जाने क्या समझती है अपने आप को ?